
कोलकाता से ताल्लुक रखने वाले ज्यादातर स्टार्स के लिए दुर्गा पूजा मात्र फेस्टिवल नहीं बल्कि एक इमोशन है. और इसी इमोशन और वाइव्स को महसूस करने दुर्गा पूजा के वक्त अपने शहर के लिए निकल पड़ते हैं.
टीना दत्ता पिछले 12 साल से मुंबई में हैं. टीना की कोशिश रहती है कि वो साल में भले एक दिन की भी छुट्टी न ले लेकिन दुर्गा पूजा के दिन जरूर कोलकाता पहुंचे. आजतक डॉट इन से एक्सक्लूसिव बातचीत के दौरान टीना दुर्गा पूजा की पुरानी यादों में खो जाती हैं और शेयर कर रही हैं कुछ मजेदार किस्से.
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कोविड की वजह दो साल नहीं जा पायी
पिछले दो सालों से टीना कोलकाता नहीं जा पाई हैं. इसपर कहती हैं, जब से कोविड आया है, उस साल से दुर्गा पूजा के लिए घर जाना नहीं हो पाया है. वर्ना दुर्गा पूजा एकमात्र ऐसा त्यौहार है कि जिससे सालभर में भले घर नहीं जाऊं लेकिन उस वक्त मेरा जाना कंपलसरी होता था. मैंने कोविड के इन दो सालों में कोलकाता की पूजा को बहुत मिस किया है.
इस साल फैमिली संग मुंबई में होगी पूजा
इस साल पूजा की प्लानिंग्स पर टीना कहती हैं, इस साल दुर्गा पूजा मेरे लिए थोड़ा स्पेशल है क्योंकि मुंबई में मां-पापा और भाई आए हुए हैं. उनके साथ क्वालिटी वक्त गुजारने का मौका मिला है. हालांकि यहां भी हम कोलकाता की वाइव को तो बहुत मिस करेंगे ही. मैं पिछले दिनों ही रांची एक इवेंट के सिलसिले में गई हुई थी. उस वक्त वहां का माहौल ही अलग होता है. वो खुशबू होती है, आप इस तरफ के होंगे, तो इससे जरूर रिलेट कर पाएंगे. पूरी हवा में ही उत्सव का माहौल होता है. जो कोलकाता और वहां के आसपास शहरों से हैं, वो ही इस बात को समझ पाएंगे.
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गणपति में फेस्टिव की वाइव्स नहीं मिलती
टीना के अनुसार कोलकाता के दुर्गा पूजा का कोई मेल नहीं है. टीना कहती हैं, मुझे ये बोलने में कोई हिचक नहीं है कि जो कोलकाता में दुर्गा पूजा का एहसास होता है, वो यहां गणपति के दौरान भी महसूस नहीं कर पाती हूं. हमारे यहां तो महाल्या से ही इसकी शुरुआत हो जाती है. यह एक अलग तरह का इमोशन है. रेडियो में आज भी वो आवाज कानों पर मिश्री की तरह घुलती है.
एक दिन ही सही, जाती जरूर हूं
टीना बताती हैं, कई बार वर्क कमिटमेंट की वजह से मेरे पास इतना वक्त नहीं होता था कि मैं पूरा फेस्टिवल मनाकर लौटूं. तो फिर भी मैं अष्टमी की मॉर्निंग फ्लाइट लेकर कोलकाता पहुंचती थी. दुर्गा मां के सामने मत्था टेकती और फिर रिलेटिव्स का आशीर्वाद लेकर रात को वापसी की फ्लाइट पकड़ लौट आती थी. मेरे लिए इतना भी काफी था.
पंडालों में पुष्पांजलि देने का अपना मजा होता है
अपनी पुरानी यादों को ताजा करते हुए टीना कहती हैं, मैं हमेशा अपने पैरेंट्स के साथ तैयार होकर पंडाल जाया करती थी. वहां बैठकर पूजा देखती और पुष्पांजलि देती थी. वो महौल ही कुछ और होता था. उस वक्त नई साड़ियां पहनकर लड़कों को दिखाना, खूबसूरत लगने की होड़, कजिन संग पंडाल में मस्ती, भोग के लाइन में खड़ा होना और बड़ों से पैसे वसूलना ये सब मुंबई में बहुत मिस करती हूं. हालांकि आज भी फोन पर अपने बड़ों से कहती हूं कि मेरे पैसे लिफाफे पर रख दें मैं आकर कलेक्ट कर लूंगी. इन सबकी अपनी एक अलग वैल्यू होती है.