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बंटवारे के बाद कैसे बना PoK? पढ़ें- संयुक्त राष्ट्र क्यों पहुंचा था कश्मीर का मामला

एक जनवरी 1948 को जम्मू-कश्मीर का मामला संयुक्त राष्ट्र गया था. उस साल जम्मू-कश्मीर को लेकर चार प्रस्ताव पास हुए थे. एक प्रस्ताव में कश्मीर में जनमत संग्रह करवाने की बात भी थी. सीजफायर होने के बाद कश्मीर के जितने हिस्से पर पाकिस्तान का अवैध कब्जा हुआ, उसे ही पीओके कहा जाता है.

कश्मीर को लेकर भारत-पाकिस्तान में दशकों से विवाद है. कश्मीर को लेकर भारत-पाकिस्तान में दशकों से विवाद है.
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 06 दिसंबर 2023,
  • अपडेटेड 3:33 PM IST

कश्मीर के 78 हजार वर्ग किलोमीटर से ज्यादा बड़े हिस्से पर पाकिस्तान का अवैध कब्जा है. ये एरिया इतना बड़ा है कि उसमें 50 से ज्यादा दिल्ली समा जाए. पाकिस्तान इसे आजाद कश्मीर बताता है. लेकिन सच तो ये है कि आजाद नहीं बल्कि पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर है. इसे हम आम बोलचाल में पीओके कहते हैं. 

पीओके की बात इसलिए क्योंकि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने बुधवार को लोकसभा में इसे लेकर बड़ी बात कही है. शाह ने कहा कि अगर देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने सही कदम उठाया होता तो पीओके आज भारत का हिस्सा होता. 

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अमित शाह ने कहा कि पीओके की समस्या पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की वजह से हुई. पूरा कश्मीर हाथ आए बिना सीजफायर कर लिया था, वरना वो हिस्सा कश्मीर का होता. 

शाह ने कश्मीर में सीजफायर करने और इस मसले को संयुक्त राष्ट्र में ले जाने के नेहरू के फैसले को 'ब्लंडर' बताया है. 

ऐसे में जानते हैं कि ये पीओके बना कैसे? मामला संयुक्त राष्ट्र तक कैसे पहुंचा? और अभी वहां क्या स्थिति है?

जब कश्मीर बना भारत का हिस्सा

15 अगस्त 1947 को आजादी के साथ-साथ बंटवारा भी मिला. भारत और पाकिस्तान अलग-अलग मुल्क बने. उस समय भारत 500 से ज्यादा छोटी-बड़ी रियासतों में बंटा था. लेकिन कुछ रियासतें थीं, जो भारत और पाकिस्तान में से किसी के साथ नहीं जाना चाहती थीं. 

जम्मू-कश्मीर रियासत भी ऐसी ही थी. यहां की ज्यादातर आबादी मुस्लिम थी. लेकिन महाराजा हरि सिंह हिंदू थे. तब महाराजा हरि सिंह ने भी जम्मू-कश्मीर को आजाद ही रखने का फैसला लिया.

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लेकिन बंटवारे के साथ ही पाकिस्तान की नजर कश्मीर पर थी. वो कश्मीर पर कब्जा करना चाहता था. लेकिन कश्मीर ने अलग रहना ही चुना.

आजादी के कुछ महीने बाद ही 22 अक्टूबर 1947 को पाकिस्तान से हजारों कबायलियों से भरे सैकड़ों ट्रक कश्मीर में घुस गए. इनका मकसद था कश्मीर को पाकिस्तान में मिलाना. ये वो कबायली थे जिन्हें पाकिस्तान की सरकार और सेना का समर्थन मिला था.

दिन गुजरते गए और पाकिस्तानी कबायली कश्मीर के अलग-अलग हिस्सों पर कब्जा करते चले गए. आखिरकार जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने भारत से मदद मांगी. 

27 अक्टूबर 1947 को महाराजा हरि सिंह ने भारत के साथ विलय के दस्तावेज पर दस्तखत किए. अगले ही दिन भारतीय सेना कश्मीर में उतर गई. धीरे-धीरे भारतीय सेना पाकिस्तानी कबायलियों को पीछे धकेलने लगी. 

ये वो समय था जब हालात बहुत अलग थे. भारत और पाकिस्तान, दोनों ही सेनाओं के प्रमुख अंग्रेज थे. तब माउंटबेटन की तरफ से भी भारत पर दबाव था. कहा जाता है कि भारत में तब के गवर्नर जनरल माउंटबेटन की सलाह पर जवाहर लाल नेहरू इस मसले को एक जनवरी 1948 को संयुक्त राष्ट्र में ले गए.

ट्रकों में भरकर आए थे पाकिस्तानी कबायली. (फाइल फोटो)

संयुक्त राष्ट्र में क्या हुआ?

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1948 में कश्मीर मुद्दा जब संयुक्त राष्ट्र में गया, तब उस साल इस पर चार प्रस्ताव आए. सबसे पहले आया प्रस्ताव नंबर-38. इस प्रस्ताव में दोनों पक्षों से स्थिति सामान्य बनाने की अपील की गई. ये भी कहा गया कि सुरक्षा परिषद के सदस्य दोनों देशों के प्रतिनिधियों को बुलाकर सीधी बातचीत कराएं.

फिर 20 जनवरी 1948 को प्रस्ताव नंबर-39 आया. इसमें तय हुआ कि समस्या के शांतिपूर्ण समाधान के लिए तीन सदस्यों की कमेटी बनेगी. इसमें एक-एक सदस्य भारत और पाकिस्तान से होगा. ये दोनों ही तीसरा सदस्य चुनेंगे. 

21 अप्रैल 1948 को प्रस्ताव नंबर-47 पास हुआ. इसमें कश्मीर में जनमत संग्रह कराने पर सहमति बनी. लेकिन शर्त तय हुई कि कश्मीर से पाकिस्तानी कबायली वापस जाएंगे. 

आखिर में 3 जून 1948 को प्रस्ताव नंबर-51 पास किया गया. इसमें तय हुआ कि यूनाइटेड नेशन कमीशन इंडिया-पाकिस्तान को दोनों देशों में भेजा जाएगा. दिसंबर 1948 में इस कमीशन ने अपनी रिपोर्ट सौंपी. इसमें जनमत संग्रह और सीजफायर की बात कही गई. 

संयुक्त राष्ट्र में जब तक ये सब हो रहा था, तब तक पाकिस्तानियों ने कश्मीर के बड़े इलाके पर अवैध कब्जा कर लिया था. संयुक्त राष्ट्र की मध्यस्थता से दोनों देशों के बीच सीजफायर तो हो गया. लेकिन साथ ही ये भी तय हुआ कि भारत के पास जितना कश्मीर था, उतना भारत के पास ही रहेगा. और जितने हिस्से पर पाकिस्तान ने कब्जा कर लिया था, वो उसके पास चला जाएगा. इसे ही पीओके कहा जाता है.

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सीजफायर होने के बावजूद पाकिस्तान की सेना पीओके से हटी नहीं थी. इसलिए भारत ने जनमत संग्रह करवाने से साफ मना कर दिया.

महाराजा हरि सिंह. (फाइल फोटो)

कैसा है पीओके?

केंद्र सरकार के मुताबिक, पाकिस्तान ने कश्मीर के 78 हजार वर्ग किलोमीटर से ज्यादा बड़े हिस्से पर अवैध कब्जा कर रखा है. इसके अलावा 2 मार्च 1963 को चीन-पाकिस्तान के बीच हुए एक समझौते के तहत पाकिस्तान ने पीओके का 5 हजार 180 वर्ग किमी हिस्सा चीन को दे दिया था.

पीओके असल में दो हिस्सों में बंटा है. पहला- जिसे पाकिस्तान आजाद कश्मीर कहता है. और दूसरा- गिलगित-बल्टिस्तान. आजाद कश्मीर वाला हिस्सा भारत के कश्मीर से सटा हुआ है. जबकि, गिलगित-बाल्टिस्तान कश्मीर के सबसे उत्तरी भाग में लद्दाख की सीमा से लगा है.

रणनीतिक लिहाज से पीओके काफी अहम है. इसकी सीमा कई देशों से लगती है. पश्चिम में इसकी सीमा पाकिस्तान के पंजाब प्रांत और खैबर-पख्तूनख्वाह से लगती है. उत्तर-पश्चिम में अफगानिस्तान के वखां कॉरिडोर, उत्तर में चीन और पूर्व में भारत के जम्मू-कश्मीर से सीमा जुड़ी हुई है.

साल 1949 में आजाद जम्मू-कश्मीर के नेताओं और पाकिस्तानी सरकार के बीच एक समझौता हुआ. इसे कराची समझौता कहा जाता है. समझौते के तहत आजाद जम्मू-कश्मीर के नेताओं ने गिलगित-बाल्टिस्तान पाकिस्तान को सौंप दिया. 

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आजाद जम्मू-कश्मीर यानी पीओके में अपनी सरकार है. यहां का अपना राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री है. चौधरी अनवरुल हक यहां के प्रधानमंत्री हैं. और सुल्ताम महमूद चौधरी राष्ट्रपति. लेकिन यहां की सरकार कुछ भी फैसले लेने के लिए पाकिस्तान की सरकार पर निर्भर है. यहां अलग हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट भी है. विधानसभा भी है. 

अभी क्या है स्थिति?

संयुक्त राष्ट्र में प्रस्ताव पास होने के बावजूद पीओके से पाकिस्तानी सेना वापस नहीं हटी. सितंबर 1952 में एक और प्रस्ताव पास हुआ. इसके अनुसार, पाकिस्तान की तरफ से 3 से 6 हजार और भारत की तरफ से 12 से 18 हजार सैनिक कश्मीर में रह सकते हैं. 

1971 की जंग के बाद 1972 में दोनों देशों के बीच शिमला समझौता हुआ. शिमला समझौते में तय हुआ कि कश्मीर से जुड़े विवाद पर बातचीत में किसी तीसरे पक्ष का दखल मंजूर नहीं होगा. फिर चाहे वो संयुक्त राष्ट्र ही क्यों न हो. इस विवाद को भारत और पाकिस्तान ही मिलकर सुलझाएंगे.

लेकिन पाकिस्तान इस मसले का अंतरराष्ट्रीयकरण करता रहा. पाकिस्तान के नेता कई बार जानबूझकर संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर मुद्दे को उठाते हैं. जबकि, भारत साफ कर चुका है कि ये दो देशों का विवाद है और इस मामले में कोई तीसरा दखल नहीं देगा.

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बहरहाल, कश्मीर का मुद्दा अब तक नहीं सुलझ सका है. पाकिस्तान आतंकवाद के जरिए कश्मीर में हालात बिगाड़ता रहता है. जबकि, भारत साफ कर चुका है कि जब तक आतंकवाद बंद नहीं होगा, तब तक कश्मीर पर कोई बातचीत नहीं होगी.

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