
जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग में बड़ा आतंकी हमला हुआ है. इस हमले में सेना के कर्नल मनप्रीत सिंह, बटालियन कमांडिंग मेजर आशीष धोनैक और जम्मू-कश्मीर पुलिस के डीएसपी हुमायूं भट शहीद हो गए.
ये हमला अनंतनाग के कोकरनाग के हलूरा गंडूल इलाके में हुआ. दरअसल, यहां पर आतंकियों के छिपे होने का इनपुट मिला था. इसके बाद सेना और पुलिस ने मिलकर सर्च ऑपरेशन चलाया. इसी दौरान आतंकियों ने गोलीबारी शुरू कर दी.
इस हमले की जिम्मेदारी आतंकी संगठन द रेजिस्टेंस फ्रंट (TRF) ने ली है. टीआरएफ ने दावा किया है कि उसने पाकिस्तान की मस्जिद में मारे गए लश्कर कमांडर रयाज अहमद उर्फ कासिम की मौत का बदला लिया है. 8 सितंबर को रावलकोट की मस्जिद में आतंकी कासिम की हत्या कर दी गई थी.
सुरक्षाबलों से जुड़े सूत्रों ने बताया है कि इस हमले की जिम्मेदारी में 'द रेजिस्टेंस फ्रंट' का नाम सामने आया है, लेकिन ये सिर्फ सुरक्षाबलों की आंखों में धूल झोंकने के लिए प्रोपेगेंडा चलाया जा रहा है.
टीआरएफ कोई पुराना आतंकी संगठन नहीं है. ये आतंकी संगठन 2019 में वजूद में आया था. गृह मंत्रालय इस पर प्रतिबंध भी लगा चुकी है. टीआरएफ हाफिज सईद के आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा से जुड़ा हुआ है. टीआरएफ एक तरह से सिर्फ चेहरा है और इन हमलों को लश्कर के आतंकी ही अंजाम देते हैं.
क्या है टीआरएफ?
द रेजिस्टेंस फ्रंट जम्मू-कश्मीर में एक्टिव है. ये लश्कर-ए-तैयबा की एक तरह से ब्रांच है. जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 को हटाए जाने के बाद टीआरएफ एक ऑनलाइन यूनिट के रूप में शुरू हुआ था.
माना जाता है कि टीआरएफ को बनाने का मकसद लश्कर जैसे आतंकी संगठनों को कवर देना है. इस संगठन को बनाने की साजिश सरहद पार से रची गई थी.
टीआरएफ को बनाने में लश्कर-ए-तैयबा और हिजबुल मुजाहिदीन के साथ-साथ पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई का भी हाथ रहा है.
ये इसलिए बनाया गया ताकि भारत में होने वाले आतंकी हमलों में सीधे तौर पर पाकिस्तान का नाम न आए. और वो फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) की ब्लैक लिस्ट में आने से बच जाए.
ऐसे सामने आया टीआरएफ का नाम
14 फरवरी 2019 को पुलवामा में बड़ा आतंकी हमला हुआ था. इसके बाद दुनियाभर में पाकिस्तान बेनकाब हो गया. इस हमले को जैश-ए-मोहम्मद ने अंजाम दिया था.
जब दुनियाभर से पाकिस्तान पर दबाव बढ़ा तो वो समझ गया कि आतंकी संगठनों के खिलाफ कुछ न कुछ करके दिखाना होगा. इसके बाद उसने ऐसा संगठन बनाने की साजिश रची, जिससे भारत में आतंक भी फैल जाए और उसका नाम भी न आए. तब जाकर आईएसआई ने लश्कर के साथ मिलकर टीआरएफ बनाया.
टीआरएफ का नाम तब चर्चा में आया जब उसने 2020 में बीजेपी कार्यकर्ता फिदा हुसैन, उमर राशिद बेग और उमर हाजम की कुलगाम में बेरहमी से हत्या कर दी थी.
टीआरएफ कश्मीर में फिर से वही दौर लाना चाहता है, जो कभी 90 के दशक में था. टीआरएफ के आतंकी टारगेट किलिंग पर फोकस करते हैं. वो ज्यादातर गैर-कश्मीरियों को निशाना बनाते हैं ताकि बाहरी राज्यों के लोग जम्मू-कश्मीर आने से बचें.
बनाने का एक मकसद ये भी
टीआरएफ को बनाने के लिए पाकिस्तान ने गहरी साजिश रची. वो दुनिया को ये दिखाना चाहता था कि कश्मीर में हो रहे आतंकी हमलों के पीछे उसका नहीं, बल्कि स्थानीय लोगों का ही हाथ है.
दरअसल, लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद के मजहबी मतलब होते हैं. और पाकिस्तान ऐसा नहीं चाहता था. आतंकी हमलों में इनका नाम आने से पाकिस्तान बेनकाब हो जाता था.
लिहाजा, टीआरएफ को बनाया गया. इसका नाम 'द रेजिस्टेंस फ्रंट' रखा गया. ताकि वो दुनिया को दिखा सके कि ये सब स्थानीय लोगों का 'रेजिस्टेंस' यानी 'प्रतिरोध' है.
कितना एक्टिव है टीआरएफ?
कश्मीर में इस समय टीआरएफ ही सबसे ज्यादा एक्टिव आतंकी संगठन माना जाता है. लश्कर से जुड़े साजिद जट, सज्जाद गुल और सलीम रहमानी ने इसको लीड किया.
कहा जाता है कि कश्मीर में होने वाले आतंकी हमलों की जिम्मेदारी टीआरएफ इसलिए लेता है, ताकि पाकिस्तान की सरजमीं से चल रहे लश्कर जैसे आतंकी संगठनों के नाम न सामने आएं.
टीआरएफ से जुड़े आतंकी सूबे में होने वाली हर सरकारी और सियासी गहमागहमी पर नजर रखते हैं. वो सोशल मीडिया पर भी काफी एक्टिव हैं और इसके जरिए युवाओं को भटकाते हैं.
जम्मू-कश्मीर पुलिस के आंकड़ों के मुताबिक, साल 2022 में घाटी में जितने आतंकी मारे गए थे, उनमें से 108 टीआरएफ या लश्कर से जुड़े थे.
जम्मू-कश्मीर में कैसे पनपा आतंकवाद?
7 मार्च 1986 को केंद्र की तत्कालीन राजीव गांधी की सरकार ने जम्मू-कश्मीर की गुलाम मोहम्मद शाह की सरकार को बर्खास्त कर दिया. उसके एक साल मार्च 1987 में विधानसभा चुनाव हुए और घाटी में सबकुछ बदल गया.
1987 के चुनाव से पहले जमात-ए-इस्लामी और इत्तेहाद-उल-मुस्लमीन जैसी अलगाववादी पार्टियां एक हुईं और मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट बनाया. इस फ्रंट ने कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस के खिलाफ चुनाव लड़ा.
मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट की रैलियों में जमकर भीड़ आती थी. चुनाव में इस फ्रंट की जीत लगभग तय मानी जा रही थी. लेकिन जब नतीजे आए तो जीत कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस गठबंधन की हुई. आरोप लगे कि चुनाव में धांधली हुई और मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट के उम्मीदवारों को जीतने से रोका गया.
ये चुनाव इसलिए टर्निंग पॉइंट कहे जाते हैं क्योंकि इसके बाद कश्मीर में अलगाववाद और आतंकवाद की शुरुआत हुई. मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट की ओर से लड़े ज्यादातर उम्मीदवार बाद में आतंकवादी बन गए. सैयद सलाहुद्दीन हिज्बुल मुजाहिदीन का कमांडर बना, जो अब पाकिस्तान में रहता है.
1990 का दौर आते-आते यहां आतंकवाद चरम पर था. गैर-मुस्लिमों खासकर कश्मीरी पंडितों को घाटी से भगाया जाने लगा. जो घाटी छोड़कर नहीं गए, उन्हें मार डाला गया.