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भूटान के साथ मिलकर ऐसा क्या करने जा रहा है चीन, जिससे बढ़ सकती है भारत की चिंता

चीन ने भूटान को उसके साथ राजनयिक संबंध स्थापित करने और जल्द से जल्द सीमा विवाद सुलझाने को कहा है. इसे लेकर भूटान के विदेश मंत्री टांडी दोर्जी ने चीनी विदेश मंत्री वांग यी से बीजिंग में मुलाकात भी की है. पर चीन और भूटान के बीच होने वाला कोई भी समझौता भारत की चिंता बढ़ा सकता है.

चीन और भूटान के बीच 477 किलोमीटर लंबी सीमा है. चीन और भूटान के बीच 477 किलोमीटर लंबी सीमा है.
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 24 अक्टूबर 2023,
  • अपडेटेड 6:56 PM IST

चीन और भूटान करीब आ रहे हैं. राजनयिक संबंध स्थापित करने और सीमा विवाद का जल्द से जल्द हल निकालने के लिए बातचीत कर रहे हैं.

भूटान के विदेश मंत्री टांडी दोर्जी इस समय बीजिंग में हैं. वहां उन्होंने चीन के विदेश मंत्री वांग यी से मुलाकात की. इस दौरान दोनों के बीच राजनयिक संबंध स्थापित करने और जल्द से जल्द सीमा विवाद का हल निकालने पर सहमति बनी.

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मुलाकात के बाद चीन के विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा कि राजनयिक संबंध की बहाली और सीमा विवाद का हल निकलने से दोनों देशों के हित पूरे होंगे.

चीनी विदेश मंत्रालय की ओर से जारी बयान में बताया गया है कि इस मीटिंग में दोर्जी ने भूटान का मजबूती से समर्थन करने के लिए चीन का धन्यवाद दिया. साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि भूटान वन-चाइना पॉलिसी का समर्थन करता है, जिसका मतलब है कि ताइवान और तिब्बत चीन का हिस्सा हैं. 

चीन और भूटान के बीच राजनयिक संबंध नहीं हैं. फिर भी दोनों के बीच बातचीत जारी है. चीन अब तक अपने 12 पड़ोसियों से सीमा विवाद सुलझा चुका है. सिर्फ भूटान और भारत ही ऐसे हैं, जिनसे अब तक सीमा विवाद नहीं सुलझा है.

भूटान से 'दोस्ती' बढ़ा रहा है चीन!

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हालिया सालों में चीन ने भूटान के साथ राजनयिक संबंध स्थापित करने और सीमा विवाद का हल निकालने के लिए बातचीत की कोशिशें तेज कर दी हैं.

इस साल अगस्त में बीजिंग में चीन-भूटान सीमा विवाद पर बने एक्सपर्ट ग्रुप की 13वीं बैठक हुई थी. ये बैठक तीन दिन तक चली थी. 

इस साल मार्च में भूटान के प्रधानमंत्री लोटे छृंग ने एक इंटरव्यू में कहा था कि चीन के साथ एक या दो बैठक में सीमा विवाद सुलझने की उम्मीद है.

भूटान और चीन के बीच क्या है सीमा विवाद?

चीन और भूटान 477 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करते हैं. दोनों के बीच 80 के दशक से सीमा विवाद है. दोनों के बीच अब तक राजनयिक संबंध नहीं हैं, लेकिन सीमा विवाद सुलझाने के लिए दो दर्जन से ज्यादा बार बातचीत हो चुकी है.

जिन दो इलाकों को लेकर चीन और भूटान के बीच सबसे ज्यादा विवाद है. उनमें 269 वर्ग किलोमीटर का डोकलाम है. और दूसरा इलाका भूटान के उत्तर में 495 वर्ग किलोमीटर का जकारलुंग और पासमलुंग घाटी का इलाका है.

इसलिए अक्टूबर 2021 में चीन और भूटान ने 'थ्री-स्टेप रोडमैप' के समझौते पर दस्तखत किए थे. दावा है कि इस समझौते से दोनों के बीच चल रहे सीमा विवाद को सुलझाने में तेजी आएगी.

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चीन क्या चाहता है?

चीन की रणनीति रही है कि वो छोटे देशों के साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों को खराब नहीं करना चाहता. और खासकर कि तब जब वो देश भारत से भी सीमा साझा करता हो.

1998 तक तो चीन, भूटान को स्वतंत्र राष्ट्र भी नहीं मानता था. वो भूटान को तिब्बत की पांच फिंगर्स में से एक मानता था. तिब्बत की चार फिंगर्स में उसने लद्दाख, नेपाल, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश को रखा था.

साल 1996 में चीन ने भूटान के सामने एक प्रस्ताव रखा. चीन ने प्रस्ताव दिया कि वो 495 वर्ग किलोमीटर के इलाके पर अपना दावा छोड़ देगा, अगर भूटान उसे 269 वर्ग किलोमीटर वाला डोकलाम दे देगा.

चीन की नजर भारत के 'चिकन नेक' पर!

चीन की नजर भूटान के डोकलाम पर है. डोकलाम एक ट्राई-जंक्शन है, जो भारत, चीन और भूटान की सीमा पर है.

डोकलाम एक पहाड़ी इलाका है. इस पर चीन और भूटान, दोनों दावा करते हैं. भारत डोकलाम पर भूटान के दावे का समर्थन करता है.

डोकलाम वैसे तो चीन और भूटान के बीच का विवाद है. लेकिन ये सिलिगुड़ी कॉरिडोर के करीब पड़ता है, इसलिए भारत की भी इसमें दिलचस्पी है. सिलिगुड़ी कॉरिडोर भारत के नक्शे में मुर्गी की गर्दन जैसा दिखता है, इसलिए इसे 'चिकन नेक' कहा जाता है. 22 किलोमीटर लंबा ये कॉरिडोर पूर्वोत्तर भारत को बाकी भारत से जोड़ता है.

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जून 2017 में चीन ने डोकलाम में जब सड़क बनाने का काम शुरू किया, तो भारतीय सेना ने उसे रोक दिया. सड़क बनाने को लेकर हुए विवाद के बाद 73 दिनों तक भारत और चीन की सेना आमने-सामने थीं. इस दौरान कोई हिंसा तो नहीं हुई थी, लेकिन तनाव बहुत बढ़ गया था.

भारत की चिंता है कि अगर डोकलाम में सड़क बनती है तो इससे सुरक्षा समीकरण बदल सकते हैं. भविष्य में संघर्ष की स्थिति बनने पर चीन इसका इस्तेमाल सिलिगुड़ी कॉरिडोर पर कब्जे के लिए कर सकता है.

भूटान में चीनी घुसपैठ

2017 में तो चीन ने डोकलाम में सड़क बनाने का काम शुरू कर ही दिया था. वो तो भारत था, जिसने इसका विरोध किया.

भारत का मानना है कि डोकलाम, भूटान का निर्विवादित क्षेत्र है. जबकि, चीन का मानना है कि वो चुंबी घाटी का इलाका है जो सिक्किम और भूटान के बीच स्थित है.

जून 2020 में चीन ने सकतेंग अभ्यारण्य पर अपना दावा ठोक दिया था. ये पूर्वी भूटान में स्थित है और अरुणाचल प्रदेश की सीमा के पास है.

इतना ही नहीं, चीन ने कथित तौर पर भूटान की सीमा में कई गांव भी बनाए हैं. हालांकि, इसी साल मार्च में एक फ्रांसिसी अखबार को दिए इंटरव्यू में भूटान के प्रधानमंत्री लोटे छृंग ने कहा था कि चीन ने जो गांव बनाए हैं, वो भूटान की सीमा में नहीं हैं.

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भारत के लिए क्यों है चिंता की बात?

चीन की नजर डोकलाम पर है. वो चाहता है कि किसी भी तरह डोकलाम पर उसका कब्जा हो जाए. अगर ऐसा हुआ तो भारत के लिए ये बड़ा झटका होगा, क्योंकि इससे चीनी सेना की पहुंच भारत के सिलिगुड़ी कॉरिडोर तक हो जाएगी.

चिंता की एक बात ये भी है कि हालिया सालों में भूटान की चीन से काफी नजदीकियां बढ़ी हैं. माना जा रहा है कि चीन अपनी ताकत का इस्तेमाल कर भूटान पर सीमा विवाद सुलझाने का दबाव बना रहा है.

मार्च में इंटरव्यू में भूटानी पीएम ने डोकलाम पर भी बात कही थी. उन्होंने कहा था, 'डोकला भारत, चीन और भूटान के बीच ट्राई-जंक्शन है. ये मुद्दा केवल भूटान का नहीं है. इससे तीन देश जुड़े हुए हैं. कोई बड़ा या छोटा देश नहीं है. तीनों बराबर हैं.'

भूटान भी अब चीन के साथ सीमा विवाद को जल्द से जल्द सुलझाना चाहता है. भूटानी पीएम ने मार्च में कहा था कि 'हो सकता है कि एक या दो बैठक में सीमाओं का रेखांकन हो जाए.'

भारत की चिंता है कि चीन और भूटान के बीच सीमा विवाद पर कोई समझौता होता है तो उससे डोकलाम पर पूरा नियंत्रण चीन का हो सकता है. 

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अब भारत क्या कर सकता है?

भारत और भूटान के रिश्ते हमेशा से घनिष्ठ रहे हैं. भूटान अपनी ज्यादातर जरूरतों के लिए भारत पर निर्भर है. भूटान का 75% आयात और 95% निर्यात भारत से ही है.

इतना ही नहीं, भारतीय सैनिक भूटान के सैनिकों को ट्रेनिंग भी देते हैं. इसके अलावा, भूटान अकेले चीन के साथ कोई समझौता नहीं कर सकता. इसकी वजह भारत के साथ हुआ एक समझौता है.

दरअसल, भारत और भूटान के बीच 8 अगस्त 1949 को एक समझौता हुआ था. समझौते के तहत, रक्षा और विदेश से जुड़े मामलों के लिए भूटान, भारत पर निर्भर है.

साल 2007 में फिर एक समझौता हुआ. इसने 1949 के समझौते की जगह ली. इसमें भूटान को रक्षा और विदेश से जुड़े मामलों में फैसला लेने में थोड़ी आजादी दी गई. लेकिन भूटान अब भी बिना भारतीय समर्थन के अकेले फैसला नहीं ले सकता.

जानकार मानते हैं कि अगर भूटान पर डोकलाम को अपना बताते रहने का भारत का दबाव नहीं होता तो अब तक तो चीन और भूटान के बीच ये विवाद सुलझ भी गया होता. 

फिर भी अगर चीन और भूटान के बीच सीमा विवाद सुलझता है और कोई समझौता होता है तो इसका सीधा-सीधा असर भारत पर होगा.

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