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US के राष्ट्रपति ने किस देश को कह दिया नरभक्षी, क्या वाकई वहां इंसानों को खाने वाली ट्राइब्स रहती हैं?

पापुआ न्यू गिनी भरसक कोशिश करता रहा कि उसपर लगा नरभक्षी का ठप्पा हट जाए, लेकिन किसी न किसी वजह से इसे हवा मिलती रही. हाल में अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कह दिया कि दूसरे विश्व युद्ध के दौरान उनके एक रिलेटिव को न्यू गिनी के लोगों ने खा लिया था. अब विवादों के बीच ये चर्चा भी हो रही है कि क्या इंसान नरभक्षी हो सकते हैं.

जो बाइडेन ने न्यू गिनी में नरभक्षियों के होने की बात कह दी. (Photo- Unsplash) जो बाइडेन ने न्यू गिनी में नरभक्षियों के होने की बात कह दी. (Photo- Unsplash)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 30 अप्रैल 2024,
  • अपडेटेड 6:54 PM IST

कुछ दिनों पहले अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने एक सभा को संबोधित करने के दौरान बेहद विवादास्पद बयान दे दिया. उन्होंने कहा कि दूसरे वर्ल्ड वॉर के दौरान उनके चाचा एम्ब्रोस फिननेगन का विमान न्यू गिनी में दुर्घटनाग्रस्त हो गया. वे वहां सही-सलामत उतरे, लेकिन फिर कोई खबर नहीं मिल सकी. शायद वे नरभक्षियों का शिकार हो गए हों, जो उस हिस्से में काफी ज्यादा थे. बाइडेन के इस बयान पर न्यू गिनी के प्रधानमंत्री जेम्स मारापे का नाराजगी भरा बयान आ चुका है. लेकिन 

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पहले जानें उस वजह को, जिसके कारण न्यू गिनी पर ये टैग चिपक गया.

इंडोनेशिया के पास प्रशांत महासागर में ये एक द्वीप देश है. न्यू गिनी की आबादी 60 लाख से कुछ ऊपर है, लेकिन इतनी कम आबादी में भी कई सैकड़ा भाषाएं बोली जाती हैं, और कई तरह के कल्चर दिख जाएंगे. यहां की 20 फीसदी आबादी ही शहरी है. यही वो जनसंख्या है, जिसमें डेवलपमेंट दिखेगा. ज्यादातर आबादी गांवों में, जबकि कुछ हिस्सा उन जगहों पर रहता है, जहां पहुंचना भी आसान नहीं. ये अलग-थलग रहना भी इसे रहस्यमयी बनाता रहा. 

आबादी से दूर रहने वाली एक ट्राइब है कोरोवई. ये लोग मजबूत पेड़ों पर घर बनाकर रहते हैं. वे मानते हैं कि ऊंचाई पर रहना उन्हें जमीन पर बसी बुरी ताकतों से दूर रखता है. कोरोवई जनजाति के और भी कई यकीन और मान्यताएं रहीं.

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किताब ने दिए उदाहरण

एथ्रोपोलॉजिस्ट रूपर्ट स्टैश ने इनपर एक किताब लिखी थी- सोसायटी ऑफ अदर्स...इसमें जिक्र था कि कोरोवई लोग कैनिबलिज्म पर यकीन करते हैं, यानी इंसानों को खाते हैं. साल 2009 में लिखी किताब पर काफी बहसाबहसी हुई. कई जानकारों ने कहा कि ये प्रैक्टिस काफी पहले थी, जो अब बंद हो चुकी. लेकिन किताब ने एक बार फिर बंद हो चुकी बात को उठा दिया. न्यू गिनी पर फिर से कैनिबलिज्म का ठप्पा लग गया. 

क्या वाकई द्वीप के लोग ऐसे थे

इसपर अलग-अलग बातें मिलती हैं. हालांकि स्मिथसोनियन मैग्जीन का दावा सबसे करीब माना जाता रहा. इसमें जिक्र है कि सभ्यता से अलग रहते द्वीपवासियों को वायरस और बैक्टीरिया की कोई जानकारी नहीं थी. ऐसे में जब कोई अचानक बीमारी होकर खत्म हो जाता, तो ये उसे भूत-प्रेत का असर मानते. इसी असर को खत्म करने के लिए वे मृत शरीर को खा जाते थे. 

प्रेम जताने के लिए खाया करते

एक और जनजाति भी ऐसी थी. फोरे नाम की इस ट्राइब में मृत शरीर को उसके परिजन ही खा जाते. लेकिन वे ऐसा अपना प्यार जताने के लिए करते थे. असल में उन्हें लगता था कि दफनाने या फेंक देने पर बॉडी को कीड़े-मकोड़े खा जाएंगे, इसकी बजाए परिवार के लोग खाएं ताकि मृतक उनके शरीर में बना रहे. साठ के दशक तक वहां ये प्रैक्टिस चलती रही, जब तक कच्चा इंसानी मांस खाकर लोग बीमार नहीं पड़ने लगे. मीडिया रिपोर्ट्स कहती हैं कि 20वीं सदी में हर साल इसी नरभक्षण की वजह से 2 से ज्यादा मौतें हो रही थीं. 

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कुल मिलाकर अगर न्यू गिनी में कैनिबलिज्म हो भी रहा था, तो प्रैक्टिस खत्म हुए कई दशक बीत चुके. इसके अलावा, जनजाति के लोग किसी को भी पकड़कर नहीं खा जाते थे, जैसा राष्ट्रपति बाइडेन के बयान से लगता है. यही वजह है कि वहां के लोग नाराज हैं. 

क्या है कैनिबलिज्म

कैंब्रिज डिक्शनरी के अनुसार, जब इंसान ही इंसान का मांस खाने लगे तो उसे आदमखोर या कैनिबल कहते हैं. हालांकि जब कोई प्रजाति अपनी प्रजाति के पशुओं को खाने लगे तो ये भी कैनिबलिज्म के तहत ही आता है.

क्या इंसान आदमखोर हो सकते हैं? 

सामान्य हालातों में नहीं. लेकिन अपराधी मानसिकता वाले कई लोग ऐसा कर चुके हैं. एक रूसी अपराधी एंड्रेई चिकेतिलो पर भी 50 से ज्यादा हत्याएं कर लोगों को खाने का आरोप लगा था. इसी तरह के दिल दहलाने वाले मामले अमेरिका से भी आए थे. ये तो हुई अपराधियों की बात, लेकिन कई बार सामान्य लगने वाले लोग भी ऐसा कर जाते हैं. कनाडियन कलाकार रिक गिबसन पर भी नरमांस खाने का आरोप लगा था.

क्या है सर्वाइवल कैनिबलिज्म

एक्सट्रीम हालातों में भी इंसान अपनी जान बचाने के लिए कमजोर इंसानों को खाने लगता है, ऐसी घटनाएं हिस्ट्री में दर्ज हैं. साल 1958 के आखिर में चीन में पड़े भयंकर अकाल के बारे में पत्रकार यंग जिशेंग ने अपनी किताब टूम्बस्टोन में कई घटनाओं का जिक्र किया है, जब इंसान दूसरे इंसान को खा रहे थे. हालांकि चीन की सरकार ने इससे इनकार किया और किताब पर बैन भी लगा दिया.

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लंबी समुद्री यात्राओं में भी कई बार ऐसा हो चुका, जब राशन खत्म होने पर नाविकों ने कमजोर या बीमारी साथी को पकाकर खा लिया. एक ऐसी ही घटना साल 1884 में हुई थी, जो काफी चर्चित रही. इसे सर्वाइवल कैनिबलिज्म कहा गया. 

एक बीमारी भी है, जिसका मरीज नरभक्षी हो सकता है

राजस्‍थान के पाली में पिछले साल एक शख्‍स ने एक महिला की हत्‍या करने के बाद उसका मांस भी खाया था. बाद में पता लगा कि उसे हाइड्रोफोबिया था. ये बीमारी कुत्ते या भेड़िया फैमिली के जानवरों के नोंचने-काटने से हो सकती है. पागल डॉग्स के काटने और इलाज न लेने पर इसका डर काफी ज्यादा होता है. वैसे हाइड्रोफोबिया कोई अलग बीमारी नहीं, बल्कि रेबीज का ही एक्सट्रीम लक्षण है, जिसमें मरीज को पानी, रोशनी से डर लगने लगता है. 

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