
Agenda aajtak 2021: सावरकर के पोते रंजीत सावरकर, इतिहासकार विक्रम संपत और चमनलाल ने आजतक के महामंच 'एजेंडा आजतक 2021' के 'सावरकर के नाम पर' सेशन में शिरकत की. इस दौरान विक्रम संपत ने कहा कि सावरकर प्रखर राष्ट्रभक्त थे. एक क्रांतिकारी, समाज सुधारक देश के लिए कुछ भी कर गुजरने वाले वीर थे. वहीं, चमन लाल ने कहा, विनायक दामोदर सावरकर हिंदुस्तान की आजादी की तीन धाराओं में से एक का प्रतिनिधित्व करते थे, जो धर्म आधारित विचारधारा थी.
सेशन के दौरान इतिहासकार विक्रम संपत (Vikram Sampath) और चमनलाल (Chamanlal) ने विनायक दामोदर सावरकर की दया याचिकाओं पर प्रकाश डाला. चमनलाल ने कहा कि याचिका दायर करना कोई गलत नहीं है. उस समय अंडमान में 498 यानी 500 के करीब राजनीतिक बंदी थे, ज्यादातर उनमें क्रांतिकारी धाराओं के बंदी थे. इनमें से भगत सिंह के साथी करीब 16 साल अंडमान में बंदी रहे जबकि सावरकर 10 साल तक वहां की जेल में रहे लेकिन भूख हड़ताल में शामिल नहीं हुए.
इतिहासकार चमनलाल ने कहा कि सावरकर और भगत सिंह के साथियों ने अग्रेजों की बर्बता के खिलाफ भूख हड़तालें कीं लेकिन सावरकर ने भूख हड़ताल नहीं की. जेल में सावरकर ने आंदोलनकारियों संग भूख हड़ताल करने से मना कर दिया था.
भगत सिंह ने 20 मार्च 1913 को एक याचिका में कहा था कि हम राजबंदी हैं और राजबंदी युद्धबंदी होते हैं. ब्रिटिश सरकार के खिलाफ हम लड़ाई लड़ रहे हैं. युद्धबंदियों को गोली से उड़ाया जाता है. फांसी देना युद्धबंदियों के लिए अपमान की बात है. भगत सिंह ने फांसी की बजाए गोली मारने की बात कही थी. जबकि सावरकर माफी मांग रहे थे.
माफी मांगने की आवश्यकता क्यों पड़ी थी? इस पर रंजीत सावरकर ने कहा कि उन्होंने कभी माफी नहीं मांगी. उन्होंने जो एप्लीकेशन दी, उसका अधिकार सभी बंदियों को है. दस साल में सात पत्र भेजने की उन्हें अनुमति दी गई थी और इसमें उन्होंने कुछ भी व्यक्तिगत नहीं लिखा. सिर्फ एक दो लाइन ही घरवालों के बारे में थी. हर पत्र में यही विषय था कि क्रांतिकारी यातनाएं सहन कर रहे हैं. ब्रिटिश सावरकर को सबसे खतरनाक मानते थे और सोचते थे कि यदि उन्हें भारत में रखा जाएगा तो उनके साथी उन्हें छुड़वा लेंगे.