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REVIEW: पिता-पुत्र के रिश्तों को दिखाती है 'रुख'

मनोज बाजपेयी की फिल्म रुख सस्पेंस से भरी है. ये एक-पिता पुत्र के रिश्ते की कहानी है. पढ़ें फिल्म समीक्षा.

रुख रुख
महेन्द्र गुप्ता
  • मुंबई,
  • 26 अक्टूबर 2017,
  • अपडेटेड 12:05 AM IST

फिल्म का नाम : रुख

डायरेक्टर: अतानु मुखर्जी

स्टार कास्ट: मनोज बाजपेयी , स्मिता ताम्बे, आदर्श गौरव, कुमुद मिश्रा

अवधि:1 घंटा 46 मिनट

सर्टिफिकेट: U /A

रेटिंग: 3 स्टार

'रुख' शब्द के अलग-अलग मायने होते हैं, पहला इसको दिशा के नाम से भी जानते हैं और वहीं रुख का मतलब 'एटीट्यूड' और 'चेहरा' भी होता है. अतनु मुखर्जी के निर्देशन में बनने वाली ये पहली फिल्म है. इसमें परिवार के रिश्तों पर आधारित एक सरल कहानी दर्शाने की कोशिश भी की गई है.

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कहानी

यह कहानी मुंबई के रहने वाले दिवाकर माथुर (मनोज बाजपेयी) और उसकी पत्नी नंदिनी (स्मिता ताम्बे) से शुरू होती है, दिवाकर एक फैक्ट्री में रोबिन (कुमुद मिश्रा) के साथ पार्टनर है लेकिन एक दिन ऐसा आता है जब सड़क दुर्घटना में दिवाकर की मृत्यु हो जाती है और इस बात का पता जब बोर्डिंग स्कूल में पढ़ने वाले दिवाकर के 18 साल के बेटे ध्रुव (आदर्श गौरव) को चलता है तो वो अपनी मां, दादा और नानी के पास रहने लगता है. कहानी में ट्विस्ट तब आता है, जब ध्रुव को पता चलता है कि उसके पिता की मौत के पीछे बहुत सारी बातें हैं, जिसका पता वो एक-एक करके निकालने की कोशिश करता है. ध्रुव का साथ उसके दोस्त और आस पास के लोग देते हैं. अंततः क्या होता है, इसका पता आपको थिएटर तक जाकर ही चल पाएगा.

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क्यों देखें?

फिल्म का सब्जेक्ट काफी सरल है , लेकिन जिस तरह से एक-एक करके परतें खुलती हैं, उससे फिल्म की गहराई का पता चलता है. डायरेक्शन, लोकेशन कैमरा वर्क बहुत बढ़िया है. साथ ही पिता-पुत्र के रिश्तों को बड़े ही सरलता के साथ दर्शाया गया है .इस कहानी में बेटे और मां के बीच की एक अलग तरह के केमिस्ट्री सामने आती है. फिर इस सफर का हिस्सा बेटे के दोस्त भी बनते हैं. इस तरह के रिश्तों को हिंदी फिल्मों में कम ही दिखाया गया है. मनोज बाजपेयी का उनके पिता के साथ रिश्ता, वहीँ मनोज बाजपेयी का उनके बेटे के साथ रिलेशन भी सहज तरीके से दिखाने की कोशिश की गयी है. मां के किरदार को भी प्रगाढ़ बनाने में डायरेक्टर ने कोई कमी नहीं छोड़ी है. अभिनय की बात करें तो एक बार फिर से मनोज बाजपेयी ने गजब का परफॉरमेंस दिया है और उनकी फ्री फ्लो अदायगी बस देखने लायक है वहीं मां का किरदार अभिनेत्री स्मिता ताम्बे ने काफी सहज निभाया है. आदर्श गौरव ने बेटे के रूप में बढ़िया अभिनय किया है जिसकी प्रशंसा की जाएगी. बाकी कुमुद मिश्रा के साथ साथ जयहिंद का काम भी बहुत उम्दा है. कास्टिंग के हिसाब से फिल्म सटीक है. वहीं दोनों गाने 'है बाकी' और 'खिड़की' अच्छे हैं और स्क्रीनप्ले के साथ चलते हैं. बैकग्राउंड स्कोर भी अच्छा है. कनेक्ट करना आसान हो जाता है.

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कमज़ोर कड़ियां

यह फिल्म मसाला फिल्म नहीं है और काफी गहन बातों के साथ आगे बढ़ती है, जिसका जायका शायद सभी को पसंद ना आये, फिल्म काफी धीमे धीमे चलती है यानी इसकी रफ़्तार कमजोर है, जिसको एडिट करके और क्रिस्प किया जाता तो ज्यादा दिलचस्प बन जाती . फिल्म की कहानी तो सरल है लेकिन ट्रीटमेंट और भी सस्पेंस से भरा जाता तो शायद ज्यादा रोचक लगती, हालांकि जिन्हें इस तरह का सिनेमा पसंद है, वो जरूर थिएटर तक जाएंगे.

बॉक्स ऑफिस

वैसे काफी कम बजट की ये फिल्म है और इसकी रिलीज भी मेकर्स ने सीमित रखी है क्योंकि उन्हें फिल्म का मिजाज पता है, अब देखना दिलचस्प होगा की जहां एक तरफ पहले से ही सीक्रेट सुपरस्टार और गोलमाल अगेन बॉक्स ऑफिस पर जगह पकडे हुए हैं, वहीँ इसी हफ्ते जिया और जिया फिल्म भी रिलीज की जा रही है, इस बीच रुख को कितनी स्क्रीन्स मिलती हैं, और वर्ड ऑफ़ माउथ सही रहा तो मेकर्स को फायदा जरूर होगा.

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