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साउथ की फिल्मों को हिंदी में कमजोर कर रही थिएटर्स की ये शर्त, थलपति विजय की 'लियो' को भी नुकसान

थलपति विजय की फिल्म 'लियो' के लिए जनता में जबरदस्त हाइप है. विजय की इस फिल्म को उसी यूनिवर्स का हिस्सा माना जा रहा है, जिसमें 'कैथी' और 'विक्रम' थीं. 'लियो' के हिंदी वर्जन के लिए भी काफी एक्साइटमेंट है लेकिन ये नेशनल मल्टीप्लेक्स चेन्स में नहीं रिलीज होगी. आइए बताते हैं इसकी वजह और इस वजह के पीछे का गणित.

'लियो' में थलपति विजय 'लियो' में थलपति विजय
सुबोध मिश्रा
  • नई दिल्ली ,
  • 07 अक्टूबर 2023,
  • अपडेटेड 10:00 AM IST

थलपति विजय की फिल्म 'लियो' का ट्रेलर गुरुवार को रिलीज हुआ. तमिल इंडस्ट्री से आ रही इस फिल्म के लिए जनता इतनी एक्साइटेड है कि 'लियो' का तमिल ट्रेलर, यूट्यूब पर सबसे तेज 1 मिलियन व्यूज पाने वाला वीडियो बन गया. विजय की ये फिल्म पैन इंडिया रिलीज होगी और हिंदी में भी इसका ट्रेलर आया है. 'लियो' का क्रेज ऐसा है कि हिंदी ट्रेलर पर 14 घंटे में 5 मिलियन से ज्यादा व्यूज हो चुके हैं. 

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डायरेक्टर लोकेश कनगराज की फिल्म को उसी यूनिवर्स का हिस्सा माना जा रहा है, जिसमें उनकी पिछली फिल्में 'कैथी' और 'विक्रम' थीं. पिछले साल रिलीज हुई कमल हासन स्टारर 'विक्रम' को ओटीटी पर आने के बाद हिंदी ऑडियंस ने खूब देखा. इसलिए हिंदी में 'लियो' देखने के लिए भी जनता काफी एक्साइटेड है. लेकिन हिंदी ऑडियंस को थोड़ा निराश करने वाली एक खबर आ रही है. 

रिपोर्ट्स बताती हैं कि 'लियो' (हिंदी) को थिएटर्स में उतनी बड़ी रिलीज नहीं मिलेगी, जितना ऐसी बड़ी पैन इंडिया फिल्म डिजर्व करती है. ऐसा इसलिए क्योंकि नेशनल मल्टीप्लेक्स चेन्स में 'लियो' नहीं रिलीज होगी. रिपोर्ट्स के मुताबिक, इसकी वजह है फिल्म की ओटीटी रिलीज में, 8-हफ्ते बाद का गैप रखने वाला नियम.

'लियो' में थलपति विजय (क्रेडिट: सोशल मीडिया)

फिल्म की OTT रिलीज पर नेशनल चेन्स ने लगाईं शर्तें
विजय की फिल्म 19 अक्टूबर को थिएटर्स में रिलीज होगी. इसे ऑरिजिनल तमिल वर्जन समेत 5 भाषाओं में रिलीज किया जाएगा. लेकिन 'लियो' के हिंदी वर्जन को नेशनल मल्टीप्लेक्स चेन्स में जगह नहीं मिलेगी. इससे फिल्म के हिंदी वर्जन की कमाई पर बहुत असर पड़ने वाला है. 

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विजय की 'लियो' का ट्रेलर दुनिया में सबसे तेज 1 मिलियन, 2 मिलियन व्यूज वाला वीडियो है. हाइप जबरदस्त है और हिंदी में इसका इंतजार हो रहा था. लेकिन हिंदी में पीवीआर-आईनॉक्स-सिनेपोलिस जैसी बड़ी नेशनल चेन्स में रिलीज नहीं होगी. नेशनल सिनेमा चेन्स ने नियम बनाया है कि थिएटर्स में उसी फिल्म को रिलीज करेंगे जिसकी ओटीटी रिलीज, थिएट्रिकल रिलीज से 8 हफ्ते दूर रखी जाएगी. लेकिन 'लियो' के मेकर्स ओटीटी रिलीज के लिए 4 हफ्ते की विंडो रखना चाहते हैं.  

क्या है पंगे की वजह?
नेशनल मल्टीप्लेक्स चेन्स और बहुत सारे सिंगल स्क्रीन्स ने ये तय किया है कि वो अपने थिएटर्स में उन्हीं फिल्मों को दिखाएंगे, जो ओटीटी पर कम से कम 8 हफ्ते बाद रिलीज होंगी. इस गैप की वजह ये है कि लॉकडाउन में थिएटर्स का बहुत बुरा हाल हो गया था. बिजनेस पटरी पर लाने के लिए ये जरूरी है कि जनता फिल्म देखने थिएटर्स तक पहुंचे. 

सीधा लॉजिक है कि ओटीटी प्लेटफॉर्म पर फिल्म आने के बाद लोग घर पर ही इसे देखना ज्यादा प्रेफर करेंगे. इसलिए थिएट्रिकल और डिजिटल रिलीज के बीच एक अच्छा बैलेंस बनाने के लिए ये 8 हफ्ते का गैप रखा गया. हालांकि, अगर फिल्मों का थिएट्रिकल बिजनेस जल्दी नीचे जाने लगता है तो इन्हें जल्दी ओटीटी पर रिलीज करने से थिएटर्स को भी आपत्ति नहीं होती.

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लेकिन अगर फिल्म थिएटर्स में अच्छी चल रही हो तो उसके जल्दी ओटीटी पर आने से नुकसान तो होता ही है. जैसे- कार्तिक आर्यन की फिल्म 'भूल भुलैया 2' (2022) 20 मई को थिएटर्स में रिलीज हुई और एक महीने के अंदर, 19 जून को ओटीटी पर. कई ट्रेड एक्सपर्ट्स का मानना था कि 185 करोड़ रुपये का नेट कलेक्शन करने वाली ये फिल्म, अगर कुछ और हफ्ते के गैप के बाद ओटीटी पर आती, तो थिएटर्स में इसकी कमाई और बेहतर होती, शायद 200 करोड़ तक!

'भूल भुलैया 2' में कार्तिक आर्यन (क्रेडिट: सोशल मीडिया)

साउथ में तो अब ये नियम अब अक्सर टूटने लगा है और वहां मेकर्स थिएट्रिकल रिलीज के बाद, डिजिटल के लिए 4 हफ्ते का गैप रखने लगे हैं. लेकिन नॉर्थ इंडिया में मामला ज्यादा कड़ा है और इसकी वजह ये है कि यहां के फिल्म बिजनेस में मल्टीप्लेक्स का योगदान ज्यादा है. रिपोर्ट्स बताती हैं कि देश के सिंगल स्क्रीन थिएटर्स में से 62% दक्षिण भारत में हैं.

साउथ में फिल्म प्रदर्शन का 70-75 प्रतिशत हिस्सा सिंगल स्क्रीन्स के पास है. इसके ठीक उलट उत्तर भारत के फिल्म बिजनेस में 70-80 प्रतिशत हिस्सा मल्टीप्लेक्स का है. यानी यहां मल्टीप्लेक्स चेन्स ने रिलीज से इनकार किया, तो फिल्म के लिए बाकी का बिजनेस बहुत कम बचेगा.

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लॉकडाउन में शुरू हुआ था ट्रेंड 
कोविड 19 महामारी की वजह से जब लॉकडाउन लगा तो लंबे समय तक थिएटर्स बंद रहे. ऐसे में तमाम बड़े स्टार्स की फिल्में ओटीटी पर रिलीज होने लगीं. फिल्मों पर मेकर्स का पैसा लगा था और उस समय किसी को आईडिया नहीं था कि थिएटर्स दोबारा नॉर्मल तरीके से कबतक खुल पाएंगे. ऐसे में फिल्मों को ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर रिलीज करना प्रोड्यूसर्स के लिए एक अच्छा सॉल्यूशन था. फिल्म बिजनेस का ये गणित अब किसी से नहीं छुपा है कि ओटीटी के आने से मेकर्स के पास फिल्म से प्रॉफिट कमाने का एक बड़ा जरिया उपलब्ध है. 

लॉकडाउन के बाद वाले दौर में जब थिएटर्स को पहले आधी कैपेसिटी में खुलने की इजाजत मिली, तो हिंदी में भी कई फिल्में 4 हफ्ते के बाद ही ओटीटी पर रिलीज हुईं. इनमें भूल भुलैया 2, सम्राट पृथ्वीराज, शमशेरा और एक विलेन रिटर्न्स जैसी फिल्में शामिल हैं. लेकिन इसी दौर में थलपति विजय की 'मास्टर' (2021) ने ओटीटी रिलीज का माहौल बदलने वाला काम किया.

लॉकडाउन के बाद आधी कैपेसिटी में चल रहे थिएटर्स में रिलीज हुई ये फिल्म 15 दिन के अंदर ओटीटी पर रिलीज हो गई. थिएटर्स में 113 करोड़ रुपये का ग्रॉस कलेक्शन करने वाली इस फिल्म ने साउथ में एक ट्रेंड सा शुरू कर दिया और ओटीटी रिलीज का गैप कम होने लगा. 

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फिल्मों के बिजनेस के लिए कैसे फायदेमंद है ओटीटी बिजनेस? 
फिल्म के थिएटर्स में पहुंचने से पहले होने वाली डील में डिजिटल स्ट्रीमिंग के राइट्स का हिस्सा बहुत बड़ा होता है. फिल्मों के हिट या फ्लॉप होने का पैमाना अब भी थिएट्रिकल बिजनेस को ही माना जाता है. लेकिन ओटीटी के आने के बाद, मार्किट से एक फिल्म पर लगी इन्वेस्टमेंट का वापस आना और उसपर प्रॉफिट कमाना, अब कोई बड़ी बात नहीं है. 

उदाहरण के लिए- रिपोर्ट्स बताती हैं कि शाहरुख खान की 'जवान' का बजट 300 करोड़ रुपये से ज्यादा था. लेकिन फिल्म के डिजिटल राइट्स ही 250 करोड़ रुपये में बिके बताए गए थे. इसमें म्यूजिक और सैटेलाईट राइट्स जोड़ दिए जाएं तो लगभग बजट के बराबर कमाई, थिएटर्स में रिलीज से पहले ही आ चुकी थी. फिल्म को थिएटर्स में ले जाने वाले डिस्ट्रीब्यूटर्स ने मेकर्स को जो मिनिमम गारंटी दी होगी, उसी से 'जवान' जैसी बड़े बजट की फिल्म ने प्रॉफिट निकाल लिया होगा. इसी तरह 600 करोड़ रुपये के बजट में बनी 'आदिपुरुष' भले थिएटर्स में बुरी तरह फ्लॉप हुई हो, मगर ये मानना गलत होगा कि इससे फिल्म की इन्वेस्टमेंट पर हुआ घाटा भी 600 करोड़ का हुआ होगा!

ओटीटी डील, फिल्म के प्रोड्यूसर्स का फाइनेंशियल रिस्क कम हो जाता है और अच्छा-खासा प्रॉफिट तय हो जाता है. थिएटर्स में रिलीज और डिजिटल रिलीज में जितना कम गैप होगा, डिजिटल राइट्स के प्राइज उतने बेहतर मिलेंगे. इसी वजह से ये गैप, थिएटर्स और फिल्ममेकर्स के बीच पंगे की वजह बना हुआ हुआ है. 

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हिंदी मार्किट से चूकती पैन इंडिया फिल्में 
अगस्त में बॉक्स ऑफिस पर हुए महाक्लैश में जहां बॉलीवुड से 'गदर 2' और 'OMG 2' थीं, वहीं साउथ से रजनीकांत की 'जेलर' भी हिंदी में रिलीज हुई थी. लेकिन बड़ी मल्टीप्लेक्स चेन्स में 'जेलर' हिंदी कहीं भी नहीं थी. रजनीकांत की फिल्म हिंदी में 10 करोड़ रुपये से कम ही कमा सकी. जबकि रजनीकांत का हिंदी रिकॉर्ड बेहतरीन रहा है. दरअसल, 'जेलर' 10 अगस्त को थिएटर्स में रिलीज हुई थी और एक महीने से भी कम समय के बाद, 7 सितंबर को ओटीटी पर रिलीज हो गई. 

'जेलर' में रजनीकांत (क्रेडिट: सोशल मीडिया)

हिंदी की पॉपुलर एक्ट्रेस कंगना रनौत ने हाल ही में तमिल इंडस्ट्री में बनी 'चंद्रमुखी 2' में काम किया. ये एक पैन इंडिया फिल्म थी, लेकिन कंगना की मजबूत पहचान वाले हिंदी मार्किट में ही इसे बड़ी रिलीज नहीं मिली. रिपोर्ट्स बताती हैं कि 'चंद्रमुखी 2' मेकर्स की ओटीटी डील की वजह से ही ऐसा हुआ. 

ये साफ है कि साउथ में बन रहीं पैन इंडिया फिल्मों को इस नियम से ज्यादा नुक्सान है. धुआंधार कमाई के लिए अपनी मार्किट में अच्छा कमाने के साथ ही, इन फिल्मों को हिंदी मार्किट में सॉलिड बिजनेस की जरूरत होती है. इस तरह के पंगे में उन दर्शकों का भी नुक्सान है जो साउथ में बनी फिल्मों के हिंदी वर्जन थिएटर्स में एन्जॉय करते हैं. 'लियो' जैसी बड़ी फिल्म, जिसके लिए हिंदी दर्शक भी एक्साइटेड हैं, उसेकम स्क्रीन्स मिलेंगी तो दर्शकों के लिए ऑप्शन भी लिमिटेड होंगे.

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ये देखना दिलचस्प होगा कि क्या साउथ से आ रहीं 'सलार' जैसी बड़ी फिल्में, थिएट्रिकल बिजनेस के लिए अपनी ओटीटी रिलीज को आगे बढ़ाती हैं. या दर्शकों की भीड़ देखने के लिए तैयार बैठे थिएटर्स, अपने बनाए इस 8-हफ्ते के नियम को थोड़ा हल्का करते हैं. 

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