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वो कोच जिसने बदली थी भारतीय फुटबॉल की किस्मत, अजय देवगन निभाएंगे रोल

बॉलीवुड एक्टर अजय देवगन भी स्पोर्ट्स कोच की भूमिका में दिखाई देंगे. अजय देवगन फिल्म मैदान में सैयद अब्दुल रहीम का रोल निभाते दिखेंगे. ये फिल्म जल्द ही फ्लोर पर जाएगी.  इस फिल्म को अगले साल रिलीज करने की योजना है.

अजय देवगन अजय देवगन
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 20 अगस्त 2019,
  • अपडेटेड 8:03 AM IST

शाहरुख खान की चक दे इंडिया के बाद अब अजय देवगन भी स्पोर्ट्स कोच की भूमिका में दिखाई देंगे. अजय देवगन फिल्म मैदान में सैयद अब्दुल रहीम का रोल निभाते दिखेंगे. ये फिल्म जल्द ही फ्लोर पर जाएगी.  इस फिल्म को अगले साल रिलीज करने की योजना है.

सैयद का जन्म हैदराबाद में 1909 में हुआ था. उन्हें 1940 में हैदराबाद सिटी पुलिस टीम का कोच बनाया गया था. इसके बाद उन्होंने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाते हुए लोकल और नेशनल स्तर पर अपना दबदबा बनाकर रखा. साल 1950 में उन्हें भारतीय फुटबॉल टीम का हेड कोच बनाया गया. 1951 में सैयद ने एशियन गेम्स में गोल्ड दिलवाने में मदद की. ये वो दौर भी था जब भारतीय फुटबॉल टीम नंगे पैर फुटबॉल खेलती थी. हालांकि साल 1952 में हेलिंस्की ओलंपिक्स में सर्द हालातों के चलते भारत को करारी हार का सामना करना पड़ा. जिसके चलते सैयद काफी परेशान हुए. ये आखिरी बार था जब भारतीय टीम नंगे पैर फुटबॉल के मैदान में थी. ये पराजय कई मायनों में टीम के लिए उत्प्रेरक साबित हुई और इस हार ने सैयद को अपनी टीम को जिताने के लिए दृढ़ संकल्प दिया.

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भारतीय टीम ने इसके कुछ सालों बाद तक कई इंटरनेशनल टूर्नामेंट्स जीते. लेकिन 1956 में मेलबर्न ओलंपिक्स में भारत ने अपनी परफॉर्मेंस से दुनिया भर को चौंकाया. भारत ने क्वार्टर फाइनल में ऑस्ट्रेलिया को मात दी थी और सेमीफाइनल में जगह बनाई थी. हालांकि सेमीफाइनल में भारत युगोस्लाविया से हार गया था लेकिन इसे आज भी भारत की सबसे बड़ी अचीवमेंट माना जाता है.  

मेलबर्न ओलंपिक्स के छह सालों बाद वे टीम को जकार्ता एशियन गेम्स के फाइनल में ले गए. ये उनके करियर का आखिरी टूर्नामेंट भी साबित हुआ क्योंकि वे इस दौरान कैंसर से जूझ रहे थे. उनकी बिगड़ती सेहत की वजह से एशियन गेम्स में अच्छे प्रदर्शन के दो महीने बाद उन्हें कोच पद से हटना पड़ा. भारतीय फुटबॉल के लिए 1950 से 1960 का दौर काफी सफल रहा है. सैयद अब्दुल रहीम को मॉर्डन इंडियन फुटबॉल का आर्किटेक्ट भी कहा जाता था.  साल 1963 में उनकी मौत हो गई लेकिन वे हमेशा के लिए भारतीय फुटबॉल के लिए अमर हो गए.

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