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केसरी: अक्षय कुमार की जुबानी, फिल्म रिलीज से पहले जान लें क्लाइमैक्स

सारागढ़ी के युद्ध पर बनी अक्षय कुमार की फिल्म केसरी 21 मार्च को र‍िलीज होने जा रही है. फिल्म में 12 सि‍तंबर 1897 को हुए सारागढ़ी के युद्ध को द‍िखाया गया है. अक्षय कुमार ने फिल्म की रिलीज से पहले ही एक शो में इसके क्लाइमैक्स का खुलासा कर दिया. 

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aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 20 मार्च 2019,
  • अपडेटेड 10:15 AM IST

सारागढ़ी के युद्ध पर बनी अक्षय कुमार की फिल्म केसरी होली के दिन 21 मार्च को र‍िलीज होने को तैयार है. फिल्म में 12 सि‍तंबर 1897 को हुए सारागढ़ी के युद्ध को द‍िखाया गया है. अक्षय कुमार फ‍िल्म में मुख्य भूमिका निभा रहे हैं. लेकिन सालों प‍हले हुए इस युद्ध की गाथा क्यों खास है इस बारे में खुद अक्षय कुमार ने कप‍िल शर्मा शो पर बताया. अक्षय की बातचीत में फिल्म की पूरी कहानी का खुलासा भी हो गया.  

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अक्षय कुमार ने कहा, "मुझे जब यह स्क्र‍िप्ट सुनाई गई तो सबसे ज्यादा हैरान इस बात पर था कि आजतक किसी ने इस विषय पर फिल्म बनाने की सोची क्यों नहीं. सारागढ़ी का युद्ध 21 स‍िख जवानों के बहादुरी की अमरगाथा है."

अक्षय कुमार ने बताया, "यह 1897 को हुई लड़ाई थी, जहां 21 स‍िख सारागढ़ी फोर्ट के अंदर थे. वहीं 10 हजार अफगान सैन‍िक आए थे. उन्हें लगा था कि इन 21 को हम महज आधे घंटे में खत्म कर देंगे और फोर्ट में कब्जा कर लेंगे. उनकी प्लान‍िंग थी कि सारागढ़ी फोर्ट पर कब्जा करने के बाद दो और फोर्ट पर कब्जा करना."

"अगर तीनों फोर्ट पर 10 हजार अफगान सैन‍िक कब्जा कर लेते तो वे भारत के अंदर आ सकते थे. ये लड़ाई सुबह 9 बजे शुरू हुई और शाम 6 बजे तक लड़ते-लड़ते 21 स‍िख लड़ाके शहीद हो गए थे. तब तक काफी देर हो गई थी. स‍िख रेजीमेंट के दूसरे लोग आ गए थे. आख‍िरकार अफगान लड़ाकों को भागना पड़ा था."

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अक्षय ने बताया, "स‍िख जवानों के पास भागने का पूरा मौका था. उन्हें यह अच्छी तरह मालूम था कि वो ये जंग जीत नहीं पाएंगे फिर भी उन्होंने लड़ने का विकल्प चुना. उन्होंने सुबह 9 से शाम 6 बजे तक जो युद्ध लड़ा उसकी वजह से ही स‍िख रेजीमेंट के दूसरे सैन‍िकों को आने का मौका मिल सका."

अक्षय कुमार ने बताया, "अगर आप गूगल करेंगे और दुन‍िया की सबसे कमाल की लड़ाइयां को सर्च करेंगे. तो सारागढ़ी की लड़ाई दूसरे नंबर पर आतीहै. 

बता दें सारागढ़ी की बैट‍ल में शहीद हुए 21 स‍िख लड़ाकों पर खालसा बहादुर नाम की ए‍क कव‍िता चुहार स‍िंह ने ल‍िखी थी. यह पूरी कव‍िता 55 पेज लंबी है. र‍िपोर्ट के मुताब‍िक उस वक्त शहीद सैनिकों को अंग्रेज सरकार ने सबसे बड़े युद्ध पदक से नवाजा था. कुछ समय बाद अमृतसर में सारागढ़ी स्कूल भी बनाया गया. आज भी देश में सिख रेजीमेंट इसे रेजीमेंटल बैटल आनर्स डे के रूप में मनाती है.

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