
क्या पांच साल पहले खत्म हो चुका अडल्ट्री से जुड़ा कानून दोबारा आएगा? वो इसलिए क्योंकि गृह मंत्रालय की संसदीय समिति भारतीय न्याय संहिता में अडल्ट्री यानी व्यभिचार यानी विवाहेतर संबंध को फिर से अपराध घोषित करने की सिफारिश कर सकती है.
दरअसल, इसी साल अगस्त में मॉनसून सत्र के दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने अंग्रेजों के जमाने के तीन कानूनों में बदलाव के बिल लोकसभा में पेश किए थे.
ये बिल इंडियन पीनल कोड (IPC), कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसिजर (CRPC) और इंडियन एविडेंस एक्ट में बदलाव करेंगे. फिलहाल, ये तीनों ही बिल संसदीय समिति के पास हैं.
अगर ये बिल कानून बनते हैं तो इंडियन पीनल कोड की जगह भारतीय न्याय संहिता आ जाएगी.
एक अंग्रेजी अखबार ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि संसदीय समिति भारतीय न्याय संहिता में रद्द हो चुके दो कानूनों को फिर से जोड़ने का सुझाव दे सकती है. पहला कानून अडल्ट्री से जुड़ा है और दूसरा समलैंगिकता में असहमति से बने यौन संबंध को लेकर है.
संसदीय समिति ने क्या सुझाव दिए हैं? इसे जानने से पहले ये समझते हैं कि अडल्ट्री और समलैंगिकता में असहमति से बने यौन संबंध पर कानूनी प्रावधान क्या थे?
- अडल्ट्री को लेकर
आईपीसी की धारा 497 के अडल्ट्री यानी व्यभिचार यानी विवाहेत्तर संबंध को अपराध माना जाता था. ये धारा 1860 में ही आईपीसी में जोड़ी गई थी.
इसमें अडल्ट्री को परिभाषित करते हुए कहा गया था- अगर कोई पुरुष किसी शादीशुदा महिला से उसकी सहमति से शारीरिक संबंध बनाता है, तो ऐसे मामले में महिला के पति की शिकायत पर उस पुरुष पर मुकदमा चलाया जा सकता है.
इस कानून में दो पेंच थे. पहला- अगर कोई शादीशुदा पुरुष किसी कुंवारी या विधवा महिला के साथ सहमति से संबंध बनाता है तो उसे अडल्ट्री का दोषी नहीं माना जाएगा. और दूसरा- महिलाओं को इसमें कभी दोषी नहीं माना जाता था.
धारा 497 के तहत दोषी पाए जाने पर पुरुष को पांच साल की कैद और जुर्माने की सजा का प्रावधान था.
सितंबर 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने इस धारा को निरस्त कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय बेंच ने कहा कि जो कानून व्यक्ति की गरिमा और महिलाओं के साथ समान व्यवहार को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है, वो संविधान के खिलाफ है.
- समलैंगिक संबंधों को लेकर
आईपीसी की धारा 377 में इसका प्रावधान था. इसके तहत, अगर कोई व्यक्ति अप्राकृतिक रूप से यौन संबंध बनाता है तो उसे 10 साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा हो सकती है. साथ ही जुर्माने का भी प्रावधान था.
सितंबर 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 के एक हिस्से को निरस्त कर दिया था. इससे सहमति से बने समलैंगिक संबंध अपराध के दायरे से बाहर हो गए थे.
हालांकि, उस समय सुप्रीम कोर्ट ने ये भी साफ किया था कि बिना सहमति से बनाए गए यौन संबंध को अभी भी धारा 377 के तहत अपराध माना जाएगा.
क्या दिए हैं सुझाव?
संसदीय समिति सुझाव दे सकती है कि समलैंगिकता में असहमति से बने यौन संबंध और एडल्ट्री को अपराध बनाने का प्रावधान किया जाए. साथ ही इन्हें जेंडर न्यूट्रल बनाया जाए.
एडल्ट्री में पहले पुरुष को ही दोषी ठहराया जाता था और उसे सजा होती थी. सुप्रीम कोर्ट ने इसे खत्म कर दिया था लेकिन संसदीय समिति का सुझाव है कि इसे जेंडर न्यूट्रल बनाया जाए.
इसी तरह समलैंगिकता में सहमति से बने यौन संबंध को तो 2018 में अपराध के दायरे से बाहर कर दिया था. लेकिन असहमति से बने यौन संबंध को लेकर कोई कानून नहीं है. संसदीय समिति इसे भारतीय न्याय संहिता में शामिल करने का सुझाव दे सकती है और इसके दायरे में पुरुषों के अलावा महिलाएं और ट्रांसजेंडर भी आ सकते हैं.
भारतीय न्याय संहिता में क्या है प्रावधान?
आईपीसी की जगह जिस भारतीय न्याय संहिता को लाया जा रहा है, उसमें धारा 497 और धारा 377, दोनों को ही नहीं रखा गया है.
धारा 497 को तो सुप्रीम कोर्ट ने पूरी तरह से निरस्त कर दिया था. लेकिन धारा 377 को आंशिक रूप से रद्द किया गया था.
ऐसे में भारतीय न्याय संहिता में धारा 377 को पूरी तरह से ही हटा देना पुरुषों, महिलाओं या ट्रांसजेंडर्स के बीच असहमति से बने यौन संबंध को भी गैरकानूनी घोषित हो जाएंगे.
आईपीसी, सीआरपीसी, एविडेंस एक्ट में क्या बदलेगा?
- आईपीसीः कौन सा कृत्य अपराध है और उसके लिए क्या सजा होगी? ये आईपीसी से तय होता है. इसका नाम बदलकर भारतीय न्याय संहिता रखने का प्रस्ताव है. आईपीसी में 511 धाराएं हैं. अब 356 बचेंगी. 175 धाराएं बदलेंगी. 8 नई जोड़ी जाएंगी.
- सीआरपीसीः गिरफ्तारी, जांच और मुकदमा चलाने की प्रक्रिया सीआरपीसी में लिखी हुई है. सीआरपीसी में 533 धाराएं हैं. 160 धाराओं को बदला जाएगा. 9 नई जुड़ेंगी और 9 धाराएं खत्म होंगी.
- इंडियन एविडेंस एक्टः केस के तथ्यों को कैसे साबित किया जाएगा, बयान कैसे दर्ज होंगे, ये सब इंडियन एविडेंस एक्ट में है. इसका नाम भारतीय साक्ष्य बिल रखा जाएगा. पहले 167 धाराएं थीं, अब 170 होंगी. 23 धाराओं को बदला जाएगा. एक नई धारा जुड़ेगी.
आगे की राह क्या?
तीनों बिलों को अभी संसद की स्थायी समिति के पास रिव्यू के पास भेजा गया है. इस समिति को संसद के शीतकालीन सत्र से पहले अपनी रिपोर्ट देनी होगी. अगर रिपोर्ट नहीं आई तो लोकसभा का कार्यकाल खत्म होने पर बिल अपने आप रद्द हो जाएंगे. ऐसे में फिर चुनाव के बाद सरकार को फिर से बिल पेश करने होंगे.