
पटना हाईकोर्ट ने 10 साल पुरानी एक शादी को रद्द कर दिया है. पति ने आरोप लगाया था कि 10 साल पहले बंदूक की नोक पर उसे अगवा किया गया था और जबरन उसकी शादी करवा दी गई थी.
जानकारी के मुताबिक, सेना में जवान रवि कांत को 30 जून 2013 को उस समय अगवा किया गया था, जब वो लखीसराय में एक मंदिर में पूजा कर रहे थे. रवि कांत नवादा जिले के रहने वाले हैं. उन्होंने आरोप लगाया था कि लड़की के घरवालों ने जबरन उनका अपहरण कर शादी करवा दी थी.
बिहार में इस तरह की शादी को 'पकड़ौआ विवाह' कहा जाता है. बिहार में ये प्रथा दशकों से जारी है. बिहार की इस प्रथा पर कई फिल्में और टीवी सीरियल भी बन चुके हैं.
हाईकोर्ट से पहले याचिकाकत्रा रवि कांत ने लखीसराय की फैमिली कोर्ट में अपील दायर की थी. लेकिन फैमिली कोर्ट ने 2020 उसकी अर्जी को खारिज कर दिया था.
ये पकड़ौआ विवाह क्या होता है? बिहार में इसे लेकर अक्सर क्यों बवाल होता रहता है? ये समझेंगे, लेकिन उससे पहले रवि कांत का मामला समझते हैं...
क्या है पूरा मामला?
रिपोर्ट के मुताबिक, रवि कांत नवादा जिले के रावरा गांव के रहने वाले हैं. उन्होंने अपनी याचिका में आरोप लगाया था कि 30 जून 2013 को उन्हें लखीसराय के अशोक धाम मंदिर से अगवा कर लिया गया था.
रवि कांत ने आरोप लगाया था कि लखीसराय के चौकी गांव के रहने वाले लोगों ने पहले उसका अपहरण किया और फिर बंदूक की नोक पर एक महिला से जबरन शादी करने को मजबूर किया.
रवि ने लखीसराय फैमिली कोर्ट में अपनी शादी को रद्द करने की मांग को लेकर अर्जी दाखिल की थी. लेकिन फैमिली कोर्ट ने 27 जनवरी 2020 को ये अर्जी खारिज कर दी. इसके बाद रवि ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की.
हाईकोर्ट ने क्या कहा?
पटना हाईकोर्ट की जस्टिस पीबी बजंतरी और जस्टिस अरुण कुमार झा की बेंच ने इस शादी को रद्द करने का फैसला सुनाया है.
हाईकोर्ट ने कहा कि हिंदू शादी तभी मान्य होती है जब सात फेरे लिए जाते हैं. सातवां फेरा लेते ही शादी पूर्ण हो जाती है. लेकिन अगर सात फेरे नहीं लिए गए हैं, तो इसे शादी नहीं माना जा सकता.
जबकि, फैमिली कोर्ट ने कहा था कि सात फेरे नहीं होने का मतलब ये नहीं है कि शादी नहीं हुई. पटना हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट की इस बात को भी खारिज कर दिया है.
बिहार में आम है पकड़ौआ विवाह
रवि कांत की शादी जिस तरह से हुई, उसे पकड़ौआ विवाह कहते हैं. लेकिन रवि अकेले ऐसे नहीं है, जिनका पकड़ौआ विवाह हुआ था.
साल 2019 में विनोद कुमार नाम के शख्स की शादी को फैमिली कोर्ट ने अमान्य करार दिया था. विनोद कुमार की दिसंबर 2017 में जबरन शादी करवा दी गई थी. उनकी शादी का वीडियो भी वायरल हुआ था. वायरल वीडियो में विनोद रोते हुए नजर आ रहे थे. शादी के बाद विनोद ने पटना में फैमिली कोर्ट में अर्जी दायर की. और तब फैमिली कोर्ट ने उनकी शादी को अमान्य करार दिया.
ऐसी ही एक कहानी सहरसा के आलोक की भी है. मई 2012 में आलोक के एक दोस्त ने पार्टी का लालच देकर उनका अपहरण कर लिया था. बाद में बंदूक की नोक पर उन्हें मंडप में बैठाया और जबरन शादी करवा दी. बाद में सामाजिक दवाब के चलते आलोक ने इस शादी को मान लिया.
पर ये पकड़ौआ विवाह क्या है?
पकड़ौआ विवाह असल में वो होता है जिसमें शादी के लायक लड़के का अपहरण किया जाता है और फिर डरा-धमकाकर जबरन उसकी शादी करवा दी जाती है.
बिहार में पकड़ौआ विवाह का इतिहास 1980 के दशक के बाद से शुरू होता है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, 80 के दशक के बाद बिहार के बेगूसराय जिले में पकड़ौआ विवाह का चलन सबसे ज्यादा था.
दरअसल, बेगूसराय भूमिहार बहुल इलाका है. भूमिहार समाज में दहेज बहुत चलता है. पकड़ौआ विवाह के समर्थन में तर्क दिया जाता है कि ये शादी दहेज के खिलाफ की जाती है. भले ही ये गैरकानूनी है, लेकिन दहेज का विरोध करने वालों ने ये तरीका अपनाया.
बिहार में पकड़ौआ विवाह के लिए तो गांव में लोग बकायदा लड़कों के अपहरण की सुपारी भी देते हैं. इसका एक उदाहरण लालबाबू हैं.
मई 2009 में गया की एक कोचिंग सेंटर के बाहर अपराधियों ने गोलीबारी की. इस गोलीबारी का मकसद 16 साल के लालबाबू को अगवा करना था. लालबाबू को अगवा कर जहानाबाद जिले के एक मंदिर में ले जाया गया और वहां बंदूक की नोक पर उसकी 13 साल की बच्ची से शादी करवा दी गई. हालांकि, पुलिस ने दुल्हन के पिता और भाई पर मर्डर का केस दर्ज कर लिया और शादी टूट गई.
कौन बनते हैं इसका शिकार?
पकड़ौआ विवाह के लिए आमतौर पर पढ़े-लिखे और नौकरीपेशा लड़कों को शिकार बनाया जाता है. कई बार तो सुरक्षा अधिकारी का भी अपहरण कर लिया जाता है. अब जैसे रवि कांत का ही मामला ले लीजिए. रवि कांत भारतीय सेना में कॉन्स्टेबल हैं.
कुछ साल पहले अपराधियों ने आईपीएस अफसर शिवदीप लांडे के बॉडीगार्ड को अगवा कर लिया था. लेकिन बाद में जब उन्हें लगा कि इससे वो मुसीबत में पड़ सकते हैं तो उसे छोड़ दिया गया.
पकड़ौआ विवाह में अगवा करने के बाद लड़के को लड़की के घर ले जाया जाता है. वहां, उसे कढ़ाईदार टोपी पहनाई जाती है, जिसे 'मौरी' कहा जाता है. ये टोपी असल में स्वीकृति का प्रतीक होती है. अगर दूल्हे ने मौरी पहन ली तो इसे उसकी सहमति माना जाता है. ज्यादातर मामलों में दूल्हे को जबरदस्ती कर मौरी पहनाई जाती है. ऐसी शादियों की वीडियो रिकॉर्डिंग भी होती है, ताकि इसे सबूत के तौर पर पेश किया जा सके.
यहां तक कि ऐसी शादियों में मंदिर के पुजारी भी लड़की के परिजनों का साथ देते हैं. शादी के बाद वो मैरिज सर्टिफिकेट भी दे देते हैं.
पकड़ौआ विवाह पर क्या कहते हैं आंकड़े?
पकड़ौआ विवाह वैसे तो अवैध है, लेकिन ये प्रथा बिहार में आज भी प्रचलित है. आंकड़े बताते हैं कि पकड़ौआ विवाह के मामले कम होने की बजाय बढ़े ही हैं.
आंकड़ों के मुताबिक, 2015 में शादी के लिए तीन हजार से ज्यादा लड़कों को अगवा किया गया था. इसके बाद 2016 में 3 हजार 75, 2017 में 3 हजार 405, 2018 में 4 हजार 317, 2019 में 4 हजार 498 और 2020 में 2 हजार 695 पुरुषों का अपहरण हुआ था.
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के मुताबिक, 2021 में देशभर में 18 से 30 साल के 3,507 पुरुषों का अपहरण किया गया था. इनमें से 597 अकेले बिहार के थे.
इसी तरह से 2021 में ही अकेले बिहार से लगभग 450 लड़कों का अपहरण जबरन शादी के लिए किया गया था.