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48 लाख करोड़ के बजट में 16 लाख करोड़ से ज्यादा कर्ज लेगी केंद्र सरकार, जानें- कहां-कहां से मिलता है उधार

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 23 जुलाई 48 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का बजट पेश पेश किया. ये भी बताया है कि इस 48 लाख करोड़ में से 16 लाख करोड़ से ज्यादा की रकम उधार लेकर खर्च की जाएगी. ऐसे में जानते हैं कि सरकार को कहां-कहां से कर्ज मिलता है?

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण. (फाइल फोटो-PTI) वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण. (फाइल फोटो-PTI)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 24 जुलाई 2024,
  • अपडेटेड 10:12 AM IST

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मंगलवार को 2024-25 का बजट पेश कर दिया. ये मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल का पहला बजट था. 

बजट में सरकार बताती है कि वो कहां से कितना कमाएगी और कहां खर्च करेगी? निर्मला सीतारमण ने बताया है कि 2024-25 में सरकार 48.20 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च करेगी. ये सिर्फ बजट अनुमान है. आमतौर पर जितना अनुमान होता है, उससे ज्यादा ही खर्च हो जाता है.

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सरकार का अनुमान है कि एक साल में वो जो 48.20 लाख करोड़ रुपये खर्च करेगी, उसके लिए 31.29 लाख करोड़ तो टैक्स से आ जाएंगे. लेकिन बाकी का खर्च चलाने के लिए सरकार उधार लेगी. 2024-25 में सरकार 16.13 लाख करोड़ रुपये उधार लेगी. सरकार के खर्च का एक बड़ा हिस्सा उधारी पर लगे ब्याज को चुकाने में ही चला जाता है.

कहां से कमाएगी, कहां खर्च करेगी सरकार?

- कहां से कमाएगी?: अगर सरकार 1 रुपया कमाएगी तो उसमें 27 पैसा उधारी का होगा. इसके बाद 19 पैसा इनकम टैक्स से, 18 पैसा जीएसटी से और 17 पैसा कॉर्पोरेशन टैक्स से मिलेगा. इसके अलावा 9 पैसा नॉन-टैक्स रेवेन्यू से, 5 पैसा एक्साइज ड्यूटी से, 4 पैसा कस्टम ड्यूटी से और 1 पैसा नॉन-डेट रिसीट से कमाएगी.

- कहां खर्च करेगी?: सरकार के 1 रुपये के खर्च में 19 पैसा ब्याज चुकाने में चला जाएगा. 21 पैसा राज्यों को टैक्स और ड्यूटी में हिस्सा देने में खर्च हो जाएगा. इसके अलावा 16 पैसा केंद्र और 8 पैसा केंद्रीय प्रायोजित योजनाओं में खर्च होगा. 8 पैसा रक्षा, 6 पैसा सब्सिडी और 4 पैसा पेंशन पर खर्च होगा. बाकी का 18 पैसा दूसरे तरह के खर्चों में लगेगा.

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(Photo-PTI)

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पर सरकार को कहां से उधार मिलता है?

ऐसे में सवाल उठता है सरकार तो सरकार है, उसे उधार लेने की क्या जरूरत? और अगर उधार ले भी रही है तो कहां से? इसका जवाब है कि सरकार के पास उधार लेने के दर्जनों रास्ते हैं.

एक होता है देसी कर्ज, जिसे इंटरनल डेट भी कहा जाता है. इसमें सरकार बीमा कंपनियों, कॉर्पोरेट कंपनियों, आरबीआई और दूसरे बैंकों से कर्ज लेती है. दूसरा होता पब्लिक डेट यानी सार्वजनिक कर्ज, जिसमें ट्रेजरी बिल, गोल्ड बॉन्ड और स्मॉल सेविंग स्कीम होती हैं.

सरकार आईएमएफ, वर्ल्ड बैंक और दूसरे अंतर्राष्ट्रीय बैंकों से भी कर्ज लेती है, जिसे विदेशी कर्ज या एक्सटर्नल डेट कहा जाता है. इसके अलावा जरूरत पड़ने पर सरकार सोना गिरवी रखकर भी कर्ज ले सकती है. जैसे 1990 में सरकार ने सोना गिरवी रखकर उधार लिया था.

कितना कर्ज है सरकार पर?

वित्त मंत्रालय के मुताबिक, 31 मार्च 2024 तक केंद्र सरकार पर 168.72 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्ज था. इसमें से 163.35 लाख करोड़ इंटरनल डेट थी. जबकि, 5.37 लाख करोड़ रुपये का कर्ज बाहर से लिया गया था.

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इसी साल मई में X पर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बताया था कि 2022 तक भारत पर जीडीपी का 81% कर्ज था. जबकि, जापान पर 260%, इटली पर 140.5%, अमेरिका पर 121.3%, फ्रांस पर 111.8% और यूके पर 101.9% कर्ज था. 

उन्होंने बताया था कि लोअर-मिडिल इनकम देशों की तुलना की जाए, तो भारत की स्थिति कहीं ज्यादा बेहतर है. वित्त मंत्री ने बताया था कि भारत के बाहरी कर्ज में शॉर्ट-टर्म डेट की हिस्सेदारी 18.7% है, जो चीन, थाईलैंड, तुर्किए, वियतनाम, साउथ अफ्रीका और बांग्लादेश से कहीं कम है.

भारत पर इस वक्त जीडीपी का 81% कर्ज है. इसमें केंद्र सरकार और राज्य सरकारों का कर्ज शामिल है. हालांकि, कोरोना महामारी के वक्त 2020-21 में ये कर्ज बढ़कर 89% तक पहुंच गया था.

पर इससे क्या फर्क पड़ता है?

जब आमदनी कम होती है तो खर्चे पूरा करने के लिए कर्ज लेना पड़ता है. सरकार भी यही करती है. और सिर्फ हमारे देश की नहीं, बल्कि पूरी दुनिया की सरकारें ही कर्ज लेती हैं.

कोरोना महामारी के बाद सरकार को कर्ज और भी लेना पड़ गया. मनमोहन सरकार में 27 से 29 पैसा कर्ज या उधारी से आता था. मोदी सरकार में ये कम होकर 20 पैसा हो गया था. लेकिन कोरोना के दौर में कर्ज बढ़ गया. 2021-22 में सरकार की 1 रुपये की कमाई में 36 पैसा उधार का था. हालांकि, अब लगातार ये घट रहा है.

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रही बात कि कर्ज लेने से क्या फर्क पड़ता है तो इसका जवाब है कि इससे सरकार का राजकोषीय घाटा यानी फिस्कल डेफिसिट बढ़ता है. वित्त वर्ष 2022-23 में राजकोषीय घाटा जीडीपी का 6.4% था. 2024-25 में ये घाटा 4.9% रहने की उम्मीद है. सरकार ने 2025-26 तक राजकोषीय घाटा जीडीपी के 4.5% से नीचे लाने का टारगेट रखा है.

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क्या है इसका समाधान?

सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि दुनियाभर की सरकारें देश चलाने के लिए कर्ज लेती हैं. हालांकि, अमेरिका और चीन जैसे विकसित देश अपने ही रिजर्व बैंक से कर्ज लेते हैं. जबकि, भारत अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं और कॉर्पोरेट कंपनियों से ज्यादा कर्ज लेता है. ऐसी स्थिति में उसके लिए कर्ज चुका पाना थोड़ा मुश्किल हो सकता है.

आरबीआई के गवर्नर रह चुके डी. सुब्बाराव ने एक लेख में लिखा था कि 'चाहे कंपनी हो या सरकार, किसी कर्ज का भुगतान भविष्य में राजस्व पैदा करके खुद करना चाहिए.' 

दो साल पहले आई आरबीआई ने अपनी रिपोर्ट में श्रीलंका का उदाहरण देते हुए सुझाव दिया था कि सरकारों को अपने कर्ज में कर्ज में स्थिरता लाने की जरूरत है. आरबीआई का सुझाव है कि सरकारों को गैर-जरूरी जगहों पर पैसा खर्च करने से बचना चाहिए और अपने कर्ज में स्थिरता लानी चाहिए.

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आरबीआई का ये भी सुझाव है कि सरकारों को कैपिटल एक्सपेंडिचर यानी इन्फ्रास्ट्रक्चर पर ज्यादा से ज्यादा खर्च करना चाहिए, ताकि आने वाले समय में इससे कमाई हो सके. 2024-25 में सरकार इन्फ्रास्ट्रक्चर पर 11.11 लाख करोड़ रुपये खर्च करने जा रही है.

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