
पहले से खराब भारत और कनाडा के रिश्ते और खराब हो गए हैं. खालिस्तान समर्थक हरदीप सिंह निज्जर की हत्या को लेकर सोमवार को जिस तरह से घटनाक्रम बदले, उसने भारत और कनाडा के बीच एक बार फिर नया राजनयिक संकट खड़ा कर दिया है.
कनाडा के पुलिस कमिश्नर ने आरोप लगाया था भारतीय राजनयिक और कॉन्सुलर अधिकारी सीधे तौर पर या एजेंटों के जरिए भारत सरकार के लिए जानकारी जुटाने के लिए अपने पद का फायदा उठाते हैं. इसके बाद कनाडाई पीएम जस्टिन ट्रूडो ने आरोप लगाया कि हमने भारत के एजेंटों के आपराधिक गतिविधियों में शामिल होने के सबूत दिए थे. भारत से बार-बार आग्रह के बावजूद कोई सहयोग नहीं किया.
इसके बाद भारत ने कनाडा में अपने उच्चायुक्त संजय कुमार वर्मा समेत कई राजनयिकों को वापस बुला लिया है. इसके साथ ही भारत ने कनाडा के छह राजनयिकों को भी निष्कासित कर दिया है और उन्हें 19 अक्टूबर तक भारत छोड़ने को कह दिया है.
कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने एक बार फिर आरोप लगाया कि कनाडा की सरजमीं पर कनाडाई नागरिक हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारत सरकार के एजेंट शामिल रहे हैं. हालांकि, भारत इन सभी आरोपों को खारिज करता रहा है. सोमवार को भारतीय विदेश मंत्रालय ने दोबारा इन आरोपों को खारिज करते हुए इन्हें बेबुनियाद बताया. साथ ही ये भी कहा कि ट्रूडो 'वोट बैंक' की राजनीति कर रहे हैं.
क्या जानबूझकर कर रहे हैं ट्रूडो ऐसा?
जस्टिन ट्रूडो 2015 से कनाडा के प्रधानमंत्री हैं. पहली बार सत्ता में आने के बाद ट्रूडो ने अपनी कैबिनेट में 4 सिख सांसदों को मंत्री बनाया. उस चुनाव में कुल 17 सिख सांसद जीते थे. इनमें से 16 ट्रूडो की लिबरल पार्टी से थे.
मार्च 2016 में ट्रूडो ने अमेरिका में एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तंज कसा. उन्होंने कहा, 'मेरी कैबिनेट में मोदी की तुलना में ज्यादा सिख हैं.' तब मोदी सरकार में दो सिख मंत्री- मेनका गांधी और हरसिमरत कौर बादल ही थीं.
अभी ट्रूडो की कैबिनेट में एकमात्र सिख मंत्री हरदीप एस. सज्जन हैं. हरदीप सज्जन को भारत विरोधी माना जाता है. सोमवार को जब कनाडा ने भारत के राजनयिकों को निष्कासित किया, तो हरदीप ने इसकी तारीफ की. उन्होंने X पर लिखा, 'कनाडा की धरती पर कनाडाई लोगों की सुरक्षा को खतरे में डालने के गंभीर आरोप के कारण आज भारतीय राजनयिकों को निष्कासित कर दिया गया. ये देखना अच्छा लगता है कि कानूनी एजेंसियां एक ऐसे मामले में लगातार काम कर रही है, जो सिख समुदाय को गंभीर रूप से प्रभावित कर रहा है. मैं खुशनसीब हूं कि हम कनाडा में रहते हैं, जहां कानून अपना काम करता है.'
जब 100 साल पुरानी घटना पर मांगी थी माफी
कनाडा में ट्रूडो का सिख समुदाय, खासकर खालिस्तानी समर्थकों के प्रति प्रेम ज्यादा गहरा रहा है. एक वक्त तो उन्हें 'जस्टिन सिंह ट्रूडो' भी कहा जाने लगा था. मई 2016 में उन्होंने 100 साल पुरानी घटना पर संसद में माफी भी मांगी थी.
दरअसल, 1914 में कोमागाटा मारू नाम के जहाज में सवार होकर 376 से ज्यादा भारतीय कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया पहुंचे थे. इनमें ज्यादातर सिख थे. तब भारतीयों को वहां रहने की इजाजत नहीं थी. भारतीय वहां तभी आ सकते थे, जब जहाज बगैर कहीं रुके सीधे कनाडा पहुंचे. दो महीने तक जहाज खड़ा रहा और 24 भारतीयों को उतरने की इजाजत मिली. उस जहाज को वापस भारत भेज दिया गया.
करीब छह महीने बाद सितंबर 1914 में ये जहाज कोलकाता के बज बज बंदरगाह पहुंचा. तब अंग्रेजों का राज था और उन्होंने तय किया कि जहाज में सवार हर व्यक्ति की पहचान की जाएगी. मगर यहां झड़प हो गई. इस झड़प में 20 यात्रियों की मौत हो गई.
जस्टिन ट्रूडो ने इसी घटना पर संसद में माफी मांगी थी. उन्होंने इस घटना के लिए कनाडा के उस वक्त के कानून को जिम्मेदार ठहराया था और कहा था कि इस वजह से हुई मौतों के लिए हमें दुख है. इसके बाद फरवरी 2018 में जब ट्रूडो सात दिन की यात्रा पर भारत आए थे, तो वो स्वर्ण मंदिर भी गए थे.
दौरा भारत का, न्योता खालिस्तानी को
2018 में जस्टिन ट्रूडो अपनी पत्नी सोफी के साथ सात दिन की भारत यात्रा पर आए थे. इस दौरान ट्रूडो और उनकी पत्नी कई कार्यक्रमों में शामिल हुए थे. ऐसे ही एक कार्यक्रम में खालिस्तान समर्थक जसपाल अटवाल भी दिखा था.
मुंबई और दिल्ली में जस्टिन ट्रूडो के कार्यक्रम का जसपाल अटवाल को न्योता मिला था. मुंबई में सोफी ट्रूडो के साथ जसपाल अटवाल साथ दिखाई दिया था. इस कार्यक्रम में कनाडा के मंत्री अमरजीत सोही भी साथ थे. इस पर जब बवाल हुआ तो कनाडा ने दिल्ली में जस्टिन ट्रूडो की डिनर पार्टी के लिए जसपाल अटवाल को दिया न्योता रद्द कर दिया.
जसपाल अटवाल खालिस्तान का समर्थक रहा है और प्रतिबंधित संगठन 'इंटरनेशनल सिख यूथ फेडरेशन' से जुड़ा रहा है. 1986 में कनाडा के वैंकूवर में पंजाब के मंत्री मलकियत सिंह सिद्धू की हत्या की कोशिश के लिए जसपाल को कनाडाई कोर्ट ने दोषी ठहराया था. उस हमले में तो मलकियत सिंह बच गए थे, लेकिन भारत में उनकी हत्या कर दी गई थी. कनाडा की अदालत ने जसपाल को 20 साल की सजा सुनाई थी.
मगर इन सबसे ट्रूडो को क्या फायदा?
2015 से सत्ता में बने ट्रूडो न तो 2019 में बहुमत हासिल कर सके और न ही 2021 में. मगर दूसरी पार्टियों के सहारे उनकी लिबरल पार्टी सत्ता में बनी रही.
कनाडा में अगले साल अक्टूबर में संसदीय चुनाव होने हैं. ट्रूडो की पार्टी लगातार कमजोर हो रही है. कनाडाई संसद में कुल 338 सीटें होती हैं और सरकार बनाने के लिए 169 सीटों की जरूरत पड़ती है. ट्रूडो की लिबरल पार्टी के पास अभी 154 सीटें हैं. ट्रूडो को पता है कि सत्ता बचाए रखनी है तो सिखों को अपने साथ रखना जरूरी है.
कनाडा में सिख सबसे बड़ा अल्पसंख्यक समुदाय है. 2021 की जनणना के मुताबिक, कनाडा में सिखों की आबादी 7.70 लाख से ज्यादा है. भारत के बाद सबसे ज्यादा सिख कनाडा में ही रहते हैं. कनाडा के ओंटारियो में 3 लाख और ब्रिटिश कोलंबिया में 2.90 लाख से ज्यादा सिख रहते हैं. कनाडा की कुल आबादी में सिख 2.1 फीसदी हैं. यही वजह है कि ट्रूडो सिखों को खुश करने में जुटे रहते हैं.
चुनावी सर्वे करने वाली कनाडा की एक संस्था ने मई में एक सर्वे किया था. इसमें सामने आया था कि ट्रूडो की लिबरल पार्टी से सभी धार्मिक वर्गों का भरोसा टूट रहा है. सर्वे में शामिल 54% सिखों ने विपक्षी कंजर्वेटिव पार्टी को वोट देने की बात कही थी. जबकि, ट्रूडो की लिबरल पार्टी के साथ 21% सिख ही थे. इसी तरह, 53% हिंदू भी कंजर्वेटिव के साथ ही थे.
दूसरी ओर, जगमीत सिंह की न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी (एनडीपी) का समर्थन बढ़ रहा है. वामपंथी विचारधारा वाली एनडीपी को 20% सिख और 41% मुस्लिमों ने वोट देने की बात कही थी. एनडीपी कुछ महीनों पहले ट्रूडो सरकार के साथ ही थी. सितंबर में ही एनडीपी ने समर्थन वापस लिया है. संसद में एनडीपी के पास 24 सीटें हैं.
अपना जनाधार खोने के डर से ट्रूडो अब सिखों को खुश करने में जुटे हैं. जानकारों का मानना है कि 2025 में सत्ता में वापसी की उम्मीद के कारण ट्रूडो ऐसी हरकतें कर रहे हैं.
कहीं बैकफायर न हो जाए?
ट्रूडो खालिस्तान समर्थकों के बूते सत्ता में वापसी की उम्मीद देख रहे हैं, लेकिन कनाडा में बहुत कम सिख ऐसे हैं जो खालिस्तान चाहते हैं.
ट्रूडो सरकार में विदेश नीति के सलाहकार रहे ओमर अजीज ने पिछले साल सितंबर में एक लेख लिखा था. इसमें उन्होंने लिखा था कि खालिस्तान और चरमपंथ को लेकर भारत-कनाडा का एक-दूसरे पर आरोप लगाना नई बात नहीं है, लेकिन दुख की बात है कनाडाई नागरिकों को 1985 की वो घटना याद नहीं है, जब खालिस्तानी चरमपंथियों ने एअर इंडिया के विमान को हवा में ही उड़ा दिया था.
उन्होंने लिखा था, जब तक मैं विदेश नीति का सलाहकार था, तब तक मैंने देखा कि न तो कनाडा ने भारत को गंभीरता से लिया और न ही भारत ने कनाडा को. कनाडा अमेरिका और यूरोप से आगे देख ही नहीं रहा था और इस कारण हमारे रिश्ते कई देशों से बिगड़ते चले गए. 2018 में जब ट्रूडो भारत की यात्रा पर गए तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनका स्वागत भी नहीं किया.
वो लिखते हैं, भारत बार-बार कहता था कि कनाडा की सरजमीं का इस्तेमाल खालिस्तान समर्थक कर रहे हैं. ऐसे में कनाडा को कम से कम इतना जरूर कहना चाहिए था कि उनकी जमीन पर अलगाववाद का समर्थन नहीं किया गया. क्योंकि कनाडा में सिखों का एक बहुत बड़ा तबका ऐसा है जो खालिस्तान नहीं चाहता. मगर ट्रूडो को डर था कि कहीं सिख वोट जगमीत सिंह के पास न खिसक जाए.
ओमर अजीज ने ये लेख तब लिखा था, जब ट्रूडो ने निज्जर की हत्या के लिए भारत को जिम्मेदार ठहराया था. अजीज ने लिखा था कि हो सकता है कि कुछ लोग इससे परेशान हों, लेकिन एक देश के रूप में ऐसी सोच से कनाडा की प्रतिष्ठा को बड़ा नुकसान पहुंचा है.
उन्होंने लिखा था कि ऐसा नहीं है कि मोदी हमेशा कनाडा के अच्छे दोस्त रहेंगे, लेकिन इन सबसे बड़ा नुकसान कनाडा को हुआ है. दुनिया में मोदी की स्वीकार्यता बढ़ी है, जबकि कनाडा अलग-थलग है. उन्होंने लिखा था कि सीधे-सीधे आरोप लगाने की बजाय कनाडा को कनाडाई नागरिक की हत्या की जांच करनी थी और उसके नतीजों को सार्वजनिक करना चाहिए था और भारत के साथ तनाव कम करने की कोशिश की जानी चाहिए थी.
ओमर अजीज के इस सालभर पुराने लेख से समझा जा सकता है कि 'वोटबैंक' के लिए भारत से रिश्ते बिगाड़ना ट्रूडो पर ही भारी पड़ सकता है, क्योंकि कनाडा में बहुत सारे लोग ट्रूडो जैसा नहीं सोचते.