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बैन की वजह से घर पर अबॉर्शन को मजबूर अमेरिकी महिलाएं, सर्वे में माना- पेट पर पहुंचा रहीं चोट, सुपरपावर देश में गर्भपात क्यों बना मुद्दा?

अमेरिका में उन महिलाओं की संख्या बढ़ रही है जो अपना गर्भपात खुद ही कर रही हैं. वे जड़ी-बूटियां खाकर, शराब या नशे की दवाएं लेकर, यहां तक कि पेट पर चोट पहुंचाकर भी अबॉर्शन की कोशिश करने लगी हैं. इस चुनाव में गर्भपात का हक एक बड़ा मुद्दा है. दुनिया के सबसे मॉर्डन देश कहलाते अमेरिका में अबॉर्शन हमेशा से गैरकानूनी नहीं था.

यूएस में गर्भपात पर कई बार रोक लग चुकी. (Photo- Reuters) यूएस में गर्भपात पर कई बार रोक लग चुकी. (Photo- Reuters)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 05 अगस्त 2024,
  • अपडेटेड 12:07 PM IST

दो साल पहले अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने गर्भपात पर पाबंदी लगाते हुए राज्यों को अपनी तरफ से कानून में घट-बड़ करने की छूट दे दी. इसके बाद से वहां बड़ा बदलाव आया. गर्भपात हो तो अब भी रहे हैं, लेकिन घरेलू तरीकों से. कई बार मामले इतने बिगड़ जाते हैं कि महिला को अस्पताल जाने की नौबत आ जाती है.

हाल में हुए एक सर्वे में ये बात निकलकर आई. इसके मुताबिक, खुद से अबॉर्शन करने वाली महिलाओं की संख्या तेजी से बढ़ी. 

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क्या कहता है सर्वे

अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन की पत्रिका जेएएमए (JAMA) नेटवर्क ओपन जर्नल ने बीते मंगलवार एक सर्वे के नतीजे छापे. रिसर्चरों ने सर्वे के पहले छह महीनों में 7 हजार महिलाओं, जबकि सालभर बाद 7 हजार से कुछ ज्यादा महिलाओं से समूहों से बात की. इसमें उन्होंने माना कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद से वे घर पर खुद ही अबॉर्शन के लिए मजबूर हैं. शोध छोटे ग्रुप पर किया गया लेकिन शोधकर्ताओं ने माना कि ऐसी औरतों की संख्या लाखों में हो सकती है. 

क्या हुआ था दो साल पहले

जून 2022 में अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने गर्भपात को मंजूरी देने वाले लगभग पांच दशक पुराने फैसले को पलट दिया था. इसके पहले भी 13 राज्यों ने अपने यहां एंटी-अबॉर्शन कानून बना रखे थे लेकिन उतनी सख्ती से नहीं. अगर कहीं मुश्किल हो भी तो महिलाएं दूसरे राज्यों के अस्पताल चली जाती थीं. लेकिन दो साल पहले हुए फैसले ने सब बदल दिया. गर्भपात को नैतिक और धार्मिक तौर पर गलत बताते हुए अदालत ने स्टेट्स को ये पावर दे दी कि वे एंटी-अबॉर्शन लॉ को अपने अनुसार और कड़ा कर सकते हैं. 

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कोर्ट की बात पब्लिक में आते ही अबॉर्शन क्लीनिकों पर ताला पड़ने लगा. यहां तक कि प्लान किए गए अबॉर्शन भी कैंसल कर दिए गए. इसके बाद से हालात लगातार बिगड़े. अब ये स्थिति है कि अनचाहा गर्भ ठहरने पर महिलाएं उसे घर पर गिराने को मजबूर हैं. 

'खास परिस्थिति' में अबॉर्शन की सही मानती है बड़ी आबादी

बेहद मॉर्डन कहलाते यूएसए में गर्भपात पर लंबे समय से बहस हो रही है. ज्यादातर वयस्कों का मानना है कि ये महिलाओं का हक है, और कोर्ट को इसमें दखल नहीं देना चाहिए, वहीं 40 फीसदी लोग एंटी-अबॉर्शन को ठीक मानते हैं. गार्जियन की एक रिपोर्ट के अनुसार लगभग 85 फीसदी लोगों ने कुछ खास हालातों में गर्भपात को पूरी तरह सही माना. 

अब चुनाव में ये भी बड़ा मुद्दा है. डोनाल्ड ट्रंप एंटी-अबॉर्शन की वकालत करते आए हैं, जबकि कमला हैरिस समेत उनकी पार्टी इस कानून को हटाना चाहती हैं. माना जा रहा है कि नवंबर में होने वाली हार-जीत इससे भी तय होगी. 

गर्भ में हलचल के बाद अबॉर्शन की थी मनाही

19वीं सदी में अमेरिका में कॉमन लॉ के तहत गर्भपात की इजाजत थी. इसपर तभी रोक लगती थी, जब महिला के गर्भ में हलचल होती दिखने लगी, यानी जब प्रेग्नेंसी एडवांस स्टेज में पहुंच जाए. कैथोलिक चर्च भी इस बात को मानते थे कि इससे पहले भ्रूण में कोई जान नहीं होती. बता दें कि चर्च ने गर्भपात के खिलाफ कानून लाने में बड़ी भूमिका निभाई. 

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कुछ आगे चलकर चर्च एंटी-अबॉर्शन चेहरा बन गया. तब भी लेकिन इसकी अनुमति रही. खासकर अगर गर्भ से महिला को कोई खतरा हो. चर्च के बाद इसमें भारी संख्या में मेल डॉक्टर भी शामिल हो गए. ऑक्सफोर्ड से पढ़े डॉ होरेशियो स्टोरर इस कैंपेन के अगुआ बने. 

डॉक्टरों के पास अलग ही तर्क था

तब अमेरिका में रिफ्यूजी आने लगे थे. एंटी-अबॉर्शन की वकालत करने वालों ने कहा कि अमेरिकी महिलाओं को देश को अपनी संतानों से भर देना चाहिए ताकि घुसपैठियों के लिए जगह ही न बचे. इन दलीलों के बीच भी अबॉर्शन क्लिनिक चलते रहे. साल 1950 से अगले 10 सालों में हर वर्ष ये नंबर बढ़ता चला गया और 2 लाख से शुरू होकर आंकड़ा 12 लाख तक पहुंच गया. 

1970 से लेकर 2022 के सबसे बड़े फैसले

अबॉर्शन पर सबसे बड़े फैसलों की बात करें तो वे दो ही बार आए. साल 1973 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पहले तीन महीनों में गर्भपात किया जा सकता है. इस बीच कई स्टेट्स इसे ज्यादा ही सख्ती से लागू करने लगे लेकिन कोर्ट हर बार बीच में आकर गर्भपात की छूट देती रही. लेकिन साल 2022 में अदालत ने ही इसके खिलाफ फैसला दे दिया, साथ ही राज्यों को हक दे दिया कि वे इसमें कम-ज्यादा प्रतिबंध लगा सकते हैं.

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अदालत के कहने के तुरंत बाद ज्यादातर राज्यों ने गर्भपात पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया. वहीं, अलास्का, कैलीफोर्निया, कंसास, मिशिगन, मिनेसोटा, ओहायो और वर्मॉन्ट में कुछ हद तक छूट है. कहीं-कहीं ये छूट 6 हफ्तों की है, जब प्रेग्नेंसी का कई बार पता तक नहीं लगता. वहीं कई स्टेट तीन महीने तक गुंजाइश देते हैं. 

क्यों लाया गया गर्भपात विरोधी कानून

इसके पीछे धार्मिक, राजनैतिक और सामाजिक कारण रहे. धार्मिक विश्वास के तहत कैथोलिक्स इसे गलत मानते हैं. वहीं कई एंटी-अबॉर्शन एक्टिविस्ट इसे जीवन के अधिकार की तरह देखते हैं, और अजन्मे बच्चे के खिलाफ साजिश बताते हैं. अमेरिका में कंजर्वेटिव पार्टियों के नेता भी इसमें शामिल रहे. 

यूरोप के तीन ही देशों में एंटी-अबॉर्शन कानून

अमेरिका को अपना अगुआ मानते यूरोपीय देश इस मामले में उससे अलग हैं. ज्यादातर यूरोपीय देशों में गर्भपात को कानूनी रजामंदी है. लेकिन कुछ देश ऐसे हैं, जहां ये प्रतिबंधित है, या काफी सख्त पाबंदी है. माल्टा, पोलैंड और एंडोरा वही देश हैं. पोलैंड और एंडोरा में तो फिर भी मां की जान पर खतरा होने पर अबॉर्शन लीगल है, लेकिन माल्टा में इसकी कतई इजाजत नहीं. 

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