
पिछले साल भारत दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी इकनॉमी बन गया. ये जगह हमें उस ब्रिटेन को पछाड़कर मिली, जिसने लंबे समय तक हमपर राज किया था. सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बनने के साथ ही ग्लोबल पिक्चर तेजी से बदली. जो देश हमें पूछते तक नहीं थे, वे बड़े आयोजन में हमें न्यौता देने लगे. यानी अब गेंद हमारे पाले में है. लेकिन इसके बाद भी कहीं कुछ अटका हुआ है. कई ऐसे ग्रुप हैं, जिनका सदस्य चीन तो है, लेकिन भारत नहीं. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) ऐसा ही एक नाम है.
UNSC में होने के क्या हैं मायने
इसे दुनिया में सबसे ताकतवर बॉडी माना जाता है, जिसपर अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा पक्की करने और यूएन चार्टर में किसी भी बदलाव को मंजूरी देने की जिम्मेदारी है. ये बहुत बड़ी बात है क्योंकि सीधा असर दुनिया के हर देश पर होता है. माना तो यहां तक जाता रहा कि इस बॉडी के जरिए वर्ल्ड बैंक जैसी संस्थाओं पर भी असर डाला जा सकता है.
क्या है इसका स्ट्रक्चर
अगर यूएन की बात करें तो इसके कई सब-ग्रुप हैं. इसी में से एक है संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, जो यूएन की सबसे पावरफुल शाखा है. इस काउंसिल में 15 सदस्यों की जगह है.
UNSC की मेंबरशिप दो तरह की होती है- स्थाई और अस्थाई. केवल पांच ही देश इसके परमानेंट सदस्य हैं- अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, फ्रांस और चीन. इसके अलावा 10 ऐसे देश सदस्य होते हैं, जो हर दो साल में बदल जाते हैं.
पांच स्थाई सदस्यों के पास सारी ताकत है. ये कह सकते हैं कि यही देश इस ग्रुप के कर्ता-धर्ता हैं. वे तय करते हैं कि दो साल के लिए किन देशों को बुलावा भेजा जा सकता है, या किन्हें जगह कतई नहीं मिलनी चाहिए.
भारत पक्की सदस्यता के लिए जोर लगाता रहा
भारत अब तक 8 बार इस क्लब का नॉन-परमानेंट मेंबर रह चुका है. बीते साल ही उसकी सदस्यता खत्म हुई. लेकिन अब UNSC की तस्वीर में कुछ नया हो सकता है. असल में भारत लंबे समय से इस बात पर जोर देता रहा कि ग्रुप में परमानेंट सदस्यों की संख्या बढ़नी चाहिए क्योंकि जब से बना, तब से अब तक कई देश काफी ताकतवर हो चुके हैं.
भारत एक तरह से अपनी बात कर रहा था. विदेश मंत्री एस जयशंकर ने खुद कहा था कि देश जल्द ही सुरक्षा परिषद का स्थाई सदस्य बन सकता है. इस बात के लिए UNSC के चार सदस्य भी काफी कोशिश कर रहे हैं, लेकिन हर बार पांचवा मेंबर चीन इसपर अड़ंगा लगा देता है. दरअसल ग्रुप में कोई भी प्रस्ताव पास करने के लिए सभी स्थाई देशों का समर्थन जरूरी है.
चीन को क्या है एतराज
- चीन के साथ भारत के रिश्ते कभी बढ़िया नहीं रहे. कोविड के समय लद्दाख सीमा पर तनाव गहराया था.
- चीन कई वजहों से पाकिस्तान और उसके कश्मीर मुद्दे को भी हवा देता रहा. ये ऐसा ही है, जैसे दुश्मन के दुश्मन को दोस्त बना लेना.
- भारत UNSC में अपने साथ जापान को भी लाना चाहता है. चीन को इस पर भारी आपत्ति है क्योंकि जापान से भी उसके रिश्ते अच्छे नहीं.
अमेरिका भी नहीं है दूध का धुला!
वैसे तो अमेरिका हमारा करीबी दिख रहा है, लेकिन ये मामला हाथी के दांतों वाला भी हो सकता है. कई बार दबी जबान से उसने भारत की स्थाई सदस्यता का विरोध किया. उसके पास ये तर्क था कि हम परमाणु अप्रसार संधि NPT का हिस्सा नहीं, और न्यूक्लियर ताकत जुटा चुके हैं, वो भी अमेरिका के टोकने के बाद. कहीं न कहीं उसे ये बात अखरती रही.
कई दूसरे देश भी कतार में
भारत अकेला UNSC की पक्की सदस्यता के लिए जोर नहीं लगा रहा, कई दूसरे देश भी हैं. मसलन, जापान, जर्मनी, ब्राजील और यूक्रेन तक इसकी परमानेंट मेंबरशिप चाहते हैं. ये एक तरह से शहर के सबसे एलीट क्लब की तरह है, जहां हर कोई जाना चाहे. लेकिन जैसे भारत का विरोध हो रहा है, वैसे ही दूसरे देशों के भी कई दुश्मन हैं.
विरोधी देशों का एजेंडा तय
ये सारे विरोधी देश एकजुट हो गए और एक क्लब बनाया, जिसे नाम मिला- यूनाइटेड फॉर कंसेंशस. इनका काम ही विरोध करना है. इसमें इटली, स्पेन, कनाडा, साउथ कोरिया, ऑस्ट्रेलिया, अर्जेंटीना और पाकिस्तान को मिलाकर 40 देश शामिल हैं. ये लगातार कहते रहे कि UNSC में 5 पुराने मेंबर ही रहें और किसी नए देश को शामिल न किया जाए.
क्या रूस से छिन सकती है स्थाई सीट
यूक्रेन पर हमले के बाद से रूस के बारे में ऐसी कई बातें होती रहीं. खुद यूक्रेन ये बात बोल रहा था कि लड़ाई-झगड़ा करने वाले देश के पास इतनी ताकत नहीं रहनी चाहिए. लेकिन रूस डेढ़ साल बाद भी जमा हुआ है. असल में दिक्कत ये है कि UNSC के पास ऐसी कोई ताकत नहीं कि वो परमानेंट सदस्य को हटा सके.