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भूपिंदर सिंह: राहों पे नज़र रखना, होंठों पे दुआ रखना...आ जाए कोई शायद, दरवाज़ा खुला रखना

भूपिंदर सिंह हमेशा कहते थे कि हमने संगीत की दुनिया का सुनहरा दौर देखा है. वो दौर जब लोग शहर छोड़ कर बॉम्बे आते थे, स्टूडियो कम होते थे और संगीत से मुहब्बत हुआ करती थी. अब स्टूडियो ही स्टूडियो हो गए हैं, लेकिन गाने वाले का गानों से कोई लेना-देना नहीं होता, वो फील ख़तम होता जा रहा है.

भूपिंदर सिंह ने 82 साल की उम्र में दुनिया को विदा कह दिया (फोटो- AFP) भूपिंदर सिंह ने 82 साल की उम्र में दुनिया को विदा कह दिया (फोटो- AFP)
Akashdeep Shukla
  • नई दिल्ली,
  • 19 जुलाई 2022,
  • अपडेटेड 1:45 PM IST

नाम ग़ुम जाएगा, चेहरा ये बदल जाएगा... मेरी आवाज़ ही पहचान है, गर याद रहे! साल 1977 में आई फिल्म 'किनारा' में इस गीत को गाने वाले भूपिंदर सिंह बीती रात 82 साल की उम्र में विदा का गीत गाकर इस दुनिया से चले गए. उनके नजदीकियों के मुताबिक उन्हें कोलन कैंसर था. जिससे जूझते-जूझते भूपिंदर, आंखें मीचकर हमेशा के लिए सो गए. जिसके बाद ग़ज़ल की सबसे लोकप्रिय भूपिंदर-मिताली की जोड़ी अब टूट चुकी है.

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भूपिंदर सिंह को संगीतकार मदन मोहन ने फ़िल्मी दुनिया से वाक़िफ़ कराया तो पंचम दा ने उनकी परवरिश की. ख़ुद भूपिंदर अक्सर कहते थे कि मुझे जन्म तो मदन मोहन ने दिया, लेकिन पाला पोसा आरडी बर्मन यानी पंचम दा ने. सच भी है कि भूपिंदर और पंचम दा के बीच जबर्दस्त दोस्ती थी. भूपिंदर ने फिल्म हकीकत के लिए पहला गाना गाया था, और इस गाने के पीछे भी एक कहानी जुड़ी हुई है.

करियर के शुरुआती दिनों में दिल्ली के ऑल इंडिया रेडियो के साथ काम करने वाले भूपिंदर की आवाज़ जब संगीतकार मदन मोहन ने सुनी तो उन्हें बॉम्बे आने का न्योता दे दिया. भूपिंदर हैरान थे, ऐसा भी कोई करता है भला, आवाज़ सुनी और बॉम्बे बुला लिया. भूपिंदर को इस बात पर यकीन ही नहीं हो रहा था कि उन्हें मदन मोहन ने ब्रेक देने की बात कही है. कुछ ही दिनों में उनका संदेह खत्म हो गया, जब वो पहली बार फिल्म 'हकीकत' का गाना रिकॉर्ड कर रहे थे.  

अपने पहले गाने को लेकर बेहद घबरा गए थे भूपिंदर

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अपने पहले गाने को लेकर भूपिंदर हमेशा कहते थे कि उस रोज़ मैं सबसे ज्यादा घबराया और डरा हुआ था. वजह थी स्टूडियो में ऐसे गायकों का होना जिनकी आवाज़ की दीवानगी हर तरफ थी. वो कोई और नहीं बल्कि गायक मोहम्मद रफी, मन्ना डे, और तलत महमूद थे. जिनके साथ भूपिंदर ने अपना गाना रिकॉर्ड किया. गाना था 'होके मजबूर मुझे उसने भुलाया होगा'. गाना ना सिर्फ रिलीज हुआ बल्कि हिट लिस्ट में भी शुमार हुआ.  

बॉलीवुड में भूपिंदर के हिस्से में बहुत ज्यादा गाने नहीं आए, लेकिन जो भी आए वो नायाब रहे. भूपिंदर कहते थे कि इंडस्ट्री में काम करने के लिए बहुत भागदौड़ करनी पड़ती है, दरवाजे खटखटाने पड़ते हैं. ये मेरी फितरत में नहीं था कि मैं दरवाजे दरवाजे जाकर काम मांगूं. ऐसे में मेरे हिस्से चुनिन्दा गाने ही आए. हालांकि सच ये भी है कि भूपिंदर के गाए हुए गाने अमर हैं, वो किसी भी दौर में गुनगुनाए जाएं... गाने वाले को अपने लगेंगे. फिर चाहे वो 'करोगे याद तो हर बात याद आएगी' हो या फिर 'किसी नजर को तेरा इंतज़ार आज भी है'... इन्हीं गानों के बीच एक और ऐसा गाना है जो हर बार, नया बना रहेगा.
 



'एक अकेला इस शहर में...'

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घर से निकल कर नए शहर में जाने वाला हर वो शख्स यही कहता मिलता है, 'एक अकेला इस शहर में, शाम हो या दोपहर में आब ओ दाना ढूंढता है, आशियाना ढूंढता है'. भूपिंदर की आवाज़ में मौजूद हर एक गीत हमेशा जिंदा रहेगा. जब तक इंसान रहेगा, ये गाने भी रहेंगे. लेकिन आवाज़ की दुनिया में सितारा बने भूपिंदर को फिल्म प्रोड्यूसर चेतन आनंद एक एक्टर के रूप में देखना चाहते थे. चेतन हमेशा यही चाहते रहे कि भूपिंदर एक्टिंग करें, लेकिन भूपिंदर के लिए यही सबसे बड़ा डर बन चुका था. जिसके चलते वो कई बार बॉम्बे से दिल्ली भाग जाते थे और लौटते नहीं थे.

अगर उस रोज़ सही सलाह मिल जाती तो... 

इसी कड़ी में भूपिंदर दो साल तक दिल्ली से बॉम्बे नहीं लौटे. हालांकि शायद भूपिंदर को इस बात का मलाल भी हुआ कि अगर उस दौर में उन्हें कोई बेहतर सलाह मिल जाती और दोस्त भूपिंदर के एक्टर बन जाने की बात को अजीब तरह से नहीं लेते तो शायद आज तस्वीर कुछ और होती. चेतन आनंद की इस अधूरी चाहत को लेकर भूपिंदर ने अपने दोस्तों से जब जब सवाल पूछा तो उन्होंने ऐसे कमेन्ट दिए कि उनका फिर इस तरफ जाने का मन ही नहीं किया. भूपिंदर खुद कहते थे कि अगर उस दौर में मेरे अंदर एक्टिंग को लेकर डर नहीं होता और कोई सही सलाह मिली होती तो मैं शायद कहीं और होता.

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भूपिंदर को फ़िल्मी दुनिया ने बहुत तवज्जो नहीं दी, शायद इसीलिए उन्होंने ग़ज़लों को चुना. गुलज़ार के लिखे को आवाज़ दी, और आवाज़ भी ऐसी कि आज वही उनकी सबसे बड़ी पहचान है. भूपिंदर गायक से ज्यादा एक गिटारिस्ट के रूप में जगह बना रहे थे. उस दौर में उनके जैसा गिटार शायद ही कोई बजा पाता हो. भूपिंदर के गिटार की बात हो तो नौशाद साहब भी यही कहते थे कि उसके आसपास तो क्या दूर दूर तक कोई नहीं है. जिसका एक उदाहरण 'तुम जो मिल गए हो' गाना बना जिसमें भूपिंदर ने गिटार पर पड़ती अपनी जादुई अंगुलियों से सभी को हैरान कर दिया था. फिर तो जैसे उनके गिटार की दीवानगी इंडस्ट्री पर हावी होती चली गई.
 



पंचम दा के साथ गिटार की शुरुआत

उस दौर में कई इंटरनेशनल बैंड्स ने भी भूपिंदर के म्यूजिक को चुना था. गिटार की शुरुआत, भूपिंदर ने अपने सबसे करीबी दोस्त पंचम दा के साथ की थी. ये धुन थी 'दम मारो दम'. भूपिंदर ने अपनी शर्तों पर जीवन जीया, रॉयल रहे. गिटार के साथ बेहिसाब प्यार करने वाले भूपिंदर ने एक बार ऐसा गिटार छोड़ा कि फिर 15 साल तक गिटार को नहीं छुआ.

भूपिंदर के पिता ही भूपिंदर के संगीत के टीचर रहे, लेकिन अपने पिता के साथ भूपिंदर की अच्छी ट्यूनिंग नहीं रही. भूपिंदर के पिता प्रोफ़ेसर नत्था सिंह भूपिंदर पर काफी सख्त रहे. भूपिंदर को दिक्कत थी कि जिस उम्र में बच्चे खेलने जाते हैं, उस उम्र में उन्हें खिलौनों से खेलने नहीं दिया गया, बल्कि उन्हें 'प्रैक्टिस' में झोंक दिया गया. जिसकी वजह से भूपिंदर को संगीत से नफरत हो गई थी. वो कभी नहीं चाहते थे कि संगीत की दुनिया में जाएं, लेकिन उनकी कहानी में कुछ और ही लिखा था.  

'ग़ज़लों में आज़ादी है, फ़िल्मी गानों में सब कुछ बंधा हुआ रहता है'

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फ़िल्मी गानों और ग़ज़लों में भूपिंदर ने हमेशा ग़ज़लों को चुना. उनका मानना था कि फ़िल्मी गानों में आप बंधे हुए रहते हैं. उसके लिए जैसा संगीतकार सिखाते हैं वैसा ही करना होता है, गानों में आपकी अपनी कोई फीलिंग नहीं होती. सबकुछ बंधा-बंधा सा. लेकिन ग़ज़ल को हम खुले तौर पर गा सकते हैं. बोल के साथ मुहब्बत होती है. ग़ज़ल का एक एक शब्द, एक एक मिसरा एक कहानी और एक सपना बन जाता है.

भूपिंदर की ग़ज़लों को और भी ज्यादा प्रसिद्धि पत्नी मिताली मुखर्जी के साथ मिली. दोनों के साथ गाई हुईं एक एक ग़ज़ल, अमर हैं. जिसमें 'राहों पे नज़र रखना, होंठों पे दुआ रखना... आ जाए कोई शायद, दरवाजा खुला रखना' मिताली और भूपिंदर की पसंदीदा ग़ज़ल रही. जिसे वो हर इवेंट पर फरमाइश के तौर पर पाते थे, और गुनगुनाते थे.


मिताली और भूपिंदर: मिलने से पहले आवाज़ से प्यार

मिताली से मिलने से पहले भूपिंदर को उनकी आवाज़ से प्यार हुआ था, और जब मिले तो प्यार परवान चढ़ा जिसके बाद दोनों ने हमेशा के लिए साथ जीने मरने की क़समें खा लीं, लेकिन आज मिताली शायद यही कहेंगी कि भुपी क़सम तोड़ गए. 

मिताली के साथ भूपिंदर ने 'अक्सर' नाम का एक एल्बम रिलीज किया था. जिसका एक गाना सबसे ज्यादा पॉपुलर हुआ. 'कहीं तो गर्द उड़े या कहीं ग़ुबार दिखे, कहीं से आता हुआ कोई शहसवार दिखे'... लेकिन अब भूपिंदर के चले जाने के बाद यह मानना मुश्किल सा हो गया है कि कहीं कोई ग़ुबार उठेगा, कहीं से कोई शहसवार आता दिखेगा. साल 2018 में गोपाल दास नीरज आज यानी 19 जुलाई के दिन ही दुनिया को अलविदा कह गए थे, इस साल इस तारीख से ठीक एक दिन पहले एक और कारवां गुज़र गया और हम ग़ुबार देखते रह गए.
 

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संगीत की दुनिया के महानायक भूपिंदर सिंह को श्रद्धांजलि.  

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