
संगम नगरी प्रयागराज में आस्था के सबसे बड़े मेले कुंभ का आगाज हो गया है. कुंभ ऐसा महापर्व है, जब देश-विदेश से कई लोग यहां जुटते हैं, जिसमें साधु-श्रद्धालु आदि शामिल रहते हैं. यहां स्नान करते हैं और दान पुण्य कमाते हैं. प्राचीन भारत में हर्षवर्धन नाम के एक सम्राट भी यहां आने और उनके दान करने की कहानियां हैं. इतिहास में उन्हें दान देने की वजह से भी जाना जाता है. ऐसा भी कहा जाता है कि वे कुंभ के दौरान 75 दिनों तक तब तक दान करते थे, जब तक कि उनके पास से सब कुछ खत्म न हो जाए.
बता दें कि ईसा के बाद की छठीं सदी में भारत के दौरे पर आए चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी अपने संस्मरणों में प्रयागराज और कुंभ का वर्णन किया था. ह्वेनसांग ने भी अपने वर्णन में सम्राट हर्षवर्धन का जिक्र किया और उनके 75 दिन तक के दान के बारे में बताया. बताया जाता है कि हर्षवर्धन तबतक दान करते थे जबतक कि उनके पास से सबकुछ खत्म न हो जाए. यहां तक कि वह अपने राजसी वस्त्र भी दान कर देते थे.
कौन थे हर्षवर्धन?
हर्षवर्धन (590-647 ई.) प्राचीन भारत में सम्राट थे, जिन्होंने उत्तरी भारत के तमाम इलाकों में अपना एक सुदृढ़ साम्राज्य स्थापित किया था. वह ऐसे हिंदू सम्राट थे, जिन्होंने पंजाब छोड़कर शेष समस्त उत्तरी भारत पर राज्य किया था. उन्होंने बंगाल में शासन किया था. हर्षवर्धन भारत के आखिरी महान सम्राटों में से एक थे. उन्होंने कन्नौज को अपनी राजधानी बनाकर पूरे उत्तर भारत को एक सूत्र में बांधने में सफलता हासिल की थी.
उन्होंने अपने शासन काल में कई विश्राम गृहों और अस्पतालों का निर्माण करवाया था. ह्वेनसांग ने कन्नौज में आयोजित भव्य सभा के बारे में भी उल्लेख किया है, जिसमें हजारों भिक्षुओं ने हिस्सा लिया था. वे हर पांच साल के आखिरी में महामोक्ष हरिषद नाम के एक धार्मिक उत्सव का आयोजन करता था. यहां पर वह दान समारोह आयोजित करता था. कई रिपोर्ट्स में कहा गया है कि हर्षवर्धन ने अपनी आय को चार बराबर भागों में बांट रखा था जिनके नाम शाही परिवार के लिए, सेना तथा प्रशासन के लिए, धार्मिक निधि के लिए और गरीबों और बेसहारों के लिए थे.
कैसे करते थे दान?
प्रयागराज में महाराज हर्षवर्धन ने अनेक दान किए थे. वह पहले भगवान सूर्य, शिव और बुध की पूजा करते थे. उसके बाद ब्राह्मण, आचार्य, दीन, बौद्ध भिक्षु को दान देते थे. इस दान के क्रम में वह लाए हुए अपने खजाने की सारी चीजें दान कर देते थे. वह अपने राजसी वस्त्र भी दान कर देते थे. फिर वह अपनी बहन राजश्री से कपड़े मांग कर पहनते थे.