
सत्यजित रे भारतीय सिनेमा के एकमात्र ऐसे पुरोधा हैं, जिनका दामन पद्मश्री से पद्म विभूषण तक और ऑस्कर अवाॅर्ड से लेकर दादासाहेब फाल्के पुरस्कार व 32 राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों से भरा है. भारतीय सिनेमा की 20वीं शताब्दी पर गौर करें तो कोई भी बात सत्यजित दा का जिक्र किए बिना अधूरी रहेगी.
वह जाने-माने फिल्म निर्माता ही नहीं, बल्कि भारतीय सिनेमा की पहचान बन चुके हैं. उन्हें बेहतरीन फिल्मों के लिए जाना जाता है. उन्होंने अपनी फिल्मभाषा गढ़ी. उनकी कृतियों को किसी भाषा के दायरे में बांधा नहीं जा सकता. अपनी बहुमुखी प्रतिभा की बदौलत सत्यजित भारतीय सिनेमा को विश्व फलक तक ले गए.
सिनेमा के पर्दे पर कई कहानियों को खूबसूरती से उतारने वाले महान फिल्मकार सत्यजीत रे की खुद की प्रेम कहानी भी बहुत रोचक थी. हालांकि राय की शादी में कई अप्रत्याशित मोड़ आए लेकिन उनकी प्रेम कहानी ने सुखद मुकाम पाया. सत्यजीत रे की पत्नी विजया ने अपनी जीवनी में इन बातों का खुलासा किया है.
अपनी जीवनी 'माणिक एंड आई' में दिवंगत निर्देशक की पत्नी विजया ने अपनी प्रेम कहानी के रोमांचक पहलुओं का खुलासा करते हुए लिखा है कि उन दोनों के प्रेम संबंध आठ साल तक चलते रहे, इसके बाद दोनों ने गुप्त रूप से शादी कर ली और उसके बाद अपने अपने परिवारों को मनाने के लिए योजना बनाई.
पेंगुइन प्रकाशन द्वारा प्रकाशित इस किताब में विजया ने लिखा है कि वह किशोरावस्था से ही ऑस्कर विजेता फिल्मकार सत्यजीत रे की दोस्त थीं. लेकिन 1940 में पहली बार दोनों के बीच प्रेम की भावना अंकुरित हुई.
इसके बाद वह और राय एक दूसरे के दीवाने हो गए लेकिन तब उन्हें लगा कि वह कभी भी शादी नहीं कर सकेंगे क्योंकि उनके परिवार वाले कभी उन दोनों का रिश्ता स्वीकार नहीं करेंगे. विजया ने लिखा है, 'वह मुझसे उम्र में छोटे थे और एक करीबी रिश्तेदार थे. इस वजह से शादी की संभावना ही नहीं थी. इसलिए हम दोनों ने फैसला किया कि हम कभी शादी नहीं करेंगे. हम चाहते थे कि हमारी जिंदगी जैसी थी वैसे ही चलती रहे.'
इसके बाद विजया जब फिल्मों में काम की तलाश में मुंबई आई तो राय ने उन्हें प्रेम पत्र लिखने शुरू कर दिए और वह अक्सर उनसे मिलने कोलकाता से मुंबई आने लगे.
सत्यजीत रे और विजया के बीच लगातार होती मुलाकातों से उनका प्रेम और गहरा हुआ और दोनों को लगने लगा कि अब वह एक दूसरे के बिना नहीं रह सकते, बस फिर उन्होंने शादी कर ली.
इसके बाद दोनों ने मुंबई में राय के परिवार वालों को बताए बिना रजिस्ट्री मैरिज करने की योजना बनाई. विजया की मां ने उनकी योजना खारिज कर दी. लेकिन प्रेमी युगल ने विजया की मां के रुख को दरकिनार करते हुए 20 अक्टूबर, 1949 को विजया की बहन के घर पर शादी कर ली.
इसके बाद एक छोटे प्रीतिभोज का आयोजन किया गया जिसमें गुजरे जमाने के प्रसिद्ध थियेटर और फिल्म अभिनेता पृथ्वी राज कपूर अपनी पत्नी समेत आए थे.
विजया ने लिखा है, 'मैंने कभी नहीं सोचा था कि मेरी सचमुच उनसे शादी हो सकेगी और जब ऐसा हुआ तब हम इससे खुश भी हुए और हमें दुख भी हुआ क्योंकि हमें अपनी शादी छिपानी थी. हम एक साथ रह भी नहीं सकते थे.'
'पाथेर पांचाली', 'अपूर संसार' जैसी कालजयी फिल्म बनाने वाले राय ने अपने पारिवारिक मित्र और चिकित्सक नोशो बाबू को अपने और विजया के बारे में सब कुछ बता दिया. तब नोशो बाबू ने उन्हें अपनी मां को मनाने के लिए एक चालाकी भरी योजना बताई.
राय ने अपनी शादी का खुलासा किए बिना अपने घर में घोषणा कर दी कि वह विजया के अलावा किसी और से शादी नहीं करेंगे.
अनिच्छापूर्वक और बहुत ज्यादा मनाने के बाद राय की मां मान गईं और तीन मई, 1949 को दोबारा उनकी शादी हुई. इस बार उनकी शादी बंगाली रीति रिवाजों के अनुसार हुई.
विजया ने लिखा है, 'मैं बेहद खुश थी. पहले मुझे लगा था कि मैं कभी भी उनसे शादी नहीं कर पाऊंगी लेकिन अब हम दूसरी बार शादी कर रहे थे.'