
सीएम अरविंद केजरीवाल फिलहाल तिहाड़ की जेल नंबर दो में रखे गए हैं. आने वाले दो सप्ताह तक वे यहीं रहेंगे, जिसके बाद कोर्ट तय करेगी कि आगे क्या करना है. इस दौरान केजरीवाल को कई सुविधाएं मिल रही हैं, जैसे उन्हें तीन किताबें मिली हैं. सेल के बाहर सुरक्षाकर्मियों के साथ क्विक एक्शन टीम तैनात है. एक डॉक्टर लगातार उनकी सेहत देख रहा है क्योंकि वे डायबिटिक हैं. उन्हें शुगरफ्री चाय और बिस्किट मिल रहे हैं. आम कैदियों को ये सुविधा नहीं मिलती.
क्या कहता है जेल का नियम
प्रिजन एक्ट 1894 कहता है कि जेल के अधिकारी किसी भी तरह से कैदियों के साथ बिजनेस नहीं कर सकते, न ही किसी तरीके से लेनदेन के जरिए कैदी को सीधी या इनडायरेक्ट सुविधा दे सकते हैं. कैदियों के बाहर चलते बिजनेस में भी कोई हिस्सेदारी जेल के लोग नहीं कर सकते. ये नियम इसलिए बना ताकि सभी कैदियों को समान ट्रीटमेंट मिल सके, न कि स्टेटस देखकर या किसी फायदे के लिए जेल अधिकारी किसी एक कैदी को खास मानने लगें.
सत्तर के दशक से सुनाई देने लगे मामले
जेल प्रशासन का कहना है कि वो सभी कैदियों या आरोपियों को एक जैसा ट्रीटमेंट देता है, VIP इससे अलग नहीं. हालांकि हाई प्रोफाइल लोगों को घर या होटल जैसी सुविधाएं मिलने की भी खबरें आती रहती हैं.
सबसे पहले ऐसी घटना सत्तर के आखिर में सुनाई दी, जब कांग्रेस लीडर संजय गांधी को एक फिल्म के ओरिजिनल प्रिंट जलाने के मामले में जेल हुई. मामला तीसहजारी कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा, जहां उन्हें एक महीने के लिए तिहाड़ भेजा गया था. इसके बाद से लगातार ऐसे मामले सुनाई देते रहे, जब खास लोगों को कैद के दौरान भी शानदार सुविधाएं मिलीं.
सुब्रत रॉय ने रोज के 54 हजार दिए थे
कई केसेज में वीआईपी कैदियों को फाइव-स्टार होटल जैसी सुविधाएं मिलने की बात होती रही. सहारा इंडिया परिवार के फाउंडर सुब्रत रॉय ने जेल में शुरुआती 57 दिनों के लिए 31 लाख रुपए दिए थे, मतलब एक दिन का लगभग 54 हजार. ये किसी शानदार होटल या रिजॉर्ट के चार्ज जैसा है. बिजनेस स्टैंडर्ड में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, इसमें कई सुविधाएं थीं, जैसे अलग से वेस्टर्न टॉयलेट, मोबाइल फोन, वाई-फाई और वीडियो कॉन्फ्रेंस की सुविधा.
तिहाड़ जेल के अधिकारियों ने इसपर बताया था कि इन सारी सुविधाओं के लिए खुद सुप्रीम कोर्ट ने मंजूरी दी थी ताकि वो जेल में बैठे हुए ही अपनी कुछ प्रॉपर्टीज बेच सके और जमानत का इंतजाम कर सके.
इस महिला लीडर के लिए अलग गेस्ट रूम
पूर्व अन्नाद्रमुक नेता वीके शशिकला के बेंगलूरु सेंट्रल जेल में रहने के दौरान आरोप लगा कि उन्हें बाकी सारी सुविधाओं के साथ-साथ एक अलग किचन भी मिला था, जहां उनके लिए खाना पकता. वे घरेलू कपड़े पहन सकती थीं और मुलाकात के लिए अलग सेल थी, जो खास शशिकला के मेहमानों के लिए रिजर्व थी. इस बारे में एक आईएएस अफसर विनय कुमार ने भी कन्फर्म किया था कि सुविधाओं के लिए शशिकला ने जेल एडमिनिस्ट्रेशन को 2 करोड़ रुपए दिए थे. यह रिपोर्ट फर्स्टपोस्ट अंग्रेजी में छपी थी.
कब मांगी जा सकती हैं अलग चीजें
आमतौर पर कोई हाई प्रोफाइल शख्स, खासकर अगर वो राजनीति या कारोबार से जुड़ा हो, जेल जाता है, और अगर आर्थिक क्राइम के मामलों में ट्रायल चल रहा है तो वो अपनी सेहत के हवाले से कई सुविधाएं मांग सकता है. हालांकि ये बेसिक जरूरतों से जुड़ी ही होती हैं.
किन चीजों की होती है डिमांड
इसमें ऊपर बैठने के लिए कुर्सी-मेज, मच्छरदानी, किताबें, घर का खाना और दवाएं जैसी चीजें शामिल हैं. वे अपने लिए अलग बिस्तर-चादर की मांग भी कर सकते हैं, जो उन्हें बाहर से मुहैया कराई जाएं. अगर वो हाई प्रोफाइल है, और साथ रहने पर सुरक्षा का डर है तो अलग सेल की डिमांड भी होती है.
कोर्ट में ये मांगें रखी जाती हैं और मंजूरी मिलने पर आधिकारिक तौर पर ये सुविधाएं मिलती हैं. जैसा अरविंद केजरीवाल के मामले में दिख रहा है, उन्हें स्टेटस के साथ सेहत की वजह से भी कुछ छूट मिली है. वहीं सामान्य कैदियों को जेल का खाना मिलता है, और वे बाकी कैदियों के साथ रहते हैं. ये जेल प्रशासन तय करता है कि उन्हें कहां और किनके साथ रखा जाए.
कौन कहलाते हैं VIP कैदी
कैदियों को उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति के आधार पर ये हक रहता है कि वे कोर्ट में अपने लिए ऐसी सुविधाएं मांग सकें जो वीआईपी श्रेणी में हैं, जो बाकियों को नहीं मिलतीं. इसमें सांसद, विधायक, मजिस्ट्रेट जैसे लोग शामिल हैं. बिजनेसमैन भी ऐसी सुविधाओं की डिमांड कर सकते हैं. वे वीआईपी सेल में रखे जाते हैं जो बाकी सेल्स से अलग होती है. इसकी वजह इतनी ही है कि वो सुरक्षित रह सके.
क्या कोर्ट की मंजूरी के बगैर बाहर से चीजें मंगवा सकते हैं.
जेल मैनुअल इसकी इजाजत नहीं देता. कई बार कैदी मोबाइल फोन के साथ पाए गए. अधिनियम के मुताबिक यह भी अपराध है. मोबाइल जब्त हो जाता है, साथ ही विधिक कार्रवाई भी हो सकती है.
समान नियम के लिए बना मॉडल जेल मैनुअल
वैसे तो प्रिजन एक्ट पूरे देश की जेलों पर लागू होता है, लेकिन स्टेट्स में भी प्रिजन मैनुअल समय-समय पर अपडेट होता रहता है. ये इसलिए होता है कि जेलों की व्यवस्था सही ढंग से चलती रहे. होम मिनिस्ट्री ने इसमें यूनिफॉर्मिटी लाने के लिए कुछ समय पहले मॉडल जेल मैनुअल बनाया था. इसमें न्यूनतम बेसिक जरूरतों को पूरा करने पर जोर है ताकि इंसान की डिग्निटी बनी रहे. हालांकि इसमें भी कैदियों को वीआईपी ट्रीटमेंट देने की बात नहीं है.