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चुनावी वादे vs आर्थिक हालात... बिहार और आंध्र के लिए क्यों मुश्किल है विशेष राज्य का दर्जा?

बजट सत्र शुरू हो गया है. इसके साथ ही आंध्र प्रदेश और बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग फिर तेज हो गई है. रविवार को हुई ऑल पार्टी मीटिंग में इसका मुद्दा भी उठा. हालांकि, सरकार का कहना है कि नए राज्य को विशेष राज्य का दर्जा नहीं मिल सकता. ऐसे में जानते हैं कि आंध्र और बिहार की ये मांग कितनी जायज है? और क्यों दर्जा मिलना मुश्किल है?

चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार. (फाइल फोटो-PTI) चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार. (फाइल फोटो-PTI)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 22 जुलाई 2024,
  • अपडेटेड 7:05 PM IST

बजट सत्र शुरू होते ही आंध्र प्रदेश, बिहार और ओडिशा को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग उठने लगी है. बिहार की जेडीयू, आंध्र की वाईएसआर कांग्रेस और ओडिशा की बीजू जनता दल ने रविवार को ऑल पार्टी मीटिंग में इस मांग को उठाया. वहीं, कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि बड़ी अजीब बात है कि टीडीपी इस मसले पर चुप है.

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बिहार के लिए विशेष राज्य के दर्जे की मांग सिर्फ एनडीए की सहयोगी जेडीयू और एलजेपी (रामविलास) की ओर से ही नहीं, बल्कि आरजेडी की तरफ से भी उठाई गई.

किस-किसने उठाई मांग?

ऑल पार्टी मीटिंग में जेडीयू सांसद संजय कुमार झा ने बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग उठाई. उन्होंने कहा कि अगर विशेष राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता तो स्पेशल पैकेज दिया जा सकता है.

वाईएसआर कांग्रेस के सांसद विजयसाई रेड्डी ने आंध्र को विशेष दर्जा देने की मांग की. उन्होंने बताया कि मीटिंग में आठ मुद्दे उठाए गए थे, जिनमें पहला मुद्दा विशेष दर्जा का ही था. उन्होंने कहा कि हमारी ये मांग उसी दिन से है, जिस दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने राज्यसभा में इसका वादा किया था. उन्होंने टीडीपी पर इस मुद्दे को नजरअंदाज करने का आरोप लगाया.

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वहीं, बीजेडी सांसद सस्मित पात्रा ने बताया कि उनकी पार्टी ने ओडिशा को विशेष राज्य का दर्जा देने का मुद्दा उठाया. उन्होंने कहा कि ओडिशा लंबे समय से इसकी मांग कर रहा है.

पर ऐसी मांग क्यों?

आंध्र प्रदेश और बिहार लंबे समय से विशेष राज्य का दर्जा बंटवारे की वजह से मांग रहे हैं. 2000 में बिहार का बंटवारा कर झारखंड बना था और 2014 में आंध्र से अलग होकर तेलंगाना बना दिया गया था.

बिहार का दावा है कि झारखंड प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध है और उसके अलग होने से उसकी अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई है. बिहार देश के सबसे गरीब राज्यों में से एक है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दावा करते हैं कि आज भी बिहार की बड़ी आबादी तक स्वास्थ्य, शिक्षा और बुनियादी ढांचे की पहुंच नहीं है.

वहीं, आंध्र प्रदेश का कहना है कि बंटवारा करते समय उसके साथ नाइंसाफी की गई. तेलंगाना को सबकुछ दे दिया गया, जबकि आंध्र को कुछ नहीं मिला. 

2014 में जब तेलंगाना बना था, तब केंद्र में यूपीए की सरकार थी. उस वक्त तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने आंध्र प्रदेश को पांच साल के लिए विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग की थी, क्योंकि उसकी वित्तीय राजधानी हैदराबाद को तेलंगाना के हिस्से में डाल दिया गया था. हालांकि, फिर सरकार बदल गई और बात ठंडे बस्ते में चली गई. आंध्र को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर 2018 में चंद्रबाबू नायडू ने एनडीए का साथ छोड़ दिया था.

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ओडिशा भी लंबे वक्त से विशेष राज्य का दर्जा मांग रहा है. ओडिशा का कहना है कि उसकी आबादी में 22 फीसदी से ज्यादा आदिवासी हैं और इसका एक बड़ा क्षेत्र पिछड़ा है, इसलिए विशेष राज्य का दर्जा मिलना चाहिए.

पीएम मोदी, चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार. (फाइल फोटो-PTI)

बिहार-आंध्र की मांग कितनी जायज?

बिहार और आंध्र, ये दो ऐसे राज्य हैं जो विशेष राज्य का दर्जा लंबे समय से मांग रहे हैं. हालांकि, बिहार की तुलना में आंध्र कहीं ज्यादा आगे है.

2021-22 में आंध्र की जीडीपी ग्रोथ रेट 11.43% थी, जो देश में सबसे ज्यादा थी. 2023-24 में आंध्र की जीडीपी ग्रोथ रेट 17% की दर से बढ़ने की उम्मीद है. अनुमान है कि 2023-24 में आंध्र की जीडीपी 15.40 लाख करोड़ रुपये है. इतना ही नहीं, राज्य की प्रति व्यक्ति आय 2.70 लाख रुपये से ज्यादा है, जो 2022-23 में 2.45 लाख रुपये थी.

इसके अलावा, आंध्र प्रदेश में विशाखापट्टनम, तिरुपति और विजयवाड़ा जैसे जिलों में देश-विदेश की कई नामचीन कंपनियां भी हैं. जानकार मानते हैं कि एक 'वादे' के अलावा आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा मांगने का कोई कारण नहीं है.

दूसरी ओर, बिहार देश के पिछड़े और गरीब राज्यों में से एक है. 2022-23 में बिहार में प्रति व्यक्ति जीडीपी 31,280 रुपये थी, जो देश में सबसे कम है. NFHS-5 के सर्वे के मुताबिक, बिहार में गरीबी का स्तर सबसे ज्यादा है. यहां की 33% से ज्यादा आबादी गरीब है.

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पिछले साल बिहार के तत्कालीन एसीएस एस. सिद्धार्थ ने मीडिया से बात करते हुए दावा किया था कि भूमिहीनों को जमीन और बेघरों को घर देने में ढाई लाख रुपये का खर्च आएगा. उन्होंने कहा था कि इतनी बड़ी रकम पाने के लिए बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिलना चाहिए.

लेकिन इससे होगा क्या?

साल 1969 में पांचवें वित्त आयोग ने कुछ राज्यों को 'स्पेशल कैटेगरी स्टेटस' यानी SCS देने की सिफारिश की थी. हालांकि, इसके लिए कुछ पैमाने बनाए गए थे. मसलन, राज्य का पहाड़ी या दुर्गम भूभाग हो, जनजातीय आबादी ज्यादा हो या जनसंख्या घनत्व कम हो, अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं के साथ रणनीतिक जगह हो, आर्थिक और बुनियादी ढांचे के आधार पर पिछड़ा हो या फिर राज्य का फाइनेंस सिस्टम नुकसान की स्थिति में हो.

इसी आधार पर 1969 में तीन राज्यों- जम्मू-कश्मीर, असम और नागालैंड को विशेष राज्य का दर्जा दिया गया था. इसके बाद से अब तक अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, सिक्किम, त्रिपुरा, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड को विशेष राज्य का दर्जा मिल चुका है.

विशेष राज्य का दर्जा मिलने का सबसे बड़ा फायदा होता है कि इससे राज्य का आर्थिक बोझ कम हो जाता है. केंद्रीय योजनाओं के लिए केंद्र सरकार राज्य को 90% फंड देती है और राज्य को सिर्फ 10% खर्च करना पड़ता है. जबकि, बाकी राज्यों के लिए केंद्र 60% फंड देती है और बाकी का 40% खर्च राज्य सरकार को उठाना पड़ता है.

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दूसरा बड़ा फायदा ये है कि किसी भी वित्तीय सहायता के लिए केंद्र सरकार जो पैसा देती है, वो विशेष राज्य को 90% ग्रांट और 10% लोन के रूप में मिलता है. जबकि, बाकी राज्यों को 30% ग्रांट और 70% लोन के रूप में दिया जाता है.

इसके अलावा, स्पेशल कैटेगरी के दर्जे वाले राज्यों को केंद्र से जो रकम मिलती है, वो कैरी फॉरवर्ड हो जाती है यानी उसे अगले साल भी खर्च किया जा सकता है. जबकि, बाकी राज्यों को जो फंड मिलता है, उसे उसी वित्त वर्ष में खर्च करना होता है. इसके साथ ही विशेष राज्यों को कई सारी रियायतें भी मिलती हैं.

स्पेशल स्टेटस मिलना क्यों मुश्किल?

बिहार और आंध्र प्रदेश भले ही स्पेशल कैटेगरी का स्टेटस मांग रहे हों, लेकिन इन्हें ये मिलना बहुत मुश्किल है. उसकी वजह ये है कि केंद्र सरकार साफ कर चुकी है कि वो किसी नए राज्य को विशेष राज्य का दर्जा नहीं देगी.

पिछले साल वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने साफ कर दिया था कि किसी भी राज्य को विशेष राज्य का दर्जा नहीं मिलेगा. उन्होंने कहा था कि वित्त आयोग साफ कर चुका है कि अब किसी नए राज्य को स्पेशल कैटेगरी का स्टेटस नहीं मिलेगा.

14वें वित्त आयोग (2105-20) ने सिफारिश की थी कि किसी राज्य को स्पेशल कैटेगरी का स्टेटस देने की बजाय उसे केंद्र के टैक्स रेवेन्यू में मिलने वाला हिस्सा बढ़ा दिया जाए. वित्त आयोग की इस सिफारिश को केंद्र ने मान लिया था. इसके बाद केंद्र के टैक्स रेवेन्यू में राज्यों को 32% की बजाय 42% हिस्सा मिलता है. 15वें वित्त आयोग (2021-26) ने भी टैक्स बंटवारे का यही स्तर सुझाया है.

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लिहाजा आंध्र प्रदेश, बिहार या फिर ओडिशा को विशेष राज्य का दर्जा शायद न ही मिले. इसकी जगह इन राज्यों को स्पेशल पैकेज मिल सकता है. मसलन, आंध्र को नई राजधानी अमरावती बनाने के लिए केंद्र की ओर से पैकेज मिल सकता है. ऐसा ही पैकेज 2000 में उत्तराखंड, झारखंड और छत्तीसगढ़ को भी मिला था. उसी साल ये तीनों नए राज्य बने थे, जिसके बाद इन्हें अपनी राजधानी बनाने के लिए केंद्र ने पैकेज दिया था. 

वहीं, बिहार का भी कहना है कि अगर विशेष राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता तो स्पेशल पैकेज दिया जा सकता है. बिहार को ढाई लाख करोड़ रुपये की जरूरत है. वहीं, बजट सत्र के पहले दिन संसद में सरकार ने एक बार फिर साफ कर दिया कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता, क्योंकि वो इसके लिए जरूरी क्राइटेरिया में फिट नहीं बैठता.

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