
Savarkar Ke Naam Par: आजतक के महामंच 'एजेंडा आजतक 2021' के 'सावरकर के नाम पर' सेशन में इतिहासकार चमनलाल ने कहा, विनायक दामोदर सावरकर हिंदुस्तान की आजादी की तीन धाराओं में से एक का प्रतिनिधित्व करते थे, जो धर्म आधारित विचारधारा थी.
चमनलाल ने कहा, सावरकर अपने हिंदुत्व में मुस्लिमों और ईसाइयों के लिए कोई जगह नहीं रखते थे. मुस्लिमों और ईसाइयों के प्रति सावरकर का बहुत ही नफरतभरा रवैया था. जैन, बौद्ध, सिख को हिंदुत्व का पार्ट समझते थे लेकिन उस हिंदुत्व में मुसलमान एवं ईसाई उनके लिए एक द्वितीय श्रेणी के नागरिक रहें ये उनकी धारणा रही है.
चमनलाल ने कहा कि सावरकर और महात्मा गांधी के रिश्ते भी अच्छे नहीं रहे. वहीं, इस दौरान मंच पर मौजूद रंजीत सावरकर ने कहा कि दामोदर सावरकर का हिंदुत्व धर्म के आधार पर नहीं था. एजेंडा आजतक के मंंच पर 'सावरकर के नाम पर' सेशव में इतिहासकार डॉ. विक्रम संपत ने इस मुद्दे पर अपनी राय रखते हुए कहा कि हम लोग हिंदू राष्ट्र के बारे में जो विचार रखते हैं, वह भी काफी गलत है. सावरकर (Vinayak Damodar Savarkar) आरएसएस का हिस्सा नहीं थे. उनके बड़े भाई बाबाराव आरएसएस के संस्थापकों में थे, लेकिन सावरकर और संघ के रिश्ते हमेशा ऊपर-नीचे होते ही रहे.
विनायक दामोदर सावरकर का हिंदुत्व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से अलग था और संघ के साथ उनके रिश्ते उतार-चढ़ाव वाले थे.जब गोलवलकर जो आरएसएस के सरसंघचालक थे, तब उनके साथ काफी मतभेद थे. उन्होंने एक बयान दिया था कि आरएसएस के स्वयंसेवक की समाधि पर कुछ लिखा जाए कि उसकी जीवन में उपलब्धि क्या रही तो सिर्फ तीन बातें होंगी. पहली- वह पैदा हुए, फिर आरएसएस में शामिल हुए और फिर निधन हो गया. इसके अलावा, उसकी कोई और उपलब्धि नहीं है. सावरकर का हिंदुत्व अलग है. आरएसएस के हिंदुत्व की परिकल्पना अलग थी और गोडसे का हिंदुत्व अलग था.