
डोनाल्ड ट्रंप अगले महीने वाइट हाउस में दूसरा कार्यकाल शुरू करेंगे. इस दौरान कई मुद्दे उनकी प्राथमिकता हैं. इनमें एक मसला वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन से हाथ खींचना भी हो सकता है. ट्रंप अपने पहले टर्म में भी इस संस्था के घोर आलोचक रहे. वे आरोप लगाते रहे कि WHO चीन की सुनता है, और उसकी गलतियों पर परदा डालता है. लेकिन ट्रंप अगर इस संस्था से दूरी बना लें तो इसका असर पूरी दुनिया पर होगा.
पहले टर्म में भी हुए थे नाराज
ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में भी वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन से दूरी बनाने की कोशिश की थी. उनका आरोप था कि चीन की वजह से कोविड पूरी दुनिया में फैला, और संस्था ने इसे जानते हुए भी न तो कोई सावधानी बरती, न ही चीन का नाम लिया. चीन को लेकर वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन का कथित झुकाव तब दुनिया के कई देशों को खटका था. खासकर ट्रंप ने तब कोविड को चाइनीज वायरस तक कह दिया था. उन्होंने कई बार दावा किया कि WHO ने समय पर कार्रवाई नहीं की और चीन की पारदर्शिता की कमी को नजरअंदाज कर दिया, जिससे नुकसान हुआ. वैसे कोविड में चीन के हाथ का कोई पक्का सबूत नहीं मिल सका, लेकिन ट्रंप की नाराजगी बनी रही.
अस्थाई दूरी बना ली थी
उन्होंने संस्था पर यह गुस्सा दिखाना भी शुरू किया. अप्रैल 2020 में WHO को दी जाने वाली अमेरिकी फंडिंग अस्थाई तौर पर रोक दी गई. साथ ही उसकी जांच के भी आदेश दिए गए. ट्रंप का कहना था कि ऑर्गेनाइजेशन में स्ट्रक्चरल सुधार की जरूरत है. अगले चार महीनों में वाइट हाउस ने औपचारिक रूप से WHO से अमेरिका को हटाने का एलान कर दिया. ये उसी साल की बात है, जब कोविड महामारी का पहला दौर था.
इस फैसले पर काफी झूमाझटकी भी हुई. देश डरने लगे कि इससे उनके लोगों पर खतरा और बढ़ जाएगा. बता दें कि अमेरिका इस संस्थान का सबसे बड़ा फंडर है. ऐसे में उसका पीछे हटना यानी पैरों के नीचे से जमीन खिसक जाना. ट्रंप को गैर-जिम्मेदार तक कह दिया गया, लेकिन वे अपनी बात पर बने रहे.
अगला कार्यकाल जो बाइडेन का था. उन्होंने आते ही ट्रंप के फैसले को पलटते हुए अमेरिका को WHO में फिर से शामिल कर लिया. अब ट्रंप लौटने वाले हैं, और कयास लग रहे हैं कि वे दोबारा इस संस्थान पर बरसेंगे.
क्या है ये संस्थान, और क्यों होता रहा विवाद
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन यूनाइटेड नेशन्स का ही हिस्सा है, जो सेहत और उससे जुड़े शोध देखता है. साल 1948 में जेनेवा में इसकी नींव रखी गई. इसका एक बड़ा काम हेल्थ इमरजेंसी को डील करना भी है, जैसा इसने कोविड के दौरान किया था. इसमें वो गाइडलाइन जारी करता और देशों से कोऑर्डिनेट भी करता है. जरूरतमंद देशों तक स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंचाना भी इसका काम है. फिलहाल यह 194 देशों के साथ काम कर रहा है.
स्मॉल पॉक्स और पोलियो को लगभग खत्म करना जैसी बड़ी उपलब्धियां इसके खाते में हैं. हालांकि इसके साथ विवाद भी रहे. अफ्रीकी देश अक्सर ही इसपर भेदभाव का आरोप लगाते रहे. उनका कहना है कि संस्था उन्हें विकसित देशों से अलग ट्रीट करती है इसलिए उनके यहां बेसिक सुविधाएं भी नहीं पहुंचा पाती. पारदर्शिता और ग्लोबल नीति को लेकर भी वो घिरता रहा. बहुत से देशों का आरोप है कि वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन चीन और अमेरिका की सुनता है.
क्या ट्रंप ने WHO को लेकर कोई नया बयान दिया है
फिलहाल उन्होंने ऐसी कोई बात नहीं कही, लेकिन उनके पुराने तौर-तरीकों से अनुमान लगाया जा रहा है. साथ ही उन्होंने रॉबर्ट एफ कैनेडी जूनियर को पब्लिक हेल्थ की बड़ी जिम्मेदारी दी है. कैनेडी खुद वैक्सीन विरोधी गुट से हैं. अगर वे सेंटर्स फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन और एफडीए को संभालेंगे तो बहुत मुमकिन है कि आज नहीं तो कल, वे हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन को भी घेरेंगे.
क्या होगा अगर अमेरिका WHO से दूर हो जाए
- कोविड के बाद लगातार आशंका बनी हुई है कि दुनिया फिर किसी महामारी की चपेट में आ सकती है. ऐसे में वॉशिंगटन का साथ बहुत जरूरी है. कुल फंडिंग का बड़ा हिस्सा यहीं से आता है. इसके अलावा बहुत से निजी बड़े फंडर भी यहीं से हैं.
- ट्रंप के पीछे हटने का असर उन देशों पर भी होगा, जो अमेरिका के रास्ते पर चलते हैं. दुनिया अभी युद्ध को लेकर डरी हुई है. कई देश अपना डिफेंस बजट बढ़ाने के फेर में है. इसमें अमेरिकी हवाले से वे भी वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन की फंडिंग रोक सकते हैं.
- एक खतरा और भी है. अमेरिका की खाली जगह चीन ले सकता है. अगर ऐसा हुआ तो वो इसकी नीतियों पर भी अपने मुताबिक हेरफेर कर सकता है, जो दुनिया के ज्यादा बड़ा डर होगा.
क्या इसके लिए एग्जीक्यूटिव ऑर्डर पर साइन हो सकता है
तकनीकी तौर पर ये संभव है. ट्रंप राष्ट्रपति के रूप में कार्यकाल के पहले दिन ही एग्जीक्यूटिव ऑर्डर को मंजूरी दे सकते हैं, जिससे WHO के साथ अमेरिकी संबंध सीमित हो जाएं. लेकिन कांग्रेस की रजामंदी के बिना इसमें दिक्कत आ सकती है. वॉशिंगटन एक बड़ी राशि इस संस्थान को देता है. इसे रोकने के लिए कांग्रेस की हामी भी चाहिए ताकि ये पैसे कहीं और लगाए जा सकें.
यूएस पहले भी कई UN संस्थाओं की फंडिंग रोक चुका
- साल 2011 में फिलिस्तीन को सदस्यता देने पर देश ने यूनेस्को की फंडिंग रोक दी थी. ट्रंप ने 2018 में इससे पूरी तरह हटने का एलान कर दिया.
- इसी साल ट्रंप ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद को पक्षपात करने वाला बताते हुए इससे हटने का फैसला किया.
- साल 2018 में ही फिलिस्तीनी शरणार्थियों पर काम करने वाली यूएन संस्था UNRWA से भी अमेरिका ने खुद को अलग कर लिया.
- आते ही पेरिस समझौते से यूएस को हटाते हुए ट्रंप ने पर्यावरणीय प्रोजेक्ट्स के लिए UN की फंडिंग को कम कर दिया था.