
साल 2012 से शरणार्थी चीनी नागरिकों की संख्या लगातार बढ़ी. ये अलग-अलग देशों में जा रहे हैं, जिसमें अमेरिका टॉप पर है. द कन्वर्सेशन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले दशकभर में साढ़े 8 लाख से ज्यादा चीनियों ने कई देशों में शरण पाने के लिए आवेदन किया. हालात ये हैं कि रिफ्यूजी स्टेटस न पाने पर वे खतरनाक रास्तों से घुसपैठ तक कर रहे हैं. लेकिन इकनॉमिक तौर पर बेहद मजबूत कहलाते देश के भीतर ऐसा क्या हुआ जो लोग बाहर जा रहे हैं.
पहले जर्मनी का मामला समझते हैं
बुधवार को वहां के 8 राज्यों में छापेमारी शुरू हुई. फेडरल पुलिस के इस रेड में इंटेलिजेंस के लोग भी शामिल थे. सौ से ज्यादा ऐसी इमारतों पर छापा मारा गया, जहां बिजनेस चल रहा है. इस दौरान बड़ी संख्या में चीनी नागरिक मिले जो हजारों यूरो खर्च करके जर्मनी का रेजिडेंस परमिट ले चुके थे. मानव तस्करी का एक पूरा गैंग काम करता है जो अलग-अलग देशों के जरूरतमंद लोगों को पैसों के बदले जर्मनी ला रहा है. फिलहाल उनपर कार्रवाई जारी है, लेकिन चीन का मामला इसके बाद काफी हाइलाइट हो गया.
दशकों तक अमेरिका ने लगाई थी पाबंदी
साल 1882 से लेकर 1943 तक अमेरिकी सरकार ने चीनी मजदूरों के आनेजाने पर बैन लगा दिया. ऐसा कई वजहों से हुआ. इसमें इकनॉमिक कंपीटिशन कम था, लेकिन ये डर ज्यादा था कि चीनी नागरिक अमेरिका में रहनेवालों के रिसोर्सेज पर कब्जा कर लेंगे. हर चीज का जुगाड़ करने में आगे चीनियों ने इसकी तोड़ भी निकाल ली. वे मैक्सिकन नाम रखने लगे, कामचलाऊ मैक्सिकन बोलने लगे, और मैक्सिको के रूट से अमेरिका में घुसपैठ करने लगे. तब अमेरिका और मैक्सिको में आवाजाही आसान थी.
1943 में चीनियों पर से बैन का नियम ढीला पड़ा और एंट्री ज्यादा तेजी से होने लगी. अब ये और भी बढ़ चुकी है.
क्यों दूसरे देश जा रहे चीन के लोग
कोविड 19 के दौरान चीन की सरकार ने नागरिकों पर काफी सख्ती की. उनका देश से बाहर दूर, अपने ही घर से बाहर निकलना मुश्किल हो गया. इसके बाद जैसे ही कंट्रोल हटा, शरणार्थियों का बाहर जाना शुरू हो गया. अपना मुल्क छोड़कर बाहर जाने की कई वजहें हैं. इसमें सबसे बड़ी है बेरोजगारी. चीन में शहरी युवाओं में बेरोजगारी 20.4 तक पहुंच चुकी है, जो राष्ट्रीय बेरोजगारी दर से चार गुना ज्यादा है. पढ़े-लिखों के पास नौकरी नहीं. कोविड के दौरान बिजनेस भी काफी बंद हुए.
पॉलिटिक्स ही तय करती है सबकुछ
चीन में राजनैतिक सख्ती काफी ज्यादा है. यहां सत्ता में बैठी पार्टी काफी कुछ तय करती है, यहां तक कि विचारधाराएं भी. मिसाल के तौर पर वहां LGBTQ अधिकार, या महिला अधिकारों पर खास बात नहीं हो सकती. वही होगा, जो कम्युनिस्ट पार्टी तय करे.
धार्मिक छूट पर शिकंजा
साल 2018 में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने देश में सभी धर्मों के चीनीकरण का खुला एलान कर दिया. इसके बाद से धार्मिक फ्रीडम बुरी तरह प्रभावित हुआ. वहां धर्मस्थलों का रजिस्ट्रेशन कराना होता है. कहीं भी प्रेयर करने जाने वालों को ऑनलाइन रिजर्वेशन कराना होगा, साथ ही ये भी लिखना होगा कि वे कहां रहते हैं और कहां पूजापाठ करने जाना चाहते हैं.
इंटरनेट पर चल निकली नई भाषा
कुछ समय से चीन में एक टर्म चल निकला- रनक्से यानी रन फिलॉसफी. इसे मानने वाले यकीन करते हैं कि चीन से निकल भागना ही उन्हें सेफ रख सकेगा. एक और टर्म है- जॉक्शियन मतलब वॉकिंग द रूट. इस भाषा के पीछे घुसपैठ की पूरी कहानी है. ये टर्म वे लोग इस्तेमाल करते हैं जो लैटिन अमेरिका के रास्ते से अमेरिका पहुंच रहे हैं. बेहद जोखिमभरा ये सफर नावों से और पैदल पूरा होता है. यूनाइटेड नेशन्स के रिफ्यूजी डेटा फाइंडर में सिलसिलेवार बताया गया कि किस देश के लिए कितने चीनी नागरिकों ने असाइलम की अर्जी दी हुई है.
माइग्रेशन का ये पैटर्न चीन की उस इमेज से एकदम उलट है, जो चाइनीज ड्रीम की बात करता है. कम्युनिस्ट पार्टी भी ड्रीम अमेरिका की तर्ज पर ड्रीम चाइना को बढ़ावा देती है. वो ऐसे सारे जतन कर रही है जिससे चीन की युवा पीढ़ी में देश के लिए प्यार बढ़े.
अमेरिका में तीसरे नंबर पर चीनी आबादी
चीन से अमेरिका की तरफ माइग्रेशन सबसे ज्यादा है. माइग्रेशन पॉलिसी की रिपोर्ट कहती है कि मैक्सिको और भारत के बाद तीसरे नंबर पर चीन के लोग हैं, जो अमेरिका में रह रहे हैं. साल 2021 में कुल प्रवासियों में उनकी संख्या 5 प्रतिशत से ज्यादा थी. यहां बता दें कि यूएस में 45 मिलियन से ज्यादा प्रवासी वैध तौर पर रह रहे हैं.