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नौ टर्न नीतीश के... खेमा बदल पॉलिटिक्स के असली खिलाड़ी सुशासन बाबू ही!

Bihar Nitish Kumar News: बिहार में एक बार फिर बड़ा उलटफेर हो गया है. नीतीश कुमार ने फिर यूटर्न मार लिया है.नीतीश कुमार ने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया है और इसी के साथ राज्य में 17 महीने पुरानी महागठबंधन की सरकार गिर गई है. नीतीश अब बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बना सकते हैं.

नीतीश कुमार. नीतीश कुमार.
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 28 जनवरी 2024,
  • अपडेटेड 1:58 PM IST

Bihar Nitish Kumar News: कड़ाके की सर्दी के बीच बिहार में सियासी पारा चढ़ा हुआ है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पद से इस्तीफा दे दिया है. आरजेडी का साथ छोड़कर अब वो दोबारा बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बना सकते हैं.

नीतीश कुमार आज ही मुख्यमंत्री पद की शपथ भी ले सकते हैं. नई सरकार में सुशील मोदी को डिप्टी सीएम बनाया जा सकता है.

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मुख्यमंत्री रहते नीतीश कुमार का ये चौथा यूटर्न होगा. अगस्त 2022 में उन्होंने बीजेपी का साथ छोड़ा था. और दो साल से भी कम वक्त में वो दोबारा एनडीए से जुड़ गए हैं.

नीतीश कुमार नौवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे. नीतीश कुमार न सिर्फ सबसे लंबे समय से बिहार के मुख्यमंत्री हैं, बल्कि अब तक सबसे ज्यादा बार मुख्यमंत्री पद की शपथ भी उन्होंने ही ली है. लेकिन एक वक्त ऐसा भी था, जब नीतीश राजनीति से संन्यास लेना चाहते थे.

'कुछ तो करना होगा'

1 मार्च 1951 को बिहार के बख्तियारपुर जिले में जन्मे नीतीश कुमार ने एनआईटी पटना से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है. पढ़ाई पूरी होने के बाद ही उन्होंने शादी कर ली. इसके बाद उन्होंने राजनीति में जाने का फैसला लिया.

1974 से 1977 तक नीतीश कुमार जयप्रकाश नारायण के आंदोलन से भी जुड़े रहे. इसके बाद वो जनता पार्टी में शामिल हो गए. 

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1977 में जब बिहार में विधानसभा चुनाव हुए, तो हरनौत सीट से नीतीश कुमार भी खड़े हुए. इस चुनाव में जनता पार्टी ने 214 सीटें जीतीं और 97 पर हार गई. इन हारी हुई 97 सीटों में से एक हरनौत भी थी, जहां से नीतीश कुमार उम्मीदवार थे. 

नीतीश कुमार को पहले चुनाव में कांग्रेस के भोला प्रसाद सिंह से हार मिली थी. नीतीश पहली हार भुलाकर 1980 में दोबारा हरनौत से खड़े हुए. लेकिन इस बार जनता पार्टी (सेक्युलर) की टिकट पर. इसमें भी उन्हें हार मिली. इस बार उन्हें निर्दलीय उम्मीदवार अरुण कुमार सिंह ने हराया, जिन्हें भोला प्रसाद सिंह का समर्थन हासिल था.

इस हार के बाद नीतीश इतना टूट गए कि उन्होंने राजनीति छोड़ने का मूड बना लिया था. एक कारण ये भी था कि यूनिवर्सिटी छोड़े 7 साल हो गए थे और शादी हुए भी काफी वक्त हो गया था. लेकिन उनके पास तब तक कमाई का कोई जरिया नहीं था.

पत्रकार संतोष सिंह की किताब 'रूल्ड और मिसरूल्ड' में इस किस्से का जिक्र है. लगातार दो हार के बाद नीतीश ने अपने करीबी दोस्त मुन्ना सरकार से कहा, 'ऐसे कैसे होगा? लगता है कोई बिजनेस करना होगा.'

हालांकि, उन्होंने बिजनेस शुरू नहीं किया और फिर चुनावी राजनीति में जाने की ठानी. किताब के मुताबिक, नीतीश ने तब अपनी पत्नी मंजू से 1985 के चुनाव में आखिरी मौका मांगा. उनकी पत्नी मंजू उस समय सरकारी स्कूल में टीचर थीं.

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1985 का चुनाव नीतीश के लिए एक तरह से आखिरी मौका था. उन्होंने और उनके दोस्तों ने उन्हें जिताने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी. चंदा जुटाया गया. पत्नी मंजू ने भी अपनी बचत से 20 हजार रुपये दिए. इस चुनाव में नीतीश लोकदल की टिकट पर हरनौत से फिर उतरे. इस बार नीतीश जीत गए. 21 हजार से ज्यादा वोटों के अंतर से उन्होंने कांग्रेस के बृजनंदन प्रसाद सिंह को हरा दिया. 

पहले विधानसभा, फिर लोकसभा पहुंचे

1985 में नीतीश कुमार विधानसभा पहुंचे. लेकिन उनका अगला पड़ाव लोकसभा था. 1989 के लोकसभा चुनाव में नीतीश बाढ़ सीट से जीतकर संसद पहुंचे. 

इसके बाद 1991 में दूसरी बार फिर इसी सीट से लोकसभा चुनाव जीता. तीसरी बार 1996, चौथी बार 1998 और पांचवीं बार 1999 में लोकसभा चुनाव जीते. 

नीतीश ने अपना आखिरी लोकसभा चुनाव 2004 में लड़ा. इस चुनाव में नीतीश नालंदा और बाढ़, दोनों सीट से खड़े हुए थे. हालांकि, वो बाढ़ से हार गए और नालंदा से जीत गए. ये नीतीश का आखिरी चुनाव भी था. इसके बाद से नीतीश ने कोई चुनाव नहीं लड़ा.

कोई चुनाव नहीं लड़ा, लेकिन सीएम हमेशा बने

साल 2000 में जब बिहार में विधानसभा चुनाव हुए, तब किसी एक पार्टी को बहुमत नहीं मिला. उस वक्त नीतीश कुमार केंद्र की अटल सरकार में कृषि मंत्री थे. चुनाव के बाद बीजेपी के समर्थन से नीतीश ने 3 मार्च 2000 को पहली बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. हालांकि, बहुमत नहीं होने के चलते सात दिन में उन्हें इस्तीफा देना पड़ा. 

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नवंबर 2005 में नीतीश दूसरी बार मुख्यमंत्री बने. तब बीजेपी-जेडीयू गठबंधन के पास बहुमत था. अगले साल नीतीश विधान परिषद के सदस्य बने. 

मई 2014 से फरवरी 2015 के बीच का समय छोड़ दिया जाए तो नवंबर 2005 से अब तक नीतीश कुमार लगातार बिहार के मुख्यमंत्री रहे हैं. मई 2014 से फरवरी 2015 तक जीतन राम मांझी सीएम रहे थे.

नीतीश कुमार ने अपना आखिरी विधानसभा चुनाव 1995 और लोकसभा चुनाव 2004 में लड़ा था. उसके बाद से उन्होंने कोई चुनाव नहीं लड़ा है. 2006 से नीतीश विधान परिषद के सदस्य हैं. 2018 में वो तीसरी बार विधान परिषद के सदस्य बने थे. 

2015 के विधानसभा चुनाव के वक्त जब उनसे चुनाव न लड़ने को लेकर सवाल किया गया था, तब उन्होंने जवाब दिया था कि वो किसी एक सीट पर अपना ध्यान नहीं लगाना चाहते.

मुख्यमंत्री रहते हुए नीतीश कुमार के यूटर्न

- पहली बारः 2013 में जब बीजेपी ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनाया, तो इससे नाराज होकर नीतीश ने एनडीए से गठबंधन तोड़ दिया. उन्होंने आरजेडी के साथ मिलकर सरकार बनाई. 2014 के लोकसभा चुनाव में जेडीयू की हार के बाद नीतीश ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा भी दे दिया था.

- दूसरी बारः 2015 का चुनाव नीतीश ने आरजेडी के साथ मिलकर लड़ा और महागठबंधन की सरकार बनी. लेकिन 2017 में तेजस्वी यादव पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे. नीतीश ने 26 जुलाई 2017 को सीएम पद से इस्तीफा दे दिया और गठबंधन भी तोड़ दिया. उसके बाद उन्होंने फिर एनडीए के साथ मिलकर सरकार बनाई.

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- तीसरी बारः 2022 में नीतीश कुमार की बीजेपी से फिर अनबन शुरू हो गई. ये अनबन इतनी बढ़ गई कि 9 अगस्त 2022 को उन्होंने बीजेपी का साथ छोड़ दिया. उन्होंने इसे अंतर्आत्मा की आवाज बताया. बाद में उन्होंने आरजेडी और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई.

चौथी बारः जनवरी 2024 में नीतीश कुमार की आरजेडी से तनातनी शुरू हो गई थी. आखिरकार नीतीश कुमार महागठबंधन से अलग हो गए. नीतीश कुमार का कहना है कि उन्होंने अपने लोगों की राय सुनी. अब वो बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बना सकते हैं.

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