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फैंसी ड्रेस कॉम्पिटिशन में बनते थे कवि, अब हैं सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष

जाने-माने गीतकार प्रसून जोशी का 16 सितंबर को जन्म हुआ था. उनके जन्मदिन के मौके पर जानें उनके एक एड गुरु से गीतकार और फिर सेंसर बोर्ड अध्यक्ष बनने के सफर के बारे में

प्रसून जोशी प्रसून जोशी
हिमानी दीवान
  • नई दिल्ली,
  • 16 सितंबर 2017,
  • अपडेटेड 8:28 AM IST

यह सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष हैं. इन्होंने फिल्मों की स्क्रिप्ट भी लिखी है. इनके लिखे गीत भी काफी पॉपुलर हैं.विज्ञापनों के लिए लिखी गईं इनकी टैगलाइंस का भी अपना ही जादू रहा है. लेकिन इनके बारे में खास बात ये है कि बचपन से इन्हें सिर्फ कवि ही बनना था. और इन्होंने अपनी इस ख्वाहिश को अलग प्लेटफॉर्म्स पर बहुत खूबसूरती से पूरा किया. हालांकि अब इनके पास सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष के तौर पर एक अहम जिम्मेदारी है.

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फैंसी ड्रेस कॉम्पिटिशन में बने जयशंकर प्रसाद

आपको जानकर हैरानी हो सकती है कि 16 सितंबर को जन्मे प्रसून जोशी बचपन में फैंसी ड्रेस कॉम्पिटिशन में भी कवि बनकर ही पहुंचते थे. उनका जन्म सन् 1971 में उत्तराखंड के अल्मोड़ा में हुआ था. बचपन से ही उन्हें लिटरेचर में काफी दिलचस्पी थी. एक इंटरव्यू के दौरान प्रसून ने खुद बचपन की एक घटना का जिक्र किया था. उन्होंने बताया था कि एक बार जब उनके स्कूल में फैंसी ड्रेस कॉम्पिटिशन था, तब सब बच्चे एक्टर, पॉलिटिशयन या क्रांतिकारी की ड्रेस पहनकर आए थे, मगर वह एक कवि बनकर पहुंचे. उन्होंने कवि जय शंकर प्रसाद की तरह का गेटअप लिया और उनकी कविता 'आंसू' पढ़कर सुनाई थी.

17 साल की उम्र में पहली किताब

लिटरेचर से उनके इस लगाव का ही असर था कि सिर्फ 17 साल की उम्र में उनकी पहली किताब 'मैं और वो' भी प्रकाशित हो गई थी. लिटरेचर में इतनी गहरी रुचि होने के बाद भी उन्होंने अपनी पढ़ाई-लिखाई के लिए साइंस को चुना.

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पहले बीएससी की और फिर फिजिक्स में पोस्ट ग्रेजुएशन. इसके बाद उन्होंने एमबीए किया और एडवरटाइजिंग के क्षेत्र में करियर बनाने का फैसला कर लिया. मगर यहां भी उनके भीतर का कवि बार-बार बाहर आता रहा. नतीजे में हमें मिली 'ठंडा मतलब कोका-कोला', 'अभी तो मैं जवान हूं', 'उम्मीद वाली धूप' जैसी टैगलाइंस. और इस तरह प्रसून एड गुरु बन गए. उन्होंने अपनी जिंदगी के दस साल विज्ञापन की दुनिया को दिए और फिर उनका अगला पड़ाव बना बॉलीवुड.

विज्ञापनों से बॉलीवुड तक

उनकी राइटिंग का कमाल देखकर राजकुमार संतोषी ने उन्हें अपनी फिल्म लज्जा में गीत लिखने के लिए कहा. फिर जो सिलसिला शुरू हुआ, उसमें उन्होंने 'फना', 'रंग दे बसंती', 'तारे जमीं पर', 'ब्लैक', 'हम-तुम' और 'दिल्ली-6' जैसी फिल्मों के गाने लिखे.

राष्ट्रीय पुरस्कार से फिल्मफेयर तक

उन्हें फना (2007), तारे जमीं पर (2007) और भाग मिल्खा भाग (2014) में लिखे गीतों के लिए बतौर बेस्ट लिरिसिस्ट तीन फिल्मफेयर अवॉर्ड्स भी मिल चुके हैं. सन् 2015 में प्रसून को कला, साहित्य और विज्ञापन के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए पद्म श्री अवॉर्ड से भी सम्मानित किया जा चुका है. इसके अलावा उन्हें फिल्म तारे जमीं पर और चिट्टगॉग के एक गाने के लिए नेशनल अवॉर्ड से भी सम्मानित किया जा चुका है. 

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