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Review: 50 के दशक का गांव और थियेटर प्ले देखने वालों को पसंद आएगी पंचलैट

पंचलैट फणीश्वर रेणु नाथ की कहानी पर आधारित फिल्म है. इसमें 1955 के एक गांव की कहानी दिखाई गई है. फिल्म में गांव का समाज किस तरह का होता है, यह दिखाने की कोशिश की गई है. इससे पहले रेणु की कहानी 'मारे गए गुलफाम' पर शैलेंद्र ने राज कपूर को लेकर 'तीसरी कसम' बनाई थी.

फिल्म का एक दृश्य फिल्म का एक दृश्य
अनुज कुमार शुक्ला
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  • 17 नवंबर 2017,
  • अपडेटेड 2:38 PM IST

फिल्म : पंचलैट

डायरेक्टर: प्रेम प्रकाश मोदी

स्टार कास्ट: अमितोष नागपाल, अनुराधा मुखर्जी, अनिरुद्ध नागपाल, यशपाल शर्मा, राजेश शर्मा, पुनीत तिवारी

अवधि: 2 घंटा 55 मिनट

सर्टिफिकेट: U

रेटिंग: 2 स्टार

पंचलैट फणीश्वर रेणु नाथ की कहानी पर आधारित फिल्म है. इसमें 1955 के एक गांव की कहानी दिखाई गई है. फिल्म में गांव का समाज किस तरह का होता है, यह दिखाने की कोशिश की गई है. इससे पहले रेणु की कहानी 'मारे गए गुलफाम' पर शैलेंद्र ने राज कपूर को लेकर 'तीसरी कसम' बनाई थी.

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कहानी

रेणु की कहानी के आधार पर फिल्म में जिस गांव को दर्शाया गया है उसमें अलग-अलग टोले हैं. ये टोले जातीय आधार पर बने हैं. जैसा कि 1955 के दौर इमं होता था. गांव में महतो, ब्राह्मण, कायस्थ और यादवों का टोला है. इन टोलों का एक-दूसरे के साथ किस तरह रहन-सहन है, क्यों एक टोला, दूसरे के साथ नहीं जाता है- दिखाया गया है. कहानी के केंद्र में महतो टोला है जो दूसरे टोला की तरफ नहीं जाता. महतो टोला में एक गोधन नाम (अमितोष नागपाल) नाम का लड़का है. उसके माता-पिता की मौत हो जाती है. वह नानी के गांव उनकी की जमीन-जायदाद लेने के लिए वापस आता है. उसका जन्म किसी और गांव में हुआ रहता है. हालांकि महतो टोले के लोग नहीं चाहते कि उसे नानी की जायदाद मिले. वापस लौटने पर महतो टोला के लोग को किस तरह अपने टोले से निकाल देते हैं इसका पता फिल्म देखने पर चलेगा. गांव में रासलीला का आयोजन होता है. इस दौरान बहुत सारे ट्विस्ट सामने आते हैं पंचलैट टोलों के सम्मान का प्रतीक है. दूसरे टोलों के पास यह पहले से है. महतो टोला के लोग भी पहली बार एक पंचलैट (एक तरह की लालटेन) खरीदकर लाते हैं. लेकिन उनके टोले में क्सिई को पंचलैट जलाना नहीं आता. उसे जलाने का काम वही गोधन करता है जिसे गांव के बाहर निकाल दिया जाता है. इस तरह हंसी-खुशी फिल्म ख़त्म हो जाती है.

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क्यों देख सकते हैं फिल्म ?

अगर 50 के दशक का गांव देखना हो, रेणु की कहानिया पसंद हैं तो फिल्म देख सकते हैं. फिल्म में टोलों के अलग-अलग मजेदार किरदार हैं. इन किरदारों के हिसाब से फिल्म काफी अच्छी बनी है. यूपी-बिहार की भाषा, वहां के गीत, बातचीत का तरीका बहुत मजेदार तरीके से दिखाया गया है. फिल्म में उत्तर भारत का एक फ्लेवर देखने को मिलता है.

अभिनय और निर्देशन

फिल्म का डायरेक्शन काफी अच्छा है. लोकेशन खूबसूरत बन पड़ा है. फिल्म के संवाद भी कहानी के हिसाब से काफी अच्छे हैं. फिल्म में देखने के लिए अलग-अलग रस मिलते हैं. अमितोष नागपाल और यशपाल शर्मा जैसे मझे अभिनेताओं ने बढ़िया एक्टिंग की है. अभिनय और कास्टिंग के लिहाज से ये एक बढ़िया फिल्म बन पड़ी है.

क्यों न देखें फिल्म

21वीं सदी में हर तरह के लोग शायद फिल्म को पसंद न करें. जिन्हें ड्रामा और थियेटर प्ले पसंद हैं, उन्हें फिल्म ज्यादा पसंद आएगी. दरअसल, इस फिल्म में कॉमर्शियल वैल्यू या तड़क-भड़क वाले गाने और सीन, बड़ी स्टार कास्ट नहीं है. फिल्म को दर्शाने का ढंग भी टिपिकल प्ले जैसा है.

फिल्म का बजट

फिल्म का बजट बहुत बड़ा नहीं है. ये काफी पहले बनकर तैयार हो गई थी. कम बजट की फिल्म को स्क्रीन्स भी कम मिले हैं. देखना दिलचस्प होगा कि किस तरह ये फिल्म बॉक्स ऑफिस पर कमाई करती है. क्योंकि इसके साथ ही तुम्हारी सुलु और दूसरी फ़िल्में भी रिलीज हो रही हैं.

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