
आजकल फिल्म पुरस्कार समारोहों का हर ओर जलवा है. हर सितारा किसी न किसी समारोह में नजर आ रहा है, और कई तो ऐसे हैं अधिकतर सभी पुरस्कार समारोहों में रौनक बिखेर रहे है. नए-नए किस्म के पुरस्कार घोषित किए जा रहे हैं. कई जगह तो ऐसा भी देखने को मिला कि एक हीरोइन को पुरस्कार देने का बहाना चाहिए था तो उनकी फिटनेस को ही बहाना बना लिया गया, और उन्हें पुरस्कार से नवाज दिया गया.
बॉलीवुड में कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्हें पुरस्कारों और पुरस्कार समारोहों से दूरी बनाए रखना ही पसंद है. ऐसा ही एक नाम कंगना रनोट का भी है. ऐसा नहीं है कि उनकी फिल्में इस समारोह में नहीं आतीं या वे ऐसी फिल्में नहीं करतीं जिन्हें पुरस्कार मिल सके. पिछले साल जहां 'क्वीन' पुरस्कार समारोहों में छाई रही थी, वहीं इस साल उनकी फिल्म 'तनु वेड्स मनु रिटर्न्स' अधिकतर कैटेगरी में अपनी जगह बनाई हुए है. फिर उनका दत्तो का किरदार तो हरदिलअजीज बना ही है.
चलिए कंगना से ही जानते हैं कि आखिर उन्हें पुरस्कार समारोह क्यों पसंद नहीं हैं, 'मैं जानती हूं कि सिस्टम के खिलाफ खड़ा होना आसान नहीं है. लेकिन हर बार सही चीज करना आसान काम भी नहीं है. मैंने सही चीज करने का फैसला लिया. मुझे लगता है कि आजकल पुरस्कार समारोह सिर्फ दिखावा हैं जो ऑर्गेनाइजर करते हैं. ये पुरस्कार समारोह जेनुइन नहीं हैं. मैं जानती हूं कि यह कॉमर्शियल समारोह हैं जिनका उद्देश्य टीआरपी और पैसा कमाना है.
कंगना ने कहा कि जेनुइन कलाकार, बेस्ट टेक्निशियंस और लेखकों को दसवीं पंक्ति में सबसे पीछे धकेल दिया जाता है जबकि तवज्जो ऐसे लोगों को मिलती है जो अपनी रिलेशनशिप और आइटम नंबर्स की वजह से सुर्खियों में होते हैं. मेन कैटगरी उन लोगों को जाती है जो टीआरपी जुटाने में मदद कर सकते हैं. चाहे वे उपयुक्त पात्र हों या नहीं, यह मायने नहीं रखता. मुझे लगता है ऐसा नहीं होना चाहिए. इस परंपरा को बदला जाना चाहिए. ऑर्गेनाइजर्स को ईमानदारी बरतते हुए यह कहना चाहिए यह पुरस्कार समारोह नहीं बल्कि एक जलसा मात्र है. मैं किसी भी बेईमान चीज का हिस्सा नहीं बनना चाहती. इसी वजह से मैं उनकी आलोचना करती हूं.
वाकई काम तो खुद बोलता है और यह बात कंगना कई मौकों पर खुद ही सिद्ध कर चुकी हैं.