
भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई से जन्मी आम आदमी पार्टी इस वक्त खुद भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरी हुई है. आम आदमी पार्टी के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री रहे अरविंद केजरीवाल को 156 दिन जेल में बिताना पड़ा है. आलम ये है कि जमानत पर बाहर आते ही उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने का ऐलान भी कर दिया. अब केजरीवाल का कहना है कि जब तक जनता उन्हें नहीं चुनती, तब तक वो सीएम की कुर्सी पर नहीं बैठेंगे.
आज से 12 साल पहले तक अरविंद केजरीवाल उस हजारों-लाखों की भीड़ का हिस्सा थे, जो दिल्ली के जंतर-मंतर पर अन्ना हजारे के साथ खड़ी थी. आज वही अरविंद केजरीवाल राष्ट्रीय राजनीति का अहम चेहरा बन चुके हैं.
अन्ना हजारे का ये आंदोलन भ्रष्टाचार के खिलाफ था. इस आंदोलन में अरविंद केजरीवाल ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था. उस समय तो उन्हें अन्ना हजारे का 'अर्जुन' भी कहा जाने लगा था. अन्ना आंदोलन लंबे वक्त तक चला. भूख हड़तालें हुईं. पर इन सबके बावजूद जन लोकपाल कानून नहीं बन पाया.
फिर आई 2012 की 2 अक्टूबर...
वो तारीख जब अरविंद केजरीवाल ने राजनीतिक पार्टी बनाने का ऐलान किया. सवाल भी उठे. केजरीवाल पर राजनीतिक पार्टी बनाने के लिए अन्ना आंदोलन का इस्तेमाल करने का आरोप भी लगा. हालांकि, केजरीवाल और उनके सहयोगियों का कहना था कि देश को भ्रष्टाचार से छुटकारा दिलाने का यही तरीका है कि वो राजनीति में जाएं और सिस्टम में घुसकर गंदगी को साफ करें.
आखिरकार 26 नवंबर 2012 को अरविंद केजरीवाल ने 'आम आदमी पार्टी' नाम से राजनीतिक पार्टी लॉन्च कर दी. अन्ना हजारे भी इसके पक्ष में नहीं थे. लेकिन उस समय अरविंद केजरीवाल ने कहा कि 'सभी पार्टियों ने धोखा दिया है. सभी पार्टियां पर्दे के पीछे से एक-दूसरे की मदद करती हैं. जब तक राजनीति नहीं बदलेगी तब तक भ्रष्टाचार से मुक्ति नहीं मिल सकती. इसलिए हमने मजबूरी में आम आदमी पार्टी का गठन किया है.'
लेकिन 'मजबूरी' में शुरू हुई आम आदमी पार्टी आज देश की राष्ट्रीय पार्टी बन गई है. बीजेपी, कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के बाद चौथे नंबर की पार्टी है जिसके देश में सबसे ज्यादा विधायक हैं. दिल्ली और पंजाब में सरकार है. एमसीडी पर भी कब्जा हो गया है. गुजरात और गोवा में पार्टी की एंट्री हो चुकी है. राज्यसभा में चौथे नंबर की पार्टी है, जिसके सबसे ज्यादा सांसद हैं.
पर ये सब हुआ कैसे?
2013 के आखिर में आम आदमी पार्टी चुनावी मैदान में उतरी. पार्टी ने दिल्ली की सभी विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया. पहले ही चुनाव में सबको चौंकाते हुए आम आदमी पार्टी ने दिल्ली की 70 में से 28 सीटों पर बाजी मार ली.
अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली की तीन बार मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को रिकॉर्ड वोटों के अंतर से हराया. लेकिन पार्टी बहुमत से दूर रह गई. बहुमत न मिलने की वजह से केजरीवाल ने कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई. इस गठबंधन सरकार में अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री बने.
लेकिन जल्द ही इस गठबंधन पर सवाल उठने लगे. सवाल उठे कि जिस आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के खिलाफ चुनाव लड़ा, बाद में उसी के साथ मिलकर सरकार बना ली. गठबंधन में भी बात बिगड़ने लगी और ये सरकार महज 49 दिन ही चली. 14 फरवरी 2014 को अरविंद केजरीवाल ने इस्तीफा दे दिया और कहा कि विधानसभा में बहुमत नहीं है, इसलिए जन लोकपाल बिल पास नहीं करा पा रहे हैं, इसलिए फिर से चुनाव के बाद पूर्ण बहुमत के साथ लौटेंगे.
फिर वो हुआ, जो किसी ने सोचा भी नहीं था
अरविंद केजरीवाल के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया.
करीब सालभर तक राष्ट्रपति शासन रहने के बाद चुनावों का ऐलान हुआ. जिस आम आदमी पार्टी की उम्र महज दो साल थी, उसने दिल्ली की 70 में से 67 सीटें जीतकर इतिहास रच दिया. जिस पार्टी के पास कभी कुछ नहीं था, उसने पूरी दिल्ली का दिल जीत लिया था.
2015 में सत्ता में आते ही केजरीवाल ने दिल्ली में बिजली-पानी फ्री कर दिया. कई योजनाएं शुरू कीं. लेकिन ये बहुमत 'फूट' भी लेकर आया. एक वक्त ऐसा आया जब प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव ने केजरीवाल पर 'सुप्रीम लीडर' होने का आरोप लगाया. पार्टी ने प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव समेत आनंद कुमार और अजीत झा जैसे नेताओं को निकाल दिया.
इसके बाद कुमार विश्वास और अरविंद केजरीवाल के रिश्ते बिगड़ने लगे. एक वक्त था जब कुमार विश्वास को अरविंद केजरीवाल अपना छोटा भाई बताते थे. रिश्ते बदतर तब हुए जब 2018 में कुमार विश्वास को राज्यसभा नहीं भेजा गया. बाद में कुमार विश्वास ने भी पार्टी छोड़ दी. कई और भी बड़े नेता पार्टी छोड़ते चले गए.
2020 में फिर किया चमत्कार
आम आदमी पार्टी से नेता छूटते जा रहे थे, लेकिन अरविंद केजरीवाल की छवि पर कुछ खास असर नहीं पड़ा. फरवरी 2020 में दिल्ली में जब विधानसभा चुनाव हुए तो आम आदमी पार्टी ने फिर चमत्कार कर दिया.
इस चुनाव में आम आदमी पार्टी ने 70 में से 62 सीटों पर जीत दर्ज की. 2015 के मुकाबले सीटें थोड़ी कम जरूर हुई थी, लेकिन तब भी ये किसी चमत्कार से कम नहीं था.
उसकी कई वजहें भी थीं. पहली ये कि 6 महीने पहले ही हुए 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी 2014 से भी ज्यादा बड़े बहुमत के साथ लौटी थी. और दूसरी ये कि 70 में से 67 विधानसभा सीटों पर कब्जा होने के बाद भी आम आदमी पार्टी दिल्ली की सातों लोकसभा सीटों पर हार गई थी.
तीसरी एक वजह ये भी कि 2014 के लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने चार सीटें जीती थीं. लेकिन 2019 में पार्टी सिर्फ एक सीट जीत सकी. पंजाब की संगरूर सीट से भगवंत मान ही इकलौते आम आदमी पार्टी के सांसद थे.
नेताओं का पार्टी छोड़ना, लोकसभा चुनाव, एमसीडी चुनाव में कुछ खास न कर पाने से लग रहा था कि 2020 में आम आदमी पार्टी 2015 जैसा कमाल नहीं कर पाएगी. लेकिन इस बार भी केजरीवाल ने सबको चौंका दिया.
10 साल में ही बनी राष्ट्रीय पार्टी
दो साल पहले गुजरात में विधानसभा चुनाव हुए थे. इस चुनाव में आम आदमी पार्टी को 13 फीसदी वोट मिले थे. पांच सीटें भी जीती थीं. इसके साथ ही आम आदमी पार्टी राष्ट्रीय पार्टी बन गई थी.
राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल करने के लिए किसी भी पार्टी को कम से कम चार राज्यों में स्टेट पार्टी का दर्जा मिलना चाहिए. गुजरात के नतीजों से पहले तक आम आदमी पार्टी को दिल्ली, पंजाब और गोवा में क्षेत्रीय दल का दर्जा मिला था.
कहां-कहां है आम आदमी पार्टी?
आम आदमी पार्टी की दिल्ली और पंजाब में पूर्ण बहुमत की सरकार है. दिल्ली में अरविंद केजरीवाल तो पंजाब में भगवंत मान मुख्यमंत्री हैं.
आम आदमी पार्टी के दिल्ली में 62, पंजाब में 92, गुजरात में 5 और गोवा में दो विधायक हैं. यानी, देशभर में कुल 161 विधायक हैं.
इसके अलावा अब दिल्ली एमसीडी में भी आम आदमी पार्टी का कब्जा है. एमसीडी में पार्टी ने 250 में से 134 वार्डों में जीत हासिल की थी. हालांकि, हाल ही में आम आदमी पार्टी के पांच पार्षद बीजेपी में शामिल हो गए थे.
संसद में आम आदमी पार्टी के 13 सांसद हैं. लोकसभा में तीन और राज्यसभा में 10 सांसद हैं.