
आजतक के महामंच 'एजेंडा आजतक' में भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने शिरकत की. कार्यक्रम के पांचवें सत्र आत्मसम्मान, जिंदगी और इच्छा मृत्यु पर चर्चा हुई. जस्टिस दीपक मिश्रा ने बताया कि मैंने हमेशा लोगों से कहा कि गिलास आधा भरा है हमने कभी नहीं कहा कि गिलास आधा खाली है.उन्होंने कहा कि मैं हमेशा आशावादी रहा हूं.
पूर्व सीजीआई बोले कि इच्छा मृत्यु के बारे में बताने के लिए मैं कुछ देर के लिए महाभारत काल में ले जाना जाता हूं. भीष्म पितामह इच्छा मृत्यु चाहते थे. सूरज के उत्तरायण होने से पहले वह मरना चाहते थे. वह कृष्ण और अर्जुन से कुछ कहना चाहते थे. वह जानते थे कि कुछ जिम्मेदारियों को पूरा करना है. मैं तब मरूं जब मैं चैतन्य में रहूं. शुरूआत में दधीचि अपनी हड्डियां दान करना चाहते थे. वह आत्महत्या नहीं था. वह समाज के लिए कुछ करना चाहते थे. सबको यह समझना चाहिए कि किसी की डिग्निटी मरने के समय खत्म नहीं होनी चाहिए.
उन्होंने कहा कि सभी जो इस पृथ्वी पर आए हैं उन्हें मरना होगा. इसमें आत्मा रह जाती है और शरीर चला जाता है. इस शरीर को मारा जाता है, नष्ट किया जाता है, जलाया जा सकता है लेकिन आत्मा अमर है. सवाल उठता है आत्म का. जिंदगी और आत्मा एकदूसरे से जुड़े हैं. मैंने न्यूरो साइंटिस्ट की किताब प्रूफ ऑफ हेवन पढ़ी. इसमें मृत्यु के बारे में बताया गया. डॉक्टर ने बताया है कि कैसे दोबारा जन्म होता है. मृत्य एक बहुत बड़ी चीज नहीं है.
अंग्रेजी के एक लेखक ने कहा कि मौत और जीवन दो पार्ट हैं. जिंदगी हर वक्त आपको चिढ़ाती है. युधिष्ठिर ने कहा हर पल मनुष्य मरता है, लेकिन वह ऐसे मानता है कि वह अनंत समय तक जिंदा रहेगा. कोई मरना नहीं चाहता, कोई कष्ट भी नहीं झेलना चाहता. हमें मौत से डर लगता है.
अगर कोई मरना चाहता है अपनी मुश्किलों के लिए तो सुप्रीम कोर्ट इसे स्वीकार करेगा. कोर्ट उसको स्वीकार करेगा जब जीवन आपका कष्टमय हो गया हो. इतना दर्द हो कि जीवन मुहाल हो गया है. यह लीगल पार्ट है.