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कोटा सिस्टम बस बहाना? इन 3 वजहों से बांग्लादेश में शेख हसीना के खिलाफ फूट पड़ा गुस्सा

भारत का पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश कई महीनों से हिंसा की आग में जल रहा है. प्रधानमंत्री शेख हसीना को इस्तीफा देकर देश तक छोड़ना पड़ गया है. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर बांग्लादेश में ऐसा क्या हुआ कि लोगों का गुस्सा इतना फूट गया?

बांग्लादेश के संसद परिसर में प्रदर्शनकारी. (फोटो-PTI) बांग्लादेश के संसद परिसर में प्रदर्शनकारी. (फोटो-PTI)
सम्राट शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 07 अगस्त 2024,
  • अपडेटेड 10:27 PM IST

बांग्लादेश कई महीनों से जल रहा है. वहां हिंसा की आग इतनी फैली कि प्रधानमंत्री शेख हसीना को इस्तीफा देना पड़ गया. सिर्फ इतने से ही बात नहीं बनी. हालात इतने बिगड़ चुके थे कि उन्होंने इस्तीफा देने के बाद देश तक छोड़ना पड़ा. 

लेकिन इसकी वजह क्या रही? दरअसल, बांग्लादेशियों की कमाई इतनी भी नहीं है कि अच्छी तरह से जिंदगी का गुजर-बसर हो सके. सरकारी सिस्टम में कोटा सिस्टम से ये गुस्सा और फूट गया. सरकारी नौकरियों में फ्रीडम फाइटर्स और उनके बच्चों के लिए 30% का कोटा था. इसने आग में घी डालने का काम किया, क्योंकि जनता कई साल से बेरोजगारी और कम न्यूनतम वेतन से जूझ रही थी.

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बुरुंडी और रवांडा जैसे कुछ मुल्कों को छोड़ दिया जाए, तो बांग्लादेश में कामगारों को सबसे कम वेतन मिलता है. 

इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाइजेशन (ILO) के मुताबिक, जहां 2022 में 110 देशों का औसत न्यूनतम वेतन 719 डॉलर था, वहीं बांग्लादेश में न्यूनतम वेतन केवल 45 डॉलर था.

चीन और यूरोपियन यूनियन के बाद दुनिया में कपड़ों का सबसे बड़ा सप्लायर बांग्लादेश है. बांग्लादेश की ज्यादातर गारमेंट इंडस्ट्री राजधानी ढाका और उसके आसपास ही है.

2023 की एंकर रिसर्च इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट बताती है कि 2016 में ढाका के एक परिवार की औसत कमाई 16,450 टका थी, जबकि परिवार को अपना खर्च चलाने के लिए 25,990 टका की जरूरत थी. 2023 में कमाई बढ़कर 25,462 टका (लगभग 18,200 रुपये) हो गई, लेकिन परिवार का खर्च भी बढ़कर 40,228 टका (लगभग 28,800 रुपये) हो गया. यानी कि बुनियादी जरूरतें पूरी करने के लिए जितनी कमाई चाहिए, बांग्लादेशी उससे भी 37% कम कमाते हैं. ढाका के आसपास के शहरों में भी यही हालात हैं.

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एडिडास, प्यूमा, गैप और लेवी स्ट्रॉस जैसी 16 कंपनियों ने न्यूनतम वेतन को लेकर पिछले साल 11 अक्टूबर 2023 को प्रधानमंत्री शेख हसीना को एक चिट्ठी भी लिखी थी. इसमें कंपनियों ने लिखा था कि न्यूनतम वेतन को उस स्तर पर ले जाने की जरूरत है, जो लोगों की बुनियादी जरूरतें पूरी करने के साथ-साथ महंगाई का बोझ भी संभाल सके.

पिछले साल, गारमेंट इंडस्ट्री में काम करने वाले कामगारों ने न्यूनतम वेतन 8 हजार टका (5,700 रुपये) से बढ़ाकर 23 हजार टका (16,400 रुपये) करने की मांग की थी. फेयर लेबर एसोसिएशन के अनुसार, बांग्लादेश में 2018 से न्यूनतम वेतन 8 हजार टका ही है. वर्ल्ड बैंक की परिभाषा के अनुसार, ये वेतन तीन लोगों के परिवार के गरीबी रेखा से नीचे लाकर रख देता है. 

हालांकि, इसके बावजूद सरकार ने न्यूनतम वेतन बढ़ाकर 10,400 टका (7,400 रुपये) करने का प्रस्ताव रखा था. जो कामगारों की मांग का आधा भी नहीं था. इसी कारण पिछले साल अक्टूबर-नवंबर में देशभर में विरोध प्रदर्शन भी हुए थे.

प्रदर्शनों के चलते सरकार ने दिसंबर 2023 में गारमेंट इंडस्ट्री में काम करने वाले कामगारों का न्यूनतम वेतन बढ़ाकर 12,500 टका (लगभग 8,900 रुपये) कर दिया था. रोजमर्रा के खर्चों को पूरा करने की तुलना में ये मजदूरी कुछ भी नहीं है.

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कम वेतन तो परेशानी है ही, लेकिन वहां की आम जनता आसमान छूती महंगाई से भी परेशान हैं. 2021 में महंगाई दर 5.5% थी, जो 2022 में बढ़कर 7.7% और 2023 में फिर बढ़कर 9.9% हो गई. 

नौकरियां न मिलने से ये परेशानियां और बढ़ गईं. बांग्लादेश में 2020 से बेरोजगारी दर 15% से ऊपर मंडरा रही है.

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