
पहले लोग पूछते थे, अब मैं ख़ुद से पूछता हूं कि इस साल नहीं निकला तो क्या करूंगा... दिल्ली के मुखर्जी नगर में रहकर कई सालों से सिविल सर्विसेज़ (UPSC) की तैयारी कर रहे लोगों के बीच जब बैठा तो टीवीएफ की एक सीरीज़ में सुनी इस लाइन से असलियत में मुलाकात हो गई. पता चला कि 'तैयारी' शब्द अपने आप में कितना वज़नदार है. गांव की गलियों से निकलकर आए लोगों के ज़ेहन से गांव निकल चुका है. थकी हुई आंखें किताबों में धंसती जा रही हैं.
ऐसी कई कहानियों को हमने वेबसीरीज के ज़रिये भी देखा, जिसमें सबसे ज्यादा चर्चा में रही टीवीएफ की सीरीज- एस्पिरेंट्स. शुरुआत में लिखी गई लाइन भी उसी वेबसीरीज की है. यूट्यूब पर आते ही इस सीरीज ने देखने वालों के दिल में जगह बना ली. और सबसे ज्यादा जिस किरदार ने लोगों का दिल जीता, वो था- संदीप भैया.
हाल ही में संदीप भैया पर डेडिकेटेड सीरीज का ऐलान हुआ और आज ये आर्टिकल लिखे जाने तक सीरीज के चार एपिसोड रिलीज किये जा चुके हैं. जिस तरह से इस किरदार को प्यार मिला उससे साफ़ ज़ाहिर है कि अब संदीप भैया को लेकर कैसा क्रेज़ रहेगा. यूट्यूब पर ट्रेंड कर रहे सभी एपिसोड इस बात के गवाह हैं कि टीवीएफ की ये सीरीज हिट हो चुकी है.
प्रयागराज में अफसर बनने की उम्मीद टूटी तो दिल्ली का रास्ता पकड़ने वाले संदीप भैया, अपने पहले एपिसोड में मूल्यांकन करते नजर आते हैं. यूपीएससी की तैयारी कर रहे बच्चों की कॉपी चेक करना और उन्हें बताना कि अभी और कितनी मेहनत लगेगी. 'संदीप भैया' की मेहनत का मूल्यांकन तो उनके फैन्स ने कर दिया है. सीरीज़ यूट्यूब पर ट्रेंडिंग की लिस्ट में है. अब तक चार एपिसोड आने के बाद सोशल मीडिया पर अगला कब आएगा की उम्मीद बढ़ चुकी है.
सीरीज में अपने किरदार से लेकर जिंदगी में सबसे अहम किरदार तक... 'संदीप भैया' यानी सनी हिंदुजा (Sunny Hinduja) का कहना है कि वो बहुत लकी रहे कि उन्हें अपने घर की तरफ से काफी सपोर्ट मिला. कई बार इंजीनियरिंग कर रहे स्टूडेंट को थर्ड ईयर तक आते-आते लग जाता है कि वो इंजीनियरिंग के लिए तो नहीं बना, लेकिन सनी इंजीनियरिंग करने से पहले ही यह बात जानते थे कि वो डिग्री मिल जाने के बाद भी इंजीनियर तो नहीं बनेंगे.
AajTak.In के साथ बातचीत में सनी ने बताया कि एक वक़्त बाद उन्हें यह पता चला कि एक्टर बनना तो दरअसल उनके पिता का सपना था, लेकिन किसी वजह से वो पूरा नहीं हो सका. ऐसे में जब मैंने अपने घर में यह बताया कि मैं एक्टर बनना चाहता हूं तो सब खुश थे. पापा ने कितनी ही कोशिश भी की थी कि सनी के बड़े भाई एक्टिंग करियर को अपनाएं लेकिन शायद वो इस फील्ड के लिए नहीं थे. उनका आसमान कोई दूसरा था, सो किस्मत से मेरे हिस्से पापा का सपना आया.
मध्य प्रदेश से लेकर दुबई फिर दुबई से मुंबई वाया पुणे पहुंचने वाले सनी अभी ऐसे किरदार तक नहीं पहुंचे हैं, जहां वो यह कह सकें कि ये मैं हूं... बल्कि उनका कहना है कि सनी कुछ नहीं है. वो हर एक किरदार को ख़ुद में ढाल लेने वाला एक शख्स है. जो एक बहते पानी की तरह है. सनी अपने जीवन के सफ़र में अपनी लाइफ पार्टनर के सबसे ज्यादा शुक्रगुजार हैं. उनका मानना है कि शिंजिनी ने जितना साथ दिया उसके लिए उनका जितना शुक्रिया किया जाए कम ही रहेगा. वो उस नींव की तरह हैं जो दिखाई नहीं देतीं, लेकिन पूरी की पूरी इमारत उसी पर टिकी होती है.
वहीं फिल्म में एक हरियाणवी कैरेक्टर का किरदार निभाना कितना मुश्किल रहा इस पर 'संदीप भैया' का कहना था कि ये काफी चैलेंजिंग था. आपका बॉडीलैंग्वेज, भाषा... एक एक चीज पर पूरी शिद्दत से काम किया गया है. हालांकि एक एक्टर के लिए यही सबसे बड़ा टास्क होता है कि वो अपने किरदार को ईमानदारी से निभा जाए. यही मैंने भी किया और नतीजा सबके सामने है. लोगों का प्यार मिल रहा है और क्या ही चाहिए.
मर्दानी, शहजादा जैसी बड़े पर्दे की फिल्म के साथ मनोज बाजपेई की फेमस वेब सीरीज 'फैमिली मैन' में भी सनी नजर आए. ऐसे में बीच-बीच में बड़े पर्दे पर हाथ आजमाने वाले सनी, टीवीएफ की दुनिया में सिक्का जमा चुके हैं यह उनके हुनर का सबसे बड़ा सबूत है.
आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है हमारी... एस्पिरेंट्स में संदीप भैया का एक ये डायलॉग काफी वायरल हुआ. लोगों को जैसे धक से जाकर लगा. खासकर उन लोगों को जो दूर-दराज से आकर नए शहर में तैयारी नाम के एक बैटल ग्राउंड में उतर जाते हैं. इस पर सनी का कहना है कि खुद पर यकीन रखना ही इस बैटल ग्राउंड में आपका सबसे बड़ा हथियार है.
प्लान A कैसे बेहतर काम करे इसके लिए प्लान B रखना होगा. असल में देखा जाए तो मेरे जीवन में प्लान बी जैसा कुछ रहा ही नहीं. जो बात मैंने ऊपर कही मैं खुद भी उस पर अमल करता हूं. मेरा तय था कि मैं एक्टिंग ही चुनूंगा, ऐसे में मेरा प्लान बी यही था कि कैसे प्लान ए बेहतर से बेहतरीन हो.
अभी तक के एक्टिंग करियर में कुछ फ़िल्में ऐसी रहीं जो आजतक रिलीज नहीं हुईं. कुछ ऐसी कि जिनमें स्क्रीन टाइम कम मिला... लेकिन इन सब के बीच किसी मलाल का बस्ता उठाए बिना सनी अभी अपने उस किरदार को तलाश रहे हैं जिसके बाद वो एक गहरी सांस लें और कहें- ये है सनी हिंदुजा. हालांकि उससे पहले समय की उठापटक और आपाधापी के बीच मायानगरी में सनी आज संदीप भैया बन चुके हैं. अब तो मैं भी उन्हें संदीप भैया ही कहने लगा हूं. भूल जाता हूं कि ये तो सिर्फ एक किरदार है.
मुंबई की लोकल हो या दिल्ली की मेट्रो, घर से निकले लोग अब हाथ में मोबाइल और सिर झुका कर उसमें किसी सीरीज, गाने का वीडियो या रील देखते मिल जाएंगे. बीते दिनों दिल्ली मेट्रो की ब्लू लाइन पर सफ़र करते हुए मैंने पाया कि उस कोच में ज्यादातर लोग 'संदीप भैया' का ही एपिसोड देख रहे थे. संदीप अब सिर्फ एक किरदार नहीं हैं, अनगिनत लोगों ने संदीप में कभी ख़ुद को तो कभी अपने सबसे करीबी को पाया. यही एक एक्टर की जीत है. सबसे बड़ी जीत. जो किसी भी अवॉर्ड से बढ़कर होती है, कि जब लोग उसके किरदार को जीने लगते हैं.
पाश ने एक कविता में कहा था, 'सबसे ख़तरनाक होता है हमारे सपनों का मर जाना.' आपके सपने मर जाएंगे तो आप क्या करेंगे? किसके पीछे भागेंगे? कहां जाएंगे? उन लोगों के पास लौटेंगे जो तुम्हारे अफसर बन जाने के इंतज़ार में हैं? इंतज़ार में हैं कि उनके गांव का लड़का अगर कलेक्टर बन गया तो उनका पूरा गांव कलेक्टर बन जाएगा.
सीरीज में एक पिता है जिसे खबर ही नहीं कि उसके बेटे के गले में एक 'न' फंस के रह गयी है. एक प्रेमिका जो हर बार यही सोचती है कि इस बार उसका प्रेमी अफसर बनकर हाथ मांगने आएगा. और एक संदीप हैं जो लगभग हार चुके होते हैं. सपनों का पीछा करते हुए आदमी कहां से कहां पहुंच जाता है. लेकिन इस सब के बीच खुद को कितना बैलेंस रखना है, कैसे खुद को बचाए रखना है... इसे संदीप भैया ने बखूबी समझा दिया है.