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Mahabharata 6 May Update: कैसे हुआ युधिष्ठिर-भीम और अर्जुन का जन्म?

aajtak.in
  • 07 मई 2020,
  • अपडेटेड 3:24 PM IST
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इन दिनों कलर्स पर बीआर चोपड़ा की महाभारत चल रही है. बुधवार के एपिसोड में दिखाया गया कि राजमाता सत्यवती ने पाण्डू को हस्तिनापुर का महाराज घोषित कर दिया. लेकिन सत्यवती को फिर से हस्तिनापुर के उत्तराधिकारी की चिंता सताने लगी इसलिए उन्होंने भीष्म को धृतराष्ट्र के विवाह की जिम्मेदारी दी.

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सत्यवती का प्रस्ताव लेकर भीष्म गंधार देश पहुंच गए, धृतराष्ट के लिए वहां की राजकुमारी गांधारी का हाथ मांगने. गांधारी की पिता सुबल और भाई शकुनि ने धृतराष्ट्र के अंधे होने पर इस रिश्ते से आपत्ति जताई लेकिन गांधारी ने धृतराष्ट्र को अपना पति मान लिया और अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली. भीष्म और राजा सुबल ने गांधारी को आशीर्वाद दिया. शकुनी अपनी बहन को लेकर हस्तिनापुर पहुंचे और वहां धृतराष्ट्र और गांधारी का विवाह हुआ.

विवाह के बाद धृतराष्ट्र ने गांधारी से कहा भी आंखों की पट्टी खोलने के लिए लेकिन गांधारी ने मना कर दिया और कहा - 'ईश्वर ने आपको सपने देखने के लिए रचा है, अब ये आप पर है कि आप कैसे और किस रंग के सपने देखते हैं. इसपर धृतराष्ट ने अपनी विवशता दिखाई और बातों-बातों में हस्तिनापुर का राज सिंहासन हाथों से जाने का दुख भी जताया!
 

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वहीं कुंती के स्वयंवर में महाराज कुन्तिभोज ने कुंती का परिचय कराया और बताया की कुंती का असली नाम प्रथा है. जब महाराज कुन्तिभोज ने प्रथा को गोद लिया तो उनका नाम कुंती रखा. कुंती का परिचय कराने के बाद स्वयंवर की प्रक्रिया शुरू हुई और कुंती ने हस्तिनापुर नरेश पाण्डु को अपना पति मान लिया.महाभारत में राजकु्मारी उत्तरा

दूसरी ओर हस्तिनापुर में राजगद्दी को लेकर धृतराष्ट्र की चिंता बढ़ने लगी कि यदि उनसे पहले पाण्डू को पुत्र हो गया तो हस्तिनापुर का उत्तराधिकारी वो कहलाएगा.

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विवाह के बाद पाण्डू और कुंती हस्तिनापुर आते हैं और कुंती अपने अतीत में खो जाती हैं जहां कुंती के कुंवारेपन में ऋषि दुर्वासा कुंती की सेवा से खुश होकर उन्हें वरदान में ऐसा मंत्र देते हैं जिसे जप कर कुंती किसी भी देवता का आवाहन कर सकती हैं. कुंती ने सूर्य को देखकर मंत्र का जप किया और उनके सामने सूर्य देवता प्रकट हो गए.

सूर्य देवता ने दुर्वासा के दिए मंत्र का फल दिया और कहा - मैं तुम्हें एक पुत्र दूंगा. इसपर कुंती ने कहा कि वो कुंवारी हैं, उनकी बदनामी होगी, तो सूर्य देवता ने कहा- चिंता ना करो, तुम्हारे कुंवार्य को कोई ठेस नहीं पहुंचेगी, तुम्हारा पुत्र हमारे कवच और कुंडल सहित जन्म लेगा, वो दानवीर कर्ण के नाम से प्रसिद्ध होगा. ऐसा कहकर सूर्य देवता वहां से चले गए और कुंवारी कुंती की गोद में बालक दे गए. समाज के कलंक से बचने के लिए कुंती ने बालक कर्ण को लकड़ी के बक्से में डालकर नदी में बहा दिया.

अपने अतीत को यादकर वो दुःखी होती है, उसी वक्त पाण्डू आते हैं जो हस्तिनापुर की सीमाओं को बढ़ाने के लिए युद्ध पर जाने की तैयारी करते हैं और कुंती क्षत्रिय धर्मानुसार उन्हें विदा करती हैं.

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हस्तिनापुर की सीमाओं को बढ़ाने लिए राजा पाण्डू युद्ध पर निकले, तभी उनकी मुलाकात हुई मद्र नरेश शल्य से. शल्य ने पाण्डू के सामने दोस्ती का प्रस्ताव रखा और भेंट में अपनी बहन माद्री का हाथ पाण्डू के हाथ में दे दिया. माद्री ने पाण्डू को अपना जीवनसाथी स्वीकार कर लिया. पाण्डू माद्री के साथ हस्तिनापुर लौटे. कुंती ने बिना सवाल किए माद्री की आरती कर उसका स्वागत किया और उसे अपनी छोटी बहन का दर्जा दिया. राजमाता सत्यवती, अम्बिका और अम्बालिका ने भी माद्री को आशीर्वाद दिया.

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पाण्डू विश्व विजयी होकर हस्तिनापुर लौटे तो युद्ध की थकान के बाद भीष्म ने उन्हें विश्राम करने का सुझाव दिया. ऐसे में राजा पाण्डू ने हस्तिनापुर का राज पाट अपने बड़े भाई धृतराष्ट्र को सौंप दिया और उन्हें राजगद्दी देकर अपनी दोनों रानियों संग विश्राम वाटिका चले गए. यहां हस्तिनापुर का राज पाट पाकर धृतराष्ट्र की खुशी का ठिकाना नहीं रहा और शकुनि ने भी धृतराष्ट्र के कान भरने शुरू कर दिए. पाण्डू के राजभवन से तपोवन वाले समाचार सुनकर शकुनि ने कहा ने कहा -" मैं तो यही चाहता हूं की पाण्डू तपोवन में रहे और आप यहां राजभवन में". इस पर जब धृतराष्ट्र ने आपत्ति जताई तो शकुनि ने कहा-" ये राज मुकुट पाण्डू का है ही नहीं, इसे तो विदुर के कपटी राजनीति ज्ञान ने आपके सिर से उतारकर उसके सिर पर रख दिया है".
 

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राजमाता सत्यवती ने भीष्म से धृतराष्ट्र तक आदेश पहुंचाया की वो पाण्डू को वापस राजभवन बुला लें. आदेश मिलते ही पाण्डु-कुंती और माद्री ने राजभवन जाने की तैयारी तो कर ली लेकिन उसी वक्त शेर की दहाड़ ने पाण्डू को उसका शिकार करने पर मजबूर कर दिया और वो शिकार खेलने वन की ओर निकल गए. पाण्डू ने शिकार के लिए अपने बाण से तीर छोड़ा, जो जा लगा ऋषि किंदम और उनकी पत्नी को.

मरते वक्त ऋषि किंदम ने पाण्डू को श्राप दिया और कहा-" मेरी वंश रेखा काटने वाले राजन, मैं तुम्हें ये श्राप देता हूं जिस क्षण तुम्हारा स्त्री से संगम होगा वही क्षण तुम्हारा अंतिम होगा".

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पाण्डू-कुंती और माद्री राजभवन आ गए. राजभवन आकर पाण्डू ने अपने हाथों हुई ऋषि किंदम और उनकी पत्नी की मृत्यु की खबर सभी को दी लेकिन इसका प्राश्चित करने के लिए उन्होंने वनवास जाने का निर्णय लिया और हस्तिनापुर की बागडोर अपने बड़े भाई धृतराष्ट्र को सौंप दी. पाण्डू के साथ कुंती और माद्री भी राजमाता सत्यवती, अम्बिका और अम्बालिका का आशीर्वाद लेकर वनवास के लिए चले गए. यहां शकुनि ने धृतराष्ट्र को राजा होने की बधाई दी.

वनवास में पाण्डू ने ऋषियों के साथ ब्रह्मलोक जाने का आग्रह किया लेकिन ऋषियों ने उन्हें रोक दिया और कहा- ना तुम सिद्ध पुरुष हो, ना ही संसार त्याग सन्यासी, संतानहीन हो तुम, पृथ्वी का ऋण हैं तुम पर, जब तक ये ऋण पूरा नहीं होता तुम ब्रह्मलोक नहीं जा सकते". इस बात चिंतित होकर पाण्डू ने कुंती को ऋषि किंदम के श्राप के बारे में बताया. कुंती ने भी ऋषि दुर्वासा के दिए मंत्र के बारे में पाण्डू को बताया. पाण्डू और कुंती ने इस वरदान का प्रयोग किया और धर्मराज, वायु और इंद्रा देवता का आवाहन किया जिससे उन्हें तीन पुत्र युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन की प्राप्ति हुई.

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