
बिहार फिर डूब रहा है. हर साल की तरह. 16 लाख लोग बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं. कई जिलों में बाढ़ से हालात बिगड़ते जा रहे हैं. बाढ़ का प्रभाव कम करने के लिए नदियों पर जो तटबंध बनाए गए थे, वो अब धीरे-धीरे टूट रहे हैं. अब तक छह तटबंध टूट चुके हैं.
सरकार के मुताबिक, बिहार में सारी ही नदियां उफान पर हैं. 16 जिलों में बाढ़ से हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं. रेस्क्यू ऑपरेशन के लिए NDRF की 12 और SDRF की 22 टीमें तैनात हैं.
गृह मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार में गंडक, बागमती, धारधा, गंगा, बूढ़ी, कोसी, अधवार, कमला बलान, कमला, महानंदा, परमान और फुल्हर नदी में पानी खतरे के निशान से ऊपर चला गया है.
ये हाल तब है जब बिहार में सामान्य से 19% कम बारिश हुई है. हालांकि, कुछ दिनों से कई जिलों में भारी बारिश हो रही है. 29 सितंबर को ही बिहार में सामान्य से 205% ज्यादा बारिश हुई है.
बिहार उन राज्यों में है, जहां हर साल बाढ़ आती है. बिहार के 76% इलाके पर बाढ़ का खतरा बना ही रहता है. यानी, बिहार की 1.70 करोड़ एकड़ जमीन पर बाढ़ का खतरा मंडराता रहता है. ऐसा इसलिए, क्योंकि बिहार गंगा नदी के बेसिन पर बसा है. यहां कई नदियां हैं और तेज बारिश होने पर बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है.
तटबंध टूटने से और बिगड़े हालात!
बिहार में अब तक छह तटबंध टूट चुके हैं. तटबंध एक तरह से दीवार होती है जो नदियों के पानी को रोकती है. अधिकारियों ने बताया कि कोसी नदी उफान पर है और करतारपुर ब्लॉक के पास उसका तटबंध गया है, जिस कारण दरभंगा में किरतरपुर और घनश्यामपुर गांव में पानी समा गया है. जबकि, सीतामढ़ी जिले के रून्नी सैदपुर में बागमती नदी के तटबंध में टूटने की खबर है.
एक अधिकारी ने न्यूज एजेंसी को बताया कि पानी के बहाव के कारण सीतामढ़ी के मधकौल गांव में बागमती नदी का तटबंध टूट गया है. पश्चिमी चंपारण में गंडक नदी का तटबंध भी टूट गया, जिस कारण वाल्मीकि टाइगर रिजर्व में बाढ़ आ गई.
अधिकारियों का मानना है कि तटबंध टूटने से बाढ़ से हालात और बुरे हो गए हैं. बिहार के जल संसाधन मंत्री विजय कुमार चौधरी ने बताया कि कई तटबंधों को मरम्मत किया जा चुका है.
क्या तटबंध ही बन रहे बाढ़ का कारण?
बाढ़ को नियंत्रित करने के लिए मकसद से 1954 में बिहार में पहली बार तटबंध बनाया गया था. तब ज्यादातर जमींदार ही अपनी जमीन को बचाने के लिए तटबंध बना देते थे. उस समय बिहार में 160 किलोमीटर इलाके में तटबंध बने थे. लेकिन आज 13 नदियों पर कुल 3,790 किलोमीटर इलाके पर तटबंध बने हैं.
उत्तर बिहार की नदियों पर बने ज्यादातर तटबंध हर साल टूटते हैं. बाढ़ की स्थिति तब और बिगड़ जाती है जब तटबंधों में दरार आ जाती है.
2019 में आई जल संसाधन विभाग की रिपोर्ट बताती है कि 1987 से 2018 के बीच बिहार में तटबंध टूटने की 400 से ज्यादा घटनाएं सामने आई थीं. हर साल तटबंधों को बनाने और उनकी मरम्मत करने के लिए डेढ़ अरब रुपये से ज्यादा खर्च होते हैं.
2012 में आईआईटी कानपुर के दो प्रोफेसर राजीव सिन्हा और बीसी रॉय ने एक स्टडी की थी. इसमें उन्होंने बताया था कि तटबंधों के कारण नदियों के बहने का स्तर बुरी तरह प्रभावित हुआ है, जिस कारण बाढ़ का खतरा और बढ़ गया है.
हर साल क्यों डूबता है बिहार?
बिहार में हर साल ही बाढ़ आती है, खासकर उत्तरी बिहार में, जहां 19 जिले पड़ते हैं. उत्तरी बिहार की सीमा नेपाल से लगती है. बिहार में कई सारी नदियां हैं जो बाढ़ का कारण बनती हैं.
गंगा नदी उत्तराखंड में हिमालय से निकलती है और उत्तर प्रदेश में बहती हुई बक्सर जिले से बिहार में आती है. कमला और बागमती नेपाल से निकलती है. गंडक नदी तिब्बत से जबकि कोसी हिमालय से निकलती है. बिहार में 36 हजार वर्ग किलोमीटर से ज्यादा इलाके में नदियां फैली हुई हैं.
मॉनसून में जब ज्यादा बारिश होती है तो ये नदियां भर जाती हैं. अगर बिहार में कम बारिश होती भी है तो नेपाल में भारी बारिश के कारण नदियां बिहार में तबाही लाती हैं.
दशकों से है समाधान का इंतजार
लगातार बन रहे इन तटबंधों का हाल ये है कि इनसे नदी का पानी एक जगह पर रोका जाता है तो दूसरे इलाकों में घुस जाता है और तबाही नए इलाकों में होने लगती है. प्रभावित इलाकों में रहने वाले लोग साल के तीन महीने को बाढ़ वाले महीने मानकर ही चलते हैं.
कई इलाकों में तो लोगों ने आने-जाने के लिए नाव तक खरीदकर रखी है ताकि बाढ़ के दौरान जरूरी कामकाज के लिए आ जा सकें.
खरीफ के सीजन में खेती करना भी कम जोखिमभरा नहीं है इन इलाकों में. क्योंकि हर साल फसल बाढ़ में बर्बाद ही हो जाती है. हर साल सबकुछ गंवाने वाले लोगों को बाढ़ की इस समस्या के स्थायी समाधान का इंतजार दशकों से है.
इस आपदा का हल क्या है?
बिहार में हर साल आने वाली बाढ़ से निजात कैसे मिले? जनता और सरकार सबको यही जवाब चाहिए? क्या लगातार तटबंधों और बांधों के बनने से इसका हल हुआ है? नहीं, एक्सपर्ट इससे इत्तेफाक नहीं रखते.
जल संसाधन पर नजर रखने वाले एक्सपर्ट मानते हैं कि नेपाल से सटे होने और नदियों की तलहट्टी में बसे होने के कारण यहां की भौगोलिक स्थिति में बाढ़ को टाला नहीं जा सकता. बल्कि बेहतर प्रबंधन से लोगों को हो रहे नुकसान में कमी जरूर लाई जा सकती है. छोटे-छोटे नहर बनाकर कम प्रभाव वाले इलाकों में पानी को डायवर्ट किया जा सकता है.
इसके अलावा बड़े जलाशयों का निर्माण कर पानी को संरक्षित किया जा सकता है. इससे जहां ज्यादा इलाकों में सिंचाई की जरूरत पूरी की जा सकती है वहीं सूखे वाले इलाकों में पानी मुहैया कराया जा सकता है. साथ ही पीने के पानी के बढ़ते संकट को भी कम किया जा सकता है.