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जीत मिले तो भी आसान नहीं हैरिस के लिए गर्भपात से बैन हटा सकना, क्यों राष्ट्रपति के पास हैं सीमित अधिकार?

दो साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने गर्भपात पर रोक लगाते हुए राज्यों को ये हक दे दिया कि वे रस्सी अपने मुताबिक ढीली छोड़ सकते हैं. अब राष्ट्रपति चुनाव में अबॉर्शन का मुद्दा छाया हुआ है. कमला हैरिस जहां इसे महिलाओं की आजादी से जोड़ती हैं, तो डोनाल्ड ट्रंप इसे अजन्मे शिशु का अधिकार बता रहे हैं. रस्साकशी के बीच एक बात ये है कि प्रेसिडेंट के पास इसपर बेहद कम अधिकार हैं.

गर्भपात बड़े चुनावी मुद्दों में से है. (Photo- AP) गर्भपात बड़े चुनावी मुद्दों में से है. (Photo- AP)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 04 नवंबर 2024,
  • अपडेटेड 2:33 PM IST

मंगलवार को होने जा रहे अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में कई मुद्दे छाए हुए हैं. इसमें अबॉर्शन की मांग टॉप पर है. करीब दो साल पहले सुप्रीम कोर्ट के इसपर रोक लगाने के बाद से पार्टियों ने इसे अलग-अलग तरह से भुनाया. डेमोक्रेटिक पार्टी की कैंडिडेट कमला हैरिस दावा कर रही हैं कि उनकी सरकार ये कर दिखाएगी. वहीं ट्रंप इसके खिलाफ हैं. लेकिन इतना तय है कि बड़ी संख्या में वोटर इस मुद्दे के आधार पर अपना मन बना चुके होंगे. लेकिन अमेरिका में अबॉर्शन पर कोई भी कानून लाना या बदलना आसान नहीं. 

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क्या हुआ था दो साल पहले 

जून 2022 में अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने गर्भपात को मंजूरी देने वाले लगभग पांच दशक पुराने फैसले को पलट दिया था. इसके पहले भी 13 राज्यों ने अपने यहां एंटी-अबॉर्शन कानून बना रखे थे लेकिन उतनी सख्ती से नहीं. अगर कहीं मुश्किल हो भी तो महिलाएं दूसरे राज्यों के अस्पताल चली जाती थीं. लेकिन दो साल पहले हुए फैसले ने सब बदल दिया. गर्भपात को नैतिक और धार्मिक तौर पर गलत बताते हुए अदालत ने स्टेट्स को ये पावर दे दी कि वे एंटी-अबॉर्शन लॉ को अपने अनुसार और कड़ा कर सकते हैं.

घर पर अबॉर्शन को मजबूर महिलाएं

इसके तुरंत बाद ही अबॉर्शन क्लीनिकों पर ताला पड़ गया. यहां तक कि प्लान किए गए अबॉर्शन भी कैंसल कर दिए गए. तब से हालात लगातार बिगड़े. अब स्थिति ये है कि अनचाहा गर्भ ठहरने पर महिलाएं उसे घर पर गिराने को मजबूर हैं. ये दावा अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन की पत्रिका जेएएमए (JAMA) नेटवर्क ओपन जर्नल ने कुछ ही महीनों पहले किया था. उसका कहना है कि हर साल लाखों गर्भपात असुरक्षित तरीके से हो रहे हैं. 

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अबॉर्शन की सही मानती है बड़ी आबादी 

बेहद मॉर्डन कहलाते यूएसए में गर्भपात पर लंबे समय से बहस हो रही है. ज्यादातर वयस्कों का मानना है कि ये महिलाओं का हक है, और कोर्ट को इसमें दखल नहीं देना चाहिए, वहीं 40 फीसदी लोग एंटी-अबॉर्शन को ठीक मानते हैं. गार्जियन की एक रिपोर्ट के अनुसार लगभग 85 फीसदी लोगों ने कुछ खास हालातों में गर्भपात को पूरी तरह सही माना. अब चुनाव में ये भी बड़ा मुद्दा है. डोनाल्ड ट्रंप एंटी-अबॉर्शन की वकालत करते आए हैं, जबकि कमला हैरिस समेत उनकी पार्टी इस कानून को हटाना चाहती हैं. माना जा रहा है कि हार-जीत पर इस मुद्दे का बड़ा असर होगा. 

क्यों लाया गया गर्भपात विरोधी कानून 

इसके पीछे धार्मिक, राजनैतिक और सामाजिक कारण रहे. धार्मिक विश्वास के तहत कैथोलिक्स इसे गलत मानते हैं. वहीं कई एंटी-अबॉर्शन एक्टिविस्ट इसे जीवन के अधिकार की तरह देखते हैं, और अजन्मे बच्चे के खिलाफ साजिश बताते हैं. अमेरिका में कंजर्वेटिव पार्टियों के नेता भी इसमें शामिल रहे. कोर्ट के आदेश के बाद ज्यादातर राज्यों ने गर्भपात पर पक्का प्रतिबंध लगा दिया. वहीं, कई राज्यों में कुछ हद तक छूट है. कहीं-कहीं ये छूट 6 हफ्तों की है, जब प्रेग्नेंसी का कई बार पता तक नहीं लगता है. 

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अबॉर्शन पर राष्ट्रपति कानून बना या बदल सकता है, इसकी संभावना काफी कम है.

हैरिस ने वादा करते हुए कहा था कि जब कांग्रेस रिप्रॉडक्टिव फ्रीडम पर बिल पास करेगी तो बतौर राष्ट्रपति मैं बेहिचक उसपर साइन करूंगी. यानी साफ है कि जब तक कांग्रेस नहीं चाहेगी, बिल वाइट हाउस तक नहीं पहुंच सकेगा. वे अगर राष्ट्रपति चुनी जाएं तो एक पुराने संशोधन को वापस रद्द जरूर कर सकती हैं. हाइड अमेंडमेंट नाम से कानून सत्तर के दशक में आया था. इसका सीधा-सादा मकसद था, संघ के पैसों को गर्भपात पर खर्च होने से रोकना.

इस कानून के सपोर्टर इसे एंटी-अबॉर्शन नीतियों के लिहाज से बहुत अहम मानते हैं. वे मानते हैं टैक्सपेयर का हक है कि वे ऐसी चीजों पर अपने पैसे न लगाएं, जिनसे वे असहमत हैं. वहीं विरोधी मानते हैं कि इसका असर कमजोर तबके की महिलाओं पर हो रहा है, जो अबॉर्शन के लिए संघीय पैसों पर निर्भर रहती आई हैं. हाइड अमेंडमेंट अब तक चला आ रहा है. हैरिस अकेले ही इसे रद्द नहीं कर सकतीं. राजनैतिक मतभेद के चलते शायद ही ऐसा मुमकिन हो सके. 

अब इसका दूसरा पक्ष देखते चलें

ट्रंप ने शुरुआती रैलियों के समय नेशनल अबॉर्शन लिमिट तय करने की बात की थी. यानी हर स्टेट के पास गर्भपात का निश्चित अधिकार हो. हालांकि कुछ ही हफ्तों के भीतर उन्होंने खुद ही इस बात को वापस ले लिया. अब ये हो सकता है गर्भपात पर पाबंदी और कड़ी करने के लिए कुछ पुराने कानूनों का सहारा लिया जाए. जैसे 19वीं सदी में कॉम्स्टॉक एक्ट हुआ करता था, जो गर्भपात को क्रिमिनलाइज करता. इसके तहत अबॉर्शन पिल्स और इसके लिए जरूरी मेडिकल उपकरणों पर भी बैन लगाया जा सकता है.

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