
बेंगलुरु में एक कंपनी में AI इंजीनियर अतुल सुभाष मोदी का सुसाइड केस चर्चा में बना है. अतुल सुभाष ने 9 दिसंबर को फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी. अतुल ने अपनी मौत के लिए पत्नी निकिता सिंघानिया और ससुराल वालों को जिम्मेदार ठहराया है.
मौत से पहले अतुल ने करीब डेढ़ घंटे का वीडियो पोस्ट किया था. साथ ही 24 पन्नों का सुसाइड नोट भी लिखा. इसमें अतुल ने आरोप लगाया है कि उसकी पत्नी निकिता और उसके रिश्तेदार किसी न किसी बहाने से पैसे मांगते थे. अतुल ने ये भी कहा कि निकिता और उसके रिश्तेदारों ने कई झूठे केस भी दर्ज करवा दिए थे. इतना ही नहीं, उन्होंने जौनपुर की फैमिली कोर्ट की जज रीता कौशिक पर सेटलमेंट कराने के लिए 5 लाख रुपये की रिश्वत भी मांगने का आरोप लगाया है.
अतुल और निकिता की शादी 2019 में हुई थी. लेकिन शादी के सालभर बाद से ही दोनों अलग-अलग हो गए थे. अतुल ने सुसाइड नोट में आरोप लगाया है कि उनकी पत्नी निकिता ने शुरुआत में सेटलमेंट के लिए 1 करोड़ रुपये मांगे थे. बाद में इसे बढ़ाकर 3 करोड़ रुपये कर दिया था. अतुल ने ये भी कहा कि उनकी पत्नी ने नाबालिग बेटे की ओर से केस दायर किया था और हर महीने 2 लाख रुपये का गुजारा भत्ता देने की मांग की थी.
अतुल ने अपने सुसाइड नोट में ज्यूडिशियल सिस्टम पर भी सवाल उठाए हैं. लेकिन इन सबके बीच पत्नी को दिए जाने वाले गुजारा भत्ता को लेकर सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला आया है. जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस प्रसन्ना बी वरसाले की बेंच ने ऐसे 8 फैक्टर्स तय किए हैं, जिसे ध्यान में रखकर ही गुजारा भत्ता की रकम तय की जानी चाहिए. इसे एलिमनी (Alimony) भी कहा जाता है.
क्या हैं वो 8 फैक्टर्स?
1. सामाजिक और आर्थिक स्थिति.
2. पत्नी और आश्रित बच्चों की जरूरतें.
3. पत्नी और आश्रित बच्चों की योग्यताएं और रोजगार की स्थिति.
4. आवेदक की कमाई और संपत्ति.
5. ससुराल में पत्नी किस तरह रहती थी.
6. पारिवारिक जिम्मेदारी के लिए क्या नौकरी भी छोड़ी गई थी.
7. किसी तरह का कोई रोजगार नहीं करने वाली पत्नी का मुकदमेबाजी में होने वाला खर्च.
8. पति की आर्थिक क्षमता, उसकी कमाई और गुजारा भत्ता की जिम्मेदारी.
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ये गाइडलाइंस क्यों?
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में साफ कहा कि ये 8 फैक्टर्स कोई फॉर्मूला नहीं, बल्कि 'गाइडलाइंस' हैं. तलाक के मामले में गुजारा भत्ता तय करते समय इन्हें ध्यान में रखना जरूरी है.
कोर्ट ने अपने किरण ज्योत बनाम अनीश प्रमोद पटेल मामले का हवाला देते हुए कहा कि उस फैसले में अदालत ने कहा था कि ये ध्यान रखना भी जरूरी है कि गुजारा भत्ता की रकम इतनी न हो कि पति को सजा के तौर पर लगे. लेकिन ये इतनी होनी चाहिए जिससे तलाकशुदा पत्नी बेहतर जिंदगी जी सके.
तलाक के मामले में एलिमनी का नियम क्या है?
महिलाओं, बच्चों और माता-पिता को मिलने वाले गुजारा भत्ता का प्रावधान कानून में है. सीआरपीसी की धारा 125 में इसका प्रावधान किया गया था. नए कानून भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 144 में इसका प्रावधान है.
ये धारा कहती है कि कोई भी पुरुष अलग होने की स्थिति में अपनी पत्नी, बच्चे और माता-पिता को गुजारा भत्ता देने से इनकार नहीं कर सकता. इसमें नाजायज लेकिन वैध बच्चों को भी शामिल किया गया है. धारा साफ करती है कि पत्नी, बच्चे और माता-पिता अगर अपना खर्चा नहीं उठा सकते तो पुरुष को उन्हें हर महीने गुजारा भत्ता देना होगा.
पत्नी को किन हालातों में मिलेगा गुजारा भत्ता?
ऐसी पत्नी को ही हर महीने गुजारा भत्ता मिल सकता है, जिसे उसके पति ने तलाक दे दिया है. पति से तलाक मिलने के बाद पत्नी ने दोबारा शादी नहीं की है.
इस धारा में ये भी प्रावधान किया गया है कि अगर पति किसी दूसरी महिला के साथ रहता है या उससे शादी का वादा करता है तो इस आधार पर पत्नी तलाक ले सकती है. ऐसी स्थिति में भी पति अपनी पत्नी को गुजारा भत्ता देगा.
पत्नी को कब नहीं मिलेगा गुजारात-भत्ता?
अगर कोई पत्नी बिना किसी कारण के पति से अलग रहती है या किसी और पुरुष के साथ रहती है या फिर आपसी सहमति से अलग होती है तो वो गुजारा भत्ता पाने की हकदार नहीं होगी.
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कितना गुजारा भत्ता मिलेगा?
इसकी कोई रकम तय नहीं है. गुजारा भत्ता मजिस्ट्रेट तय करेंगे. किसी तलाकशुदा महिला, बच्चे या फिर माता-पिता को हर मिलने वाले गुजारा भत्ता की रकम मजिस्ट्रेट की ओर से तय की जाएगी. इस रकम को समय-समय पर बढ़ाया भी जा सकता है. हालांकि, तलाकशुदा महिला को तब तक ही गुजारा भत्ता मिलेगा, जब तक वो दूसरी शादी नहीं कर लेती.
गुजारा भत्ता नहीं दिया तो?
अगर कोई भी व्यक्ति कोर्ट के आदेश के बावजूद बगैर किसी कारण के पत्नी, बच्चों या माता-पिता को गुजारा भत्ता नहीं देता है तो मजिस्ट्रेट उस पर जुर्माना लगा सकते हैं. मजिस्ट्रेट जुर्माने के साथ रकम चुकाने का आदेश दे सकते हैं. इसके अलावा ऐसे व्यक्ति को कम से कम एक महीने की जेल की सजा भी हो सकती है.
क्या संपत्ति में भी मिलती है हिस्सेदारी?
तलाकशुदा पत्नी का अपने पति की पैतृक संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं होता. हिंदुओं में संपत्ति के उत्तराधिकार को लेकर 1956 से हिंदू उत्तराधिकार कानून है. इस कानून के मुताबिक, पत्नी का अपने पति या ससुराल की पैतृक संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं होता.
तलाक के बाद पत्नी सिर्फ उसी संपत्ति पर अपना दावा कर सकती है, जो उसके पति की है. यानी, ऐसी संपत्ति जिसका मालिकाना हक पति के पास है.
हालांकि, तलाक के बाद बच्चे जरूर अपने पिता की संपत्ति पर दावा कर सकते हैं. अगर तलाक के बाद पति दूसरी महिला से शादी करता है और उससे भी बच्चे होते हैं तो ऐसी स्थिति में कोर्ट बराबर हिस्सों में संपत्ति का बंटवारा करती है.