
पूर्वोत्तर राज्य असम में एक के बाद एक कई बड़े फैसले हो रहे हैं. कुछ समय पहले ही वहां की कैबिनेट ने स्वदेशी मुस्लिम आबादी के सामाजिक-आर्थिक सर्वे को मंजूरी दी. इससे उन मुस्लिमों को ज्यादा सुविधाएं मिल सकेंगी, जो असम के मूल निवासी हैं, जबकि बांग्लाभाषी समुदाय अलग छंट जाएगा. इस बात पर विरोध थमा भी नहीं था, कि हिमंता सरकार ने एक और बिल पारित कर दिया.
असम हीलिंग (प्रिवेंशन ऑफ एविल) प्रैक्टिसेस बिल एक तरह से जादू-टोने और झाड़-फूंक से इलाज पर रोक लगाता है. लेकिन सवाल ये है कि इसपर कोई समुदाय क्यों खुद को निशाने पर आया महसूस कर रहा है.
धर्मांतरण के खिलाफ मुहिम
स्टेट में धर्मांतरण की शिकायतों के साथ ही उसका विरोध करने वाले दल भी बढ़े. बीते महीने एक हिंदू समूह कुटुंब सुरक्षा परिषद ने स्थानीय मिशनरी स्कूलों से कहा कि वे अपने कैंपस से क्रिश्चियन प्रतीक हटा लें. एक और ग्रुप ने कई शहरों में कैंपेन चलाया, जिसमें स्कूलों से एंटी-भारत गतिविधियों पर रोक लगाने की मांग है. संगठनों का कहना है कि स्कूलों का इस्तेमाल धार्मिक चीजों के लिए हो रहा है. इस गहमागहमी के बीच सोमवार, 26 फरवरी को वहां की विधानसभा में एक बिल पारित हो गया. कथित तौर पर ये ईसाई कम्युनिटी को टारगेट करने वाला है.
क्या कहता है बिल
हीलिंग प्रैक्टिसेस बिल में कहा गया है कि ये मासूम और भोले-भाले लोगों का शोषण करने के लिए बनी गैर-वैज्ञानिक हीलिंग प्रैक्टिस को क्राइम घोषित करता है. विधेयक साइंस पर आधारित इलाज को बढ़ावा देने की बात करता है ताकि लोग अपनी सेहत और पैसों से खिलवाड़ न करें. इसमें ऐसे विज्ञापनों पर भी रोक लगा दी गई, जो धार्मिक तरीकों से इलाज की बात करे. ऐसा कोई एडवरटाइजमेंट अब असम में गैरकानूनी है, जो झाड़-फूंक या पूजा-पाठ से बीमारी के ठीक होने की बात करे.
किस तरह की सजा
मैजिकल हीलिंग अब राज्य में गैर-जमानती अपराध होगा.
पहली बार क्राइम साबित होने पर दोषी को 1 से 3 साल की सजा और 50 हजार तक का फाइन देना पड़ सकता है.
दूसरी बार अपराध साबित होने पर दोषी को 5 साल की कैद और दोगुना जुर्माना देना पड़ेगा.
पुलिस अधिकारी ऐसी प्रैक्टिस पर नजर रखेंगे और दखल दे सकेंगे.
बिल पर बहस के दौरान अवांजलिज्म पर रोक लगाने की बात भी हुई. यहां बता दें कि अवांजलिज्म एक टर्म है, जिसका मतलब है लोगों या पूरे समुदाय को क्रिश्चियन बनने के लिए प्रेरित करना. ये टर्म मिशनरीज के लिए इस्तेमाल होता रहा, जो दूर-दराज की यात्रा करके लोगों को अपने धर्म के बारे में बताते और उन्हें उसे अपनाने के लिए प्रेरित करते.
ईसाई समुदाय इसपर क्या एतराज जता रहा है?
बिल पर कैबिनेट अप्रूवल लेने के दौरान सीएम ने कहा कि विधयक बनाने का एक उद्देश्य धार्मिक प्रचार-प्रसार को रोकना भी है. उन्होंने दावा किया किया कि जादुई हीलिंग का इस्तेमाल आदिवासियों को कन्वर्ट करने के लिए भी होता रहा. इसके बाद भी विरोध शुरू हुआ.
दे रहे फेथ हीलिंग का हवाला
असम क्रिश्चियन फोरम नाम से संगठन ने कहा कि ईसाइयों में मैजिकल हीलिंग जैसा कोई शब्द नहीं. यहां प्रेयर के जरिए इलाज होता है, जैसा दूसरे धर्मों में भी है. अगर कोई बीमार शख्स हमारे पास आए तो उसके लिए सामूहिक रूप से प्रार्थना की जाती है. ये जादू नहीं है, बल्कि पूरी दुनिया में ऐसा किया जाता है. क्रिश्चियन्स ही नहीं, कई धर्मों में प्रार्थना से इलाज की बात होती है. इसे फेथ हीलिंग भी कहते हैं. इसमें किसी बीमारी को ठीक करने के लिए व्यक्तिगत तौर पर या ग्रुप में दुआएं की जाती हैं.
चंगाई सभाएं भी संदेह के घेरे में
कई बार गंभीर बीमारियों के ठीक होने का दावा भी इसके जरिए होता रहा, खासकर ईसाई समुदाय में. कथित तौर पर समय-समय पर उनकी सभाएं लगती हैं, जिसमें शारीरिक अपंगता से लेकर कैंसर के भी इलाज का दावा होता रहा. धर्मगुरु बीमारी की जगह पर अपना हाथ रखकर, या कोई तेल या पानी छिड़ककर भी बीमारी ठीक करने की कोशिश करता है. फेथ हीलिंग करने वालों का मानना है कि खुद ईश्वर इसमें उनकी मदद करते हैं.
मैजिकल हीलिंग प्रिवेंशन बिल का विरोध असम ही नहीं, नगालैंड में भी हो रहा है. उपमुख्यमंत्री टीआर जेलियांग ने कहा कि फेथ हीलिंग वो तरीका है, जिसमें बीमारी से जूझते शख्स को कुछ हद तक आराम दिलाने की कोशिश रहती है. इसे जादू-टोने से जोड़ना ईसाई धर्म का अपमान है.