Advertisement

मुस्लिमों की शादी से जुड़ा 89 साल पुराना वो कानून, जिसे असम की हिमंता सरकार ने किया रद्द... जानें- अब क्या होगा

असम सरकार ने मुस्लिमों की शादी और तलाक से जुड़ा 89 साल पुराना कानून रद्द कर दिया है. इस कानून को रद्द करने वाला बिल विधानसभा के मॉनसून सत्र में पेश किया जाएगा. सरकार का दावा है कि इससे बाल विवाह को रोकने में मदद मिलेगी. ऐसे में जानते हैं कि ये कानून क्या था? और इसके रद्द होने के बाद अब क्या होगा?

मुस्लिमों के निकाह से जुड़ा कानून असम में रद्द हो गया है. (प्रतीकात्मक तस्वीर) मुस्लिमों के निकाह से जुड़ा कानून असम में रद्द हो गया है. (प्रतीकात्मक तस्वीर)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 19 जुलाई 2024,
  • अपडेटेड 5:11 PM IST

असम की हिमंता बिस्वा सरमा की सरकार ने बड़ा फैसला लिया है. सरकार ने मुस्लिमों के निकाह और तलाक से जुड़े लगभग 90 साल पुराने कानून को रद्द कर दिया है. गुरुवार को असम कैबिनेट ने उस बिल को मंजूरी भी दे दी, जो इस कानून को रद्द करेगा.

मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने बताया कि कैबिनेट ने 1935 के असम मुस्लिम मैरिजेस एंड डायवोर्स रजिस्ट्रेशन एक्ट और रूल्स को रद्द करने का फैसला लिया है. उन्होंने बताया कि इस कानून को रद्द करने का मकसद शादी और तलाक के रजिस्ट्रेशन में समानता लाना है. 

Advertisement

उन्होंने बताया कि कानून रद्द करने वाले बिल को विधानसभा के मॉनसून सत्र में लाया जाएगा. सीएम सरमा ने बताया कि असम में मुस्लिम शादियों के रजिस्ट्रेशन के लिए एक नया कानून लाया जाएगा. 

मुस्लिमों की शादी और तलाक से जुड़े इस कानून को रद्द करने का फैसला असम कैबिनेट ने इसी साल फरवरी में लिया था. इस कानून को रद्द इसलिए किया गया है, क्योंकि ये बाल विवाह की इजाजत देता था. सरकार का कहना है कि ये कानून 21 साल से कम उम्र के लड़के और 18 से छोटी लड़की की शादी की इजाजत भी देता था.

क्यों रद्द किया ये कानून?

ये कानून 1935 में बना था. मुस्लिमों में होने वाले निकाह और तलाक की प्रक्रिया इसी से तय होती थी.

साल 2010 में इस कानून में संशोधन किया गया था. इसके बाद असम में निकाह और तलाक का रजिस्ट्रेशन करवाना जरूरी हो गया. इससे पहले तक ये वैकल्पिक था.

Advertisement

इस कानून की धारा 8(1) नाबालिगों के जुड़े निकाहों के रजिस्ट्रेशन की अनुमति देती थी. ये धारा कहती थी कि अगर दूल्हा और दुल्हन नाबालिग हैं तो उनके निकाह के रजिस्ट्रेशन के लिए माता-पिता या गार्जियन को आवेदन करना होगा.

यही वजह है कि इस कानून को रद्द किया गया. सीएम सरमा ने कहा था कि भले ही दूल्हा 21 साल और दुल्हन 18 साल की भी न हो, तब भी ये कानून ऐसी शादियों को रजिस्टर्ड करने की अनुमति देता था.

अब क्या होगा?

इस कानून को अब खत्म कर दिया गया है. सीएम हिमंता ने बताया कि मुस्लिमों के निकाह और तलाक के लिए एक नया कानून लाया जाएगा.

लेकिन तब तक मुस्लिमों के निकाह और तलाक का रजिस्ट्रेशन 1954 के स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत होगा. स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत मुस्लिमों की शादियां रजिस्टर होंगी. इसके लिए 30 दिन पहले नोटिस देना होगा और कई सारे दस्तावेज जमा करने होंगे.

स्पेशल मैरिज एक्ट सभी धर्मों को मानने वालों पर लागू होता है. इसके तहत शादी के लिए लड़के की उम्र 21 साल और लड़की की 18 साल से ज्यादा होनी चाहिए. 

जबकि, मुस्लिमों में शादी की कोई कानूनी उम्र तय नहीं है. मुस्लमान मानते हैं कि अगर लड़के और लड़की शादी के लायक हैं तो फौरन उनकी शादी कर देनी चाहिए. मुस्लिम कानून के मुताबिक, युवावस्था में लड़कियों की शादी करवा देनी चाहिए. युवावस्था आमतौर पर 13 से 15 साल मानी जाती है.

Advertisement

इसका असर क्या होगा?

सरकार का दावा है कि इससे बाल विवाह में कमी आएगी. सीएम हिमंता का कहना है कि 80% बाल विवाह अल्पसंख्यकों और 20% बहुसंख्यकों में होता है.

असम सरकार के मुताबिक, इस कानून के आधार पर 94 मुस्लिम रजिस्ट्रार (काजी) अब भी निकाह और तलाक करवा रहे थे. इन्हें भी निरस्त कर दिया है. सरकार इन काजियों को एकमुश्त 2 लाख रुपये का मुआवजा देगी.

हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने फरवरी में कहा था कि अब तक असम में काजी या रजिस्ट्रार के जरिए निकाह होता था और उन्हें 'निकाहनामा' सर्टिफिकेट मिलता था, लेकिन अब ये सिस्टम खत्म हो गया है. ओवैसी ने दावा किया था कि अब मुस्लिम महिलाओं को निकाह में मिलने वाली 'मेहर' को भी हटा दिया गया है. उन्होंने कहा था कि अगर निकाह स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत रजिस्टर्ड होंगे तो मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत विरासत में हक नहीं मिलेगा.

वहीं, सरकार का तर्क है कि अब तक काजी तलाक करवाते थे तो मुस्लिम महिलाओं को कुछ नहीं मिलता था. लेकिन जब अदालत के जरिए तलाक होगा तो महिलाओं को गुजारा भत्ता भी मिलेगा.

हालांकि, इस्लामिक जानकारों का मानना है कि अगर बाल विवाह ही रोकना मकसद था तो पूरे कानून को रद्द करने की जरूरत नहीं थी. सिर्फ धारा 8(1) को संशोधित कर इसे रोका जा सकता था.

Advertisement

आज हमने मुस्लिम विवाह अधिनियम को निरस्त किया और मुस्लिम विवाह पंजीकरण के लिए एक नया कानून लागू करेंगे।

बाल विवाह 80% अल्पसंख्यक समुदाय में होता है, और 20% अन्य समुदायों में। लेकिन हमारे लिए यह समस्या धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक है। जल्द ही राज्य में बाल विवाह को खत्म करने का… pic.twitter.com/lPWk0kYJXm

— Himanta Biswa Sarma (@himantabiswa) July 18, 2024

बाल विवाह और असम

असम में पिछले साल बाल विवाह के खिलाफ अभियान चलाया गया. इस दौरान चार हजार से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया गया था. असम सरकार की इस कार्रवाई को एंटी-मुस्लिम बताया गया. हालांकि, सरकार ने इन आरोपों को खारिज कर दिया.

सरकार ने उस वक्त कुछ आंकड़े भी बताए थे, जिसमें दावा किया गया कि मुस्लिम बहुल जिलों में बाल विवाह आम है. 80 फीसदी मुस्लिम आबादी वाले धुबरी जिले में 20 से 24 साल की उम्र की लगभग 51 फीसदी महिलाओं की शादी 18 साल की उम्र पार करने से पहले ही हो गई थी. ये आंकड़े NFHS-5 सर्वे से लिए गए थे.

एक और मुस्लिम बहुल जिला साउथ सलमारा बाल विवाह के मामले में दूसरे स्थान पर रहा. यहां 44.7 फीसदी लड़कियों की शादी 18 से पहले ही हो गई थी. 

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 (NFHS-5) के आंकड़े बताते हैं कि असम में 20 से 24 साल की उम्र की 32 फीसदी लड़कियां ऐसी हैं जिनकी शादी 18 साल की उम्र पार करने से पहले ही हो गई थी. ये सर्वे 2019 और 2021 में दो फेज में हुआ था. 

Advertisement

इस सर्वे में ये भी सामने आया था कि असम में 15 से 19 साल की उम्र की करीब 12 फीसदी महिलाएं ऐसी थीं, जो या तो गर्भवती थीं या फिर मां बन चुकी थीं.

बाल विवाह पर क्या है कानून?

भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया के कई देशों में बाल विवाह आज भी प्रचलित है. किसी शादी को बाल विवाह तब माना जाता है जब पति या पत्नी में से कोई एक नाबालिग हो. 

हमारे देश में शादी के लिए लड़कों की कानूनी उम्र 21 साल और लड़कियों के लिए 18 साल है. अगर कोई इस तय उम्र से कम उम्र में शादी करता है तो उसे बाल विवाह माना जाएगा.

बाल विवाह को रोकने के लिए हमारे देश में आजादी से पहले से कानून है. सबसे पहले 1929 में कानून लाया गया था. तब शादी के लिए लड़कों की कानूनी उम्र 18 साल और लड़कियों के लिए 14 साल थी.

1978 में इस कानून को संशोधित कर लड़कों की उम्र 21 साल और लड़कियों की 18 साल कर दी गई. 2006 में इसमें फिर संशोधन हुआ और इसे संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध बनाया गया. इस कानून को फिर से संशोधन करने की तैयारी चल रही है, जिसमें शादी के लिए लड़कियों की उम्र को 21 साल बढ़ाया जा सकता है.

Advertisement

2006 में बाल विवाह प्रतिषेध कानून बना था. ये बाल विवाह को अपराध बनाता है. इस कानून में प्रावधान है कि कोई भी व्यक्ति या संगठन बाल विवाह होने की जानकारी होने पर कोर्ट से उसे रुकवाने का आदेश ला सकता है. 

अगर फिर भी बाल विवाह होता है तो दोषी पाए जाने पर दो साल की कैद और एक लाख रुपये के जुर्माने की सजा हो सकती है. ऐसे मामलों में अगर शादी हो भी जाती है तो उसे अदालत 'शून्य' घोषित कर देती है.

इस कानून की धारा 9 कहती है कि अगर कोई बालिग पुरुष जिसकी उम्र 18 साल से ज्यादा है और वो बाल विवाह करता है तो दोषी पाए जाने पर उसे दो साल तक की जेल या एक लाख रुपये के जुर्माने या दोनों की सजा हो सकती है. वहीं, अगर कोई व्यक्ति बाल विवाह करवाता है तो दोषी पाए जाने पर उसे दो साल तक की जेल और एक लाख रुपये के जुर्माने की सजा होगी. इसमें माता-पिता, नाते-रिश्तेदार भी शामिल हैं.

इतना ही नहीं, अगर बाल विवाह को अदालत शून्य घोषित कर देती है तो फिर ये पुरुष की जिम्मेदारी है कि वो लड़की का भरण-पोषण करे. अगर लड़का नाबालिग है तो उसके माता-पिता या गार्जियन लड़की को गुजारा भत्ता देंगे. ये गुजारा भत्ता अदालत तय करेगी.

Advertisement

इसके अलावा अगर बाल विवाह से किसी बच्चे का जन्म होता है तो उसका भरण-पोषण भी पुरुष की ओर से किया जाएगा. पुरुष के नाबालिग होने की स्थिति में उसके माता-पिता या गार्जियन भरण-पोषण देंगे.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement