
बांग्लादेश और भारत के रिश्तों में तनाव बढ़ता जा रहा है. अगस्त की शुरुआत में हिंसक प्रदर्शनों के बीच तत्कालीन पीएम शेख हसीना का तख्तापलट हो गया. हालात इतने बिगड़े कि उन्हें छिपकर भारत आना पड़ा. अब वहां अंतरिम सरकार है, जो देश की स्थिति सुधारने से ज्यादा इस बात पर ध्यान दे रही है कि कैसे हसीना को वापस बुलाया जाए. इसके लिए वो भारत सरकार पर लगातार राजनयिक दबाव भी बना रही है. यहां तक कि ढाका स्थित ट्रिब्यूनल ने इंटरपोल से उनकी गिरफ्तारी में भी मदद मांग डाली. जानिए, इस बीच भारत के पास क्या रास्ते बचते हैं.
फिलहाल क्या नया हुआ
यूनुस सरकार में विदेश मंत्रालय के सलाहकार डॉ तौहीद हुसैन ने 23 दिसंबर को यह मांग रखी. राजनयिक नोट भेजते हुए उन्होंने कहा कि सरकार लीगल प्रोसेस के लिए हसीना का प्रत्यर्पण चाहती है. दरअसल मौजूदा सरकार का आरोप है कि हसीना के कार्यकाल में कई लोगों पर हिंसा हुई, यहां तक कि प्रदर्शनकारियों को भी नुकसान पहुंचाया गया. हसीना और उनके लोगों के खिलाफ 60 से ज्यादा शिकायतों में नरसंहार भी शामिल है.
कथित तौर पर इसी जांच के लिए वे हसीना और अवामी लीग के कई नेताओं की गिरफ्तारी चाहती है. वो लगातार भारत से इसकी दरख्वास्त कर रही है. हाल में भेजा गया डिप्लोमेटिक मैसेज भी इसी बारे में था. लेकिन ये पूरी तरह से औपचारिक नहीं, बल्कि नोट वर्बल था, जिसपर किसी खास अधिकारी के दस्तखत नहीं. यानी ढाका की तरफ से बचते-बचाते रास्ते निकाले जा रहे हैं.
हसीना की वापसी के लिए और कौन से तरीके अपना चुका ढाका
नरसंहार जैसे गंभीर आरोपों के बीच ढाका हसीना को हिरासत में लेने के लिए कई काम कर रहा है. वहां स्थित अंतरराष्ट्रीय अपराध ट्रिब्यूनल ने हसीना और उनके करीबियों के खिलाफ अरेस्ट वारंट जारी करते हुए इंटरपोल से इसमें मदद मांगी है. यूनुस सरकार ने इसमें संयुक्त राष्ट्र का भी दखल चाहा. इधर भारत पर वो लगातार प्रेशर बना ही रहा है. इस बात को पांच महीने हो चुके.
बढ़ते प्रेशर के बीच भारत के पास क्या रास्ते
भारत हमेशा ही पड़ोसियों से अच्छे रिश्तों की बात करता रहा. बांग्लादेश भी इसमें शामिल है. नेबर फर्स्ट की पॉलिसी के तहत भारत ने लगातार उसकी सहायता की लेकिन फिलहाल मसला अलग है. ढाका की अंतरिम सरकार के तेवर शुरुआत से ही नई दिल्ली के खिलाफ दिखे. अब वो घरेलू मामले में भारत को घसीटना चाह रहा है. अब तक देश ने इसपर कोई कड़ी टिप्पणी नहीं की, लेकिन अगर प्रत्यर्पण की बात कानूनी रूप ले ले, और आपराधिक मामलों में जांच की बात चले तो दिल्ली के पास कुछ ही विकल्प होंगे.
फिलहाल कहां हैं ढाका की पूर्व पीएम
फिलहाल उन्हें दिल्ली के बाहरी इलाके में एक सेफ हाउस में कड़ी सुरक्षा में रखा गया है. उनसे किसी को भी मिलने की इजाजत नहीं. जर्मन मीडिया डीडब्ल्यू की रिपोर्ट के अनुसार, उनकी बेटी साइमा वाजेद जो डब्ल्यूएचओ में निदेशक के पद पर काम करती हैं, वे भी उनसे मिलने में असमर्थ रहीं.
प्रत्यर्पण को लेकर कौन सा करार
दोनों देशों के बीच 2013 से प्रत्यर्पण संधि है. प्रत्यर्पण संधि के मुताबिक, दोनों देशों को एक-दूसरे के अपराधी सौंपने पड़ते हैं. इसमें प्रावधान है कि अगर किसी व्यक्ति ने ऐसा अपराध किया है जिसमें कम से कम एक साल की सजा का प्रावधान है, तो उसे प्रत्यर्पित किया जाएगा. संधि में लिखा हुआ है कि अगर किसी व्यक्ति ने राजनैतिक स्वरूप का कोई अपराध किया है तो उसके प्रत्यर्पण से इनकार भी किया जा सकता है. हालांकि हत्या, नरसंहार और अपहरण जैसे अपराधों में शामिल व्यक्ति को प्रत्यर्पित करने से इनकार नहीं किया जा सकता.
होस्ट देश कब कर सकता है मना
कोई देश प्रत्यर्पण से इनकार भी कर सकता है अगर अपराध राजनैतिक हो, या फिर आरोपी ये यकीन दिला सके कि राजनैतिक द्वेष की वजह से ऐसा किया जा रहा है, या फलां देश लौटने पर उसकी जान को खतरा हो सकता है.
संधि में एक अनुच्छेद यह भी है कि दोनों में से कोई भी पार्टियां नोटिस देकर संधि खत्म कर सकती हैं. लेकिन ये एक्सट्रीम स्टेप है, जिसे अगर कोई भी एक देश ले तो राजनयिक रिश्ते कमजोर हो सकते हैं. फिलहाल भारत इस मामले में कोई सीधी या कड़ी प्रतिक्रिया नहीं दे रहा. वैसे भी इन मामलों में काफी वक्त लगता है क्योंकि तकनीकी और कानूनी प्रोसेस धीरे-धीरे होती है.
प्रोसेस लंबी चलने का हो सकता है फायदा
हसीना खुद प्रत्यर्पण को अदालती चुनौती दे सकती हैं, अगर उन्हें लगता है कि जांच पारदर्शी नहीं होगी, या फिर इस दौरान उन्हें कोई खतरा हो सकता है. वापसी की प्रक्रिया लंबी और कानूनी जांच-पड़ताल से भरी होती है. ऐसे में जिस शख्स को दूसरा देश वापस चाहता है, अगर वो भी इसके खिलाफ केस कर दे, तो मामला और लंबा चल सकता है. इस बीच कई राजनैतिक बदलाव होते हैं, जो कि ढाका में भी होंगे. इससे यह भी हो सकता है कि हसीना खुद वहां सुरक्षित लौट सकें.
प्रत्यर्पण से मना करने पर इन देशों में दूरियां
- एनएसए के पूर्व कर्मचारी एडवर्ड स्नोडेन ने कई खुफिया दस्तावेज लीक करने के बाद रूस की शरण ले ली. रूस ने उन्हें लौटाने से मना कर दिया था, जिससे दोनों में दूरियां बढ़ीं.
- साल 1984 की भोपाल गैस त्रासदी के समय यूनियन कार्बाइड के लीड वॉरेन एंडरसन पर देश में आपराधिक मुकदमा दर्ज हुआ लेकिन यूएस ने आरोपी का प्रत्यर्पण रोक दिया था.
- तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा के भारत में शरण देने के बाद चीन से रिश्ते बिगड़ते ही चले गए.
- अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी के तख्तापलट के बाद कुछ नेताओं ने तुर्किए में शरण ली. तुर्की ने उनकी वापसी से साफ मना कर दिया.