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भारत-कनाडा टेंशन: किन मौकों पर भारत ने पश्चिमी मुल्कों के डिप्लोमेट्स को दिखाया बाहर का रास्ता, क्या हुआ अंजाम?

कनाडाई पीएम जस्टिन ट्रूडो ने खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारत का हाथ बता दिया. इसके बाद से दोनों देशों के बीच तनाव काफी बढ़ा हुआ है. दोनों ने ही एक-दूसरे के टॉप डिप्लोमेट्स को निष्कासित कर दिया. वैसे ये पहला मौका नहीं, जब भारत ने पलटवार करते हुए किसी पश्चिमी देश के डिप्लोमेट को हटाया है.

भारत और कनाडा के बीच तनाव गहराया हुआ है. सांकेतिक फोटो (Getty Images) भारत और कनाडा के बीच तनाव गहराया हुआ है. सांकेतिक फोटो (Getty Images)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 20 सितंबर 2023,
  • अपडेटेड 3:53 PM IST

कनाडाई पीएम जस्टिन ट्रूडो ने खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारत का हाथ बता दिया. इसके बाद से दोनों देशों के बीच तनाव काफी बढ़ा हुआ है. दोनों देशों ने ही एक-दूसरे के टॉप डिप्लोमेट्स को निष्कासित कर दिया. वैसे ये पहला मौका नहीं, जब भारत ने पलटवार करते हुए किसी पश्चिमी देश के डिप्लोमेट को हटाया है. 

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सबसे पहले ये समझते चलें कि डिप्लोमेट क्या करते हैं. ये इंडियन फॉरेन सर्विस के लोग होते हैं, जो विदेश नीति पर काम करते हैं. डिप्लोमेट दूसरे देशों में अपने देश की सरकार का चेहरा होते हैं, जिनका काम इंटरनेशनल रिश्तों में मजबूती लाना होता है. 

संरक्षण मिला होता है राजनयिकों को

विदेशों में रहते डिप्लोमेट्स के पास कई सारी सुविधाएं होती हैं, जिसे डिप्लोमेटिक इम्युनिटी कहते हैं. इसके तहत उसकी सुरक्षा जांच न होने से लेकर कई सुविधाएं मिलती हैं. यहां तक कि देश में अगर किसी वजह से टेंशन बढ़ जाए तो इम्युनिटी के तहत डिप्लोमेट को सुरक्षित उसके देश लौटाया जाता है. 

बाहर भी किया जा सकता है

जिस तरह हिंदू माइथोलॉजी में दूत की रक्षा का जिक्र मिलता है, मॉर्डन डिप्लोमेट कुछ वैसे ही हैं. लेकिन कई हालातों में देश को फॉरेन डिप्लोमेट्स को बाहर का रास्ता भी दिखाना होता है. विएना कन्वेंशन ऑन डिप्लोमेटिक रिलेशन्स में इसका साफ जिक्र है. इसके आर्टिकल 9 में लिखा है कि मेजबान मुल्क कभी भी उसे पर्सोना नॉन ग्रेटा डिक्लेयर कर सकता है, यानी जिसका होना उसे स्वीकार नहीं. 

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G20 के दौरान जस्टिन ट्रूडो और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. (Photo- AP)

होस्ट देश उसे एक औपचारिक चिट्ठी देते हैं, जिसमें लिखा होता है कि उसे कितनी देर या कितने दिनों के भीतर देश छोड़ना होगा. कई बार डिप्लोमेट्स पर जासूसी या आतंकवाद से जुड़े होने का भी आरोप लगता है. ऐसे में उसे महज कुछ ही घंटों का वक्त मिलता है और देश से रवाना होना पड़ता है. अगर आरोप गंभीर हो तो संबंधित देश से बात करके उसकी गिरफ्तारी भी हो सकती है. 

भारत ने किन मौकों पर विदेशी डिप्लोमेट्स को बाहर का रास्ता दिखाया?

डिप्लोमेट्स को बाहर निकालना काफी संवेदनशील मामला माना जाता है. देखा जाए तो वे रुतबेदार मेहमान की तरह होते हैं, जिनके आतिथ्य का जिम्मा मेजबान देश के पास होता है. आमतौर पर नर्म रुख रखने वाला भारत एक्सट्रीम हालातों में ऐसा कर चुका है. 

अमेरिका पर लिया था एक्शन 

साल 2013 में अमरीका में भारतीय विदेश सेवा अधिकारी देवयानी खोब्रागढ़े का मामला खूब उछला था. देवयानी पर आरोप था कि वे भारत से एक घरेलू सहायिका लेकर आईं, गलत तरीके से उसके दस्तावेज जमा कराए और फिर अमेरिका में कम पैसों में ज्यादा काम कराती थीं. डिप्लोमेट की सहायिका संगीता रिचर्ड ने खुद पुलिस में शिकायत की थी.

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डिप्लोमेट देवयानी खोब्रागढ़े पर घरेलू सहायिका के शोषण का आरोप लगा था. 

इसके बाद अमेरिका ने डिप्लोमेटिक इम्युनिटी को नजरअंदाज करते हुए देवयानी को हथकड़ी पहना दी थी. यहां तक कि निष्कासन के बाद भारत वापसी के रास्ते में स्ट्रिप एंड सर्च का आदेश दिया गया, यानी कपड़े उतारकर डिप्लोमेट की तलाशी ली गई. इस घटना पर भारत काफी भड़का था और दिल्ली में अमेरिकी एबेंसी को खाली करने का आदेश दे दिया था.  

इस वाकये के बाद भारत-अमेरिका का रिश्ता काफी खराब हुआ था, जिसे वापस पटरी पर आने में काफी समय लगा. 

फ्रांस के डिप्लोमेट पर लगा जासूसी का आरोप

फ्रांस से वैसे तो हमारे रिश्ते काफी अच्छे रहे, लेकिन साल 1985 में इसका भी ग्राफ नीचे आ गया था, जब फ्रेंच डिप्लोमेट सर्गेई बॉडॉ को देश छोड़ने का आदेश दिया गया. निष्कासित करने हुए उसकी साफ वजह नहीं बताई गई थी. वैसे मीडिया में कानाफूसी थी कि फ्रेंच डिप्लोमेट भारत के आर्थिक मामलों में जासूसी करते थे. 

कई और देशों पर भी हो चुका सख्त

कुछ समय पहले पूर्व भारतीय डिप्लोमेट सीआर गरेखान की एक किताब आई थी- सेंटर्स ऑफ पावर. इसमें लेखक ने दावा किया कि भले ही फ्रेंच जासूस वाला मुद्दा उछला था, लेकिन उसी दौरान भारत से कई दूसरे देशों के डिप्लोमेट भी रातोंरात बाहर किए गए थे. इसमें जर्मनी, पोलैंड और सोवियत संघ (अब रूस) शामिल थे. 

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गरेखान ने दावा किया कि बाद में तत्कालीन पीएम राजीव गांधी को पछतावा हुआ कि उन्होंने डिप्लोमेट्स के साथ ज्यादा ही सख्त बर्ताव कर डाला. इसे ठीक करने के लिए कूटनीतिक स्तर पर कई कोशिशें हुई, तब जाकर संबंध सामान्य हो सके. 

अक्सर नहीं रखा जाता रिकॉर्ड

डिप्लोमेट्स को हटाना इतना संवेदनशील मुद्दा है कि कई बार सरकारें इसे खुफिया ढंग से करना चाहती हैं. अमेरिका और फ्रांस वाला मामला इतना बड़ा था कि मिनिस्ट्री ऑफ एक्सटर्नल अफेयर्स को उसका ऐलान करना पड़ा, लेकिन ज्यादातर वक्त ये चुपचाप हो जाता है. कथित तौर पर जर्मनी और भारत के बीच कई बार ये डिप्लोमेट हटाओ अभियान चल चुका है, लेकिन इसका कोई आधिकारिक प्रमाण नहीं. 

क्या डिप्लोमेट अड़ भी सकते हैं

नहीं. ये विएना संधि का उल्लंघन है. अगर होस्ट देश ने मेहमान को जाने को कहा तो उसे वहां से जाना ही होगा. यहां तक कि अगर उसे कुछ घंटों का समय मिला है तो तय घंटों के भीतर देश छोड़ना होता है, वरना उसकी डिप्लोमेटिक इम्युनिटी खत्म मानी जा सकती है. इसके बदले गिरफ्तारी भी हो सकती है.

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