
आंजन श्रीवास्तव 2 जून को अपनी जिंदगी के 75वें वसंत में प्रवेश करने जा रहे हैं. थिएटर से अपने करियर की शुरुआत करने वाले आंजन इन दिनों वाघले की दुनिया में श्रीनिवाश वाघले के किरदार में दर्शकों को एंटरटेन कर रहे हैं. अपने जन्मदिन के खास मौके पर वे हमसे बातचीत करते हैं.
जन्मदिन के क्या मायने हैं? इस मौके पर मिला कोई तोहफा, जो दिल में बस गया हो?
-मेरे बच्चें तो मुझे याद दिला रहे हैं कि मैं 75 साल का हो गया हूं. इन 75 सालों में ऐसी बहुत सारी न भूलने वालीं यादें रही हैं, जिन्हें समेट कर पाना मुश्किल है. मेरी मां द्वारा मनाया गया, जन्मदिन बहुत मिस करता हूं. मेरी मां हमेशा इस दिन मेरे लिए खीर बनाती थी और मुझे चंदन का टीका लगाया करती थी. तोहफा, तो यही है कि इन 75 सालों में मैंने बहुत कुछ पाया है. मेरे बच्चों ने 2 जून को मेरे लिए स्पेशल स्क्रीनिंग रखी है. जिसमें मेरे संग काम करने वाले कई कलाकार आ रहे हैं, जो मेरे साथ मेरी जर्नी का जश्न मनाएंगे.
एक एक्टर के साथ-साथ आपने 31 साल तक बैंक की नौकरी भी की थी. वजह क्या रही होगी?
-हां, ये मुझे थोड़ा बाकि के एक्टर्स से अलग करता है. मैं थिएटर को लेकर जुनूनी तो था ही, उस वक्त लेकिन पापा चाहते थे कि मैं कोई सिक्यॉर्ड जॉब कर अपने परिवार पर भी ध्यान दूं. बस फिर क्या बैंक की नौकरी कर ली. कलकत्ता में पोस्टिंग हुई थी. अपनी किस्मत आजमाने के लिए मुझे कैसे भी कर मुंबई आना था. मैंने मुंबई में तबादले के लिए अप्लाई भी किया था. लगभग 6 महीने बाद मुझे मुंबई सेंटर मिला. तबसे मैंने लगातार बैंक में काम करते हुए अपनी एक्टिंग के पैशन को भी जारी रखा था.
दोनों को बैलेंस कर पाने में कभी दिक्कत नहीं हुई?
-होती थी, बहुत दिक्कत होती थी. सुबह मैं बाबा जी के बाईस्कोप सीरियल करता था फिर दोपहर में बैंक में और रात को चेंबूर में राज बब्बर और स्मिता पाटील की फिल्म के लिए शूटिंग में पहुंचना होता था. लगातार दो तीन दिन तक ऐसे ही काम के बीच स्ट्रगल कर रहा था. मुझे तो तैयार तक होने की फुर्सत नहीं मिलती थी. कभी-कभी तो आउटडोर शूटिंग के वक्त मैं 25 दिन मुंबई से बाहर होता था. ओवर बर्डन तो था मैं, ऐसे ही 180 फिल्में नहीं कर ली हैं.हालांकि इस दौरान बैंक से बहुत मदद भी मिली. छुट्टियां मिल जाया करती थी और कई बार पैसे भी कट जाया करते थे. दरअसल बैंक को भी मुझसे फायदा मिलता था. मेरी पॉप्युलैरिटी की वजह सेल्स भी बढ़े थे. इसलिए हम दोनों ने अपना बैलेंस बखूबी बना लिया था.
इस दौड़-भाग में जब आकलन करने बैठते हैं, तो कभी सोचते हैं कि 'क्या खोया क्या पाया'?
मैंने इस जर्नी में पाया बहुत है. खोने की बात करें, तो बस लोगों का साथ खोया था. मैं बस अपना काम करता जाता हूं और मेरे ऊपरवाले ने मुझे उस मेहनत का हासिल दिया है. मुझे आज भी यकीन नहीं होता है कि मैं कैसे काम कर लेता हूं. 75 साल का हूं अभी भी सक्रिय हूं. सीरियल के साथ-साथ एक दो फिल्में भी रिलीज होने वाली हैं. आगे भी काम मिलता रहेगा, तो इंकार नहीं करने वाला.
आरके लक्ष्मण की 'वागले की दुनिया' से जेडी मजेठिया की 'वाघले की दुनिया' तक का सफर. लगता है सर्किल पूरा हुआ?
-बेशक, यह तो ऊपरवाले की कृपा है कि उन्होंने कुंदन शाह की वजह से पहले भी वागले की दुनिया का हिस्सा बना और अब 32 साल बाद भी उसी ब्रांड से जुड़ा. यह सर्किल जैसा ही तो है कि फिर से वाघले मेरी झोली में गिर गया. मैंने कभी जिंदगी में वागले जैसा काम मांगा था, मुझे दोबारा वाघले ही दे दिया. हालांकि इसमें मैं वाघले का बाप बना हूं.
उस दौर में वागले की दुनिया में शाहरुख खान ने भी एक दिन के लिए काम किया था. उनके साथ आपके कई फिल्मों की बॉन्डिंग रही है?
-सबके साथ रहा है. केवल शाहरुख ही नहीं. शाहरुख तो इसलिए क्योंकि वो हमारे ग्रुप से ही निकला है. मैं सलमान, आमिर, अजय देवगन, ऋषि कपूर, विनोद खन्ना, अक्षय कुमार जैसे एक्टर्स के साथ लगातार काम करता रहा हूं. शाहरुख हमारी ग्रुप से ही वागले सीरियल में आया था. कुंदन शाह ने उसे एक दिन के लिए कास्ट किया था. एक अच्छे आर्टिस्ट की यही पहचान भी होती है कि उसने एक दिन के काम को भी स्वीकार लिया था और बेस्ट परफॉर्म कर दिया था. उसकी और भी कुछ कई सीरियल बनी थीं, जो कभी ऑन एयर नहीं हो पाई. फिर वो फिल्मों में नजर आए, जहां मैंने शाहरुख के साथ कभी हां-कभी न, चमत्कार, राजू बन गया जेंटलमैन जैसी फिल्में की थी.
आप शाहरुख को उस दौर से जानते हैं, जब वो स्ट्रगल कर रहे थे. और आज बादशाह कहे जाते हैं. क्या वो बदले?
-आज शाहरुख स्टार बन चुका है. राजू बन गया जेंटलमैन के एक न्यूकमर शाहरुख से लेकर चक दे इंडिया में स्टार बने शाहरुख के साथ काम किया है. वो अपना अदब नहीं भूलते हैं. सेट पर भी उसने सीनियर की तरह ही ट्रीट किया था. सेट पर उसने बहुत रिस्पेक्ट दिया था. मुझे देखकर वो सम्मान से खड़े हो जाया करते थे, यही देखकर दिल खुश हो जाता था. वो नेकदिल इंसान है. उसकी मेहनत व डेडिकेशन को मैंने करीब से देखा है.
टीवी शोज को लेकर तमाम तरह की धारणाएं हैं. हाल ही में हिमानी शिवपुरी ने यह बात कही कि बहुत टफ वर्किंग हावर्स होते हैं. आपकी राय?
-देखो, आपने काम स्वीकार किया है, तो प्रॉडक्ट तो देना ही पड़ेगा. मैं अपने एक्सपीरियंस पर यही कह सकता हूं कि मेरे लिए टाइम एडजेस्ट किया जाता है. सीन खत्म होते ही मुझे घर जाने को कह दिया जाता है. हालांकि एक एक्टर के तौर भी मेरा फर्ज बनता है कि मैं काम को अधूरा न छोड़कर जाऊं. अगर मैं काम कराने की जिद्द कर लूं कि इतने ही वक्त के लिए अवेलेबल हूं, तो क्वालिटी काम नहीं निकल पाएगी. देखिए, ये फिल्म या वेब सीरीज की तरह नहीं होगा. यहां रोज लगातार काम करते रहना है. आप अपनी चॉइस से यहां आए हैं, तो जाहिर सी बात है कि आप इसके तरीकेकार से वाकिफ तो होंगी ही, फिर कंपलेन करने जैसा कुछ रह नहीं जाता है.
टेलीविजन में कॉन्टेंट के स्तर को लेकर भी डिबेट है. कईयों की कंपलेन है कि सीन्स में लॉजिक के नाम पर मजाक किया जाता है?
-दुख होता है लेकिन उसे रखकर क्या करेंगे. जैसा चलता है, उसी के हिसाब से चलना पड़ेगा. अब तो पूरा डायनैमिक बदल चुका है. सबकुछ बिजनेस के हिसाब से चल रहा है. आपके पास एक ही रास्त बच जाता है कि या तो टेलीविजन छोड़ दें या फिर जो हो रहा है, उसे स्वीकार करते हुए काम करें. हम तो सरकार को नहीं बदल सकते हैं. अब लोग पैसे कमाने पर ज्यादा फोकस करते हैं. ऐसा नहीं है कि सब खराब है. कुछ क्वालिटी भी बनते हैं. यह तो दर्शकों पर निर्भर करता है कि वो कैसा कंटेंट कंज्यूम करना चाहते हैं. टीवी में तो फॉर्म्यूला बेस्ड चीजों को तवज्जों दिया जाता है, सारा गेम टीआरपी पर ही आकर रुक जाता है. हालांकि वाघले की दुनिया ने इस बीच भेड़चाल में अपनी मौजूदगी ग्रेसफुली कायम रखी है. वहीं दूसरी ओर अब ओटीटी ने एक नई उम्मीद दी है. कई साहसी मेकर्स फिल्में बना रहे हैं. ऐसे कंटेंट इंटरनैशनल लेवल पर भी अपना परचम लहरा रहे हैं. मैं इस माध्यम से खुश हूं.