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बजट: सिनेमा इंडस्ट्री को नरेंद्र मोदी सरकार ने दिए हैं ये तोहफे, अब इसकी है दरकार

बजट से सिनेमा इंडस्ट्री को भी बहुत उम्मीदें हैं. मल्टीप्लेक्स के महंगे टिकट, पाइरेसी और सिंगल स्क्रीन्स का लगातार खत्म होना अभी भी एक बड़ी चुनौती है.

बॉलीवुड सितारों के साथ पीएम नरेंद्र मोदी. बॉलीवुड सितारों के साथ पीएम नरेंद्र मोदी.
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 04 जुलाई 2019,
  • अपडेटेड 7:23 PM IST

बजट से यूं तो आम नागरिक हर साल उम्मीदें रखता है, लेकिन आम लोगों के साथ ही साथ हाई प्रोफाइल सेलेब्स की निगाह भी बजट पर होने जा रही है. पिछले कुछ समय में नरेंद्र मोदी सरकार और सिनेमा के कई रसूखदार लोगों को साथ देखा गया है. साउथ मुंबई में भी नरेंद्र मोदी ने फिल्म डिविजन प्रॉपर्टी पर फिल्म म्यूज़ियम का उद्घाटन किया था और कई बॉलीवुड स्टार्स पीएम मोदी के साथ तस्वीर खिंचवाते हुए नज़र आए थे.

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मोदी ने अपने पहले कार्यकाल में सिनेमा उद्योग के लिए कुछ घोषणाएं की थीं. सिनेमा इंडस्ट्री इस साल भी मोदी सरकार से कुछ राहत की उम्मीद में है. बताने की जरूरत नहीं कि फिल्म इंडस्ट्री रोजगार देने के मामले में काफी अग्रणी क्षेत्र रहा है. कंसलटेन्सी डेलॉइट के मुताबिक साल 2017 में भारतीय फिल्म इंडस्ट्री ने 2 लाख 50 हज़ार लोगों को रोजगार दिया था वहीं चार साल पहले ये संख्या महज 160,800 थी. यही वजह है कि सरकार भी इस इंडस्ट्री की ग्रोथ से उत्साहित है.

पाइरेसी को खत्म करने के लिए भी मोदी सरकार ने सिनेमाटोग्राफ एक्ट में एंटी कैमकॉर्डिंग प्रोविज़िन की शुरूआत की है. भारत हर साल 2.5 बिलियन डॉलर्स ऑनलाइन पाइरेसी के चलते गंवा देता है. भारतीय रुपये में ये रकम बहुत बड़ी है. हर साल देश के कई फिल्म निर्माताओं की कमाई पर पाइरेसी के चलते फर्क पड़ता है. एंटी कैमकॉर्डिंग के सहारे पाइरेसी पर लगाम लगाने की कोशिश होगी. हालांकि ये कदम कितना कारगर साबित होगा, ये आने वाला वक्त ही बताएगा.

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मोदी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में एक और महत्वपूर्ण कॉन्सेप्ट भारतीय फिल्मकारों के लिए शुरू किया था. फरवरी में अंतरिम बजट में सिंगल विंडो क्लीयरेंस की घोषणा करते हुए पीयूष गोयल ने कहा था कि सिंगल विंडो क्लीयरेंस पहले सिर्फ विदेशी फिल्ममेकर्स को ही उपलब्ध था. लेकिन अब ये भारतीय फिल्मकारों के लिए भी उपलब्ध होगा. इससे फिल्ममेकर्स को देशभर में शूटिंग को लेकर जगह-जगह परमिशन लेने की जरूरत नहीं पड़ेगी और सभी पेपरवर्क को एक फाइनल अथॉरिटी से परमिशन लेने के बाद शूटिंग शुरू की जा सकेगी. इससे फिल्ममेकर्स का काफी समय और एनर्जी बचेगी और फिल्में बनाने में कम अड़चनें आएंगी.  

मल्टीप्लेक्स कल्चर के आने के बाद से ही मिडिल क्लास और लोअर मिडिल क्लास टिकटों की कीमतों पर हर बार सवाल उठाता आया है. सरकार ने 100 रुपये से अधिक की टिकट पर 18 प्रतिशत जीएसटी घटाकर 12 प्रतिशत कर दिया था. वहीं 100 से कम टिकट पर लगाने वाले 28 प्रतिशत जीएसटी को 18 प्रतिशत कर दिया था. हालांकि फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े लोग इससे भी खास खुश नहीं है. इंडस्ट्री सरकार से और रियायत की उम्मीद कर रही है.

पिछले कुछ सालों में मल्टीप्लेक्स कल्चर के पनपने और सिंगल स्क्रीन थियेटर्स के खत्म होने कगार तक पहुँचने के बाद से क्षेत्रीय फिल्मों को काफी नुकसान हो रहा है. बॉलीवुड ही नहीं बल्कि भोजपुरी, पंजाबी और दूसरी भारतीय भाषाओं के कई छोटे सिनेमा बाजार सिनेमाघरों की किल्लत का सामना कर रहे हैं. ऐसे में सिंगल स्क्रीन थियेटर्स पर फोकस जैसी कुछ चीज़ें हैं जिसके चलते क्षेत्रीय सिनेमा को ग्रो करने में मदद मिल सकती है.

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आजमगढ़ से चुनाव लड़ने वाले भोजपुरी एक्टर निरहुआ ने इस संबंध में पहल भी शुरू कर चुके हैं. वे हाल ही में लखनऊ में एक प्रोग्राम में शामिल हुए थे जिसका फोकस था हर तहसील में एक सिनेमा. निरहुआ इस प्रोग्राम के सहारे भोजपुरी फिल्मों के लिए अपने राज्य में हर तहसील में सिंगल स्क्रीन सिनेमा को लॉन्च करने की कोशिश में है. पार्टी की सरकार होने से उनके प्रयास के अच्छे नतीजे मिल सकते हैं. हर इलाके में थियेटर्स की कमी से फिल्म निर्माण और उसके वितरण में एक अच्छा कारोबार फल फूल सकता है. 

सरकार को भी इस बारे में पहल करनी चाहिए. ताकि स्क्रीन्स पर बड़े बजट की फिल्मों का एकाधिकार खत्म हो. अगर स्क्रीन्स की सुविधा होगी तो छोटे बजट और क्षेत्रीय भाषा की फिल्मों को बाजार मिलेगा. जाहिर सी बात है कि फिल्मों के निर्माण में तेजी आएगी और एक सिनेमा एक व्यापक दर्शक वर्ग तक पहुंचेगा. भारत में इसका फायदा सबको मिलेगा.   

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