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बिधूड़ी-दानिश विवाद की जांच करेगी 15 सदस्यों की कमेटी, पढ़ें- संसद में गालियों के मामले में हो सकती है क्या सजा

संसद के विशेष सत्र के आखिरी दिन बीजेपी सांसद रमेश बिधूड़ी और बसपा सांसद दानिश अली के बीच विवाद हुआ था. इस मामले की जांच अब विशेषाधिकार समिति करेगी. रमेश बिधूड़ी ने दानिश अली के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणियां की थीं. ये विशेषाधिकार समिति क्या होती है? काम कैसे करती है? जानते हैं...

रमेश बिधूड़ी और दानिश अली मामले की जांच विशेषाधिकार समिति करेगी. रमेश बिधूड़ी और दानिश अली मामले की जांच विशेषाधिकार समिति करेगी.
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 29 सितंबर 2023,
  • अपडेटेड 8:15 PM IST

Ramesh Bidhuri V/s Danish Ali: बीजेपी सांसद रमेश बिधूड़ी और बसपा सांसद दानिश अली के मामले की जांच अब संसद की विशेषाधिकार समिति करेगी. लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने इस मामले को विशेषाधिकार समिति के पास भेज दिया है.

संसद के विशेष सत्र के आखिरी दिन रमेश बिधूड़ी ने दानिश अली को 'अपशब्द' कहे थे. बहस के दौरान उन्होंने 'आपत्तिजनक भाषा' का इस्तेमाल भी किया था.

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दानिश अली ने स्पीकर ओम बिरला को चिट्ठी लिखी थी. उन्होंने बिधूड़ी के मामले को विशेषाधिकार समिति के पास भेजने की मांग की थी. अपनी चिट्ठी में दानिश अली ने लिखा था, 'इस मामले को विशेषाधिकार समिति के पास भेजा जाए. किसी भी सदस्य को अनुशासित करने का यही तरीका है, ताकि हमारे देश का माहौल और खराब न हों.'

अब चूंकि इस मामले को विशेषाधिकार समिति के पास भेज दिया है, तो जानते हैं कि ये समिति क्या करेगी? और ऐसे मामलों में पहले विशेषाधिकार समिति ने पहले क्या एक्शन लिया है?

विशेषाधिकार समिति क्या करेगी?

22 सितंबर को चंद्रयान-3 की सफलता पर लोकसभा में चर्चा हो रही थी. तभी रमेश बिधूड़ी ने दानिश अली के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी की थी.

दानिश अली समेत कई विपक्षी सांसदों ने बिधूड़ी के खिलाफ कार्रवाई की मांग की थी. वहीं, निशिकांत दुबे के साथ कई बीजेपी सांसदों ने दावा किया था कि दानिश अली ने प्रधानमंत्री के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी कर बिधूड़ी को उकसाया था.

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निशिकांत दुबे ने मांग की थी कि बिधूड़ी के साथ-साथ दानिश अली के बर्ताव पर भी गौर किया जाना चाहिए. विशेषाधिकार समिति इस घटना से जुड़ी सभी शिकायतों की जांच करेगी.

विशेषाधिकार समिति क्या है?

ये एक संसदीय समिति है. लोकसभा और राज्यसभा की अलग-अलग विशेषाधिकार समिति होती है. लोकसभा की समिति में 15 सदस्य होते हैं. इसका काम सदन या उसकी किसी समिति के सदस्यों के विशेषाधिकार के उल्लंघन से जुड़े हर पहलु की जांच करना है.

विशेषाधिकार समिति किसी मामले की जांच तभी करती है, जब अध्यक्ष उसे भेजता है. समिति जांच करती है कि मामले में विशेषाधिकार का उल्लंघन हुआ है या नहीं. और अपनी रिपोर्ट में कुछ सिफारिश करती है.

सदन का कोई भी सदस्य लोकसभा अध्यक्ष की सहमति से किसी दूसरे सदस्य या परिषद या उसकी किसी समिति के विशेषाधिकार के उल्लंघन से जुड़ा प्रश्न उठा सकता है.

विशेषाधिकार समिति में कौन-कौन है?

लोकसभा की विशेषाधिकार समिति में 15 सदस्य होते हैं. 8 सदस्य बीजेपी के हैं. बीजेडी, वाईएसआरसीपी, शिवसेना, कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और डीएमके के एक-एक सदस्य इसमें शामिल हैं.

बीजेपी सांसद सुनील कुमार सिंह इसके अध्यक्ष हैं. उनके अलावा बीजेपी से गणेश सिंह, जनार्दन सिंह सिगरीवाल, राजीव प्रताप रूडी, नरनभाई भीखाभाई कछाड़िया, चंद्र प्रकाश जोशी, दिलीप घोष और राजूब बिस्ता हैं.

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वहीं, बीजेडी से अच्युतानंद समांता, वाईएसआरसीपी से तलारी रंगैया, शिवसेना से ओमप्रकाश भूपलसिंह उर्फ पवन, कांग्रेस से सुरेश कोडीकुन्नील, तृणमूल कांग्रेस से कल्याण बनर्जी और डीएमके से टी. राजूथेवर बालू हैं.

ये समिति काम कैसे करती है?

विशेषाधिकार समिति के सामने जो भी मामला सामने आता है, उसके सभी पहलुओं की जांच करती है और फिर उचित सिफारिश करती है.

जांच के दौरान समिति जरूरत पड़ने पर दोनों पक्षों को बुला सकती है. और रिकॉर्ड की समीक्षा भी कर सकती है. हालांकि, समिति को अपनी रिपोर्ट सौंपने के लिए कोई समयसीमा तय नहीं है.

पहले क्या कार्रवाइयां हुई हैं?

किसी मामले में क्या कार्रवाई हो सकती है? विशेषाधिकार समिति बस इसकी सिफारिश कर सकती है. सजा पर फैसला सदन ही करता है. 

समिति की सिफारिश पर सदन दोषी सांसद को या तो निलंबित कर सकता है या निष्कासित कर सकता है. हालांकि, अब तक ज्यादातर मामलों में सिफारिशें खारिज हुईं हैं. कुछ ही ऐसे मामले हैं जब दंडात्मक कार्रवाई हुई है.

दिसंबर 2005 में 11 दागी सांसदों को सदन से निष्कासित कर दिया गया था. ये सांसद एक स्टिंग में 'कैश फॉर क्वेरी' घोटाले में पकड़े गए थे.

सबसे उल्लेखनीय उदाहरण 1978 का है, जब इंदिरा गांधी को चिकमंगलूर से लोकसभा चुनाव जीतने के बाद सदन से निष्कासित कर दिया गया था. इमरजेंसी के दौरान दुर्व्यवहारों की जांच के लिए बने जस्टिस शाह आयोग की सिफारिश के आधार पर तत्कालीन गृहमंत्री चरण सिंह ने इंदिरा गांधी के खिलाफ विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव पेश किया था.

इनपुटः बिजय कुमार

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