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क्या चीन के दखल से रुक सकती है रूस और यूक्रेन में जंग, या दरक जाएगी मॉस्को के साथ उसकी दोस्ती?

चुनावी रैली के दौरान डोनाल्ड ट्रंप कई बार दोहरा चुके थे कि वे सत्ता में आए तो कई देशों में युद्ध रुकवा देंगे. अपने पहले कार्यकाल में भी ट्रंप ने मिडिल ईस्ट में शांति पर कई काम किए. अब उनका फोकस रूस और यूक्रेन जंग है. हाल में उन्होंने इस मामले में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से भी मदद की अपील कर डाली.

रूस और चीन की दोस्ती के भूराजनैतिक मायने हैं. (Photo- AP) रूस और चीन की दोस्ती के भूराजनैतिक मायने हैं. (Photo- AP)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 09 दिसंबर 2024,
  • अपडेटेड 1:59 PM IST

अमेरिका के राष्ट्रपति होने जा रहे डोनाल्ड ट्रंप ने रूस-यूक्रेन युद्ध खत्म करने में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मदद मांग डाली. पिछले तीन सालों से चली आ रही लड़ाई में दोनों ही देश कमजोर हो चुके. लेकिन इसका असर आयात-निर्यात की डोर से बंधे बाकी देशों पर भी हो रहा है. अब ट्रंप की अपील लड़ाई रोकने में निर्णायक हो सकती है, लेकिन सवाल ये है कि रूस का मददगार ये देश क्योंकर उसे टोकेगा, या फिर क्या ट्रंप की ये बात दोनों देशों के रिश्ते बदल सकती है?

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फरवरी 2022 में जब रूस ने यूक्रेन पर हमला किया तो माना जा रहा था कि कीव मॉस्को से सामने ज्यादा दिन नहीं टिक सकेगा. एक हिसाब से देखा जाए तो रूस दूसरा अमेरिका है, जो हमेशा पूरे टीमटाम के साथ चलता रहा. लेकिन हुआ कुछ अलग. यूक्रेन न केवल टिका, बल्कि कुछ समय बाद बचाव के तरीके छोड़कर हमलावर भी होने लगा. इसकी भी वजह थी. यूक्रेन को अमेरिका समेत तमाम यूरोपियन देशों से भारी मदद मिल रही थी. 

यूक्रेन को मिल रही ग्लोबल मदद

जर्मन रिसर्च संस्थान कील इंस्टीट्यूट फॉर वर्ल्ड इकनॉमी (IfW) इसपर नजर रख रही है कि कौन सा देश यूक्रेन को कितनी सहायता दे रहा है. इसके मुताबिक कुल 28 देशों ने उसे हथियारों की मदद दी. इसमें सबसे बड़ा योगदान अमेरिका का रहा. लड़ाई शुरू होने के अगले सालभर के भीतर  जो बाइडेन सरकार यूक्रेन को लगभग सौ बिलियन डॉलर की मदद दे चुकी. यहां तक कि इस लड़ाई को रूस और अमेरिका का प्रॉक्सी युद्ध भी कहा जाने लगा. उसके अलावा यूरोपियन यूनियन, ब्रिटेन, पोलैंड, जर्मनी, कनाडा, इटली, फ्रांस, नॉर्वे और नीदरलैंड को सबसे बड़ा डोनर माना जा रहा है.

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क्या चीन कर रहा रूस की सहायता

एक तरफ दुनिया के सारे ताकतवर देश हैं तो दूसरी तरफ रूस. लेकिन वो इतना भी अकेला नहीं. चीन पर ये आरोप लगते रहे कि वो रूस की हथियार बनाने में मदद कर रहा है. यूएस सेक्रेटरी ऑफ स्टेट एंटनी ब्लिंकेन के हवाले से बीबीसी की एक रिपोर्ट में कहा गया कि मॉस्को के पास लगभग 70 फीसदी मशीन टूल्स और 90 फीसदी  माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक्स चीन से आ रहे हैं. चीन हालांकि इस आरोप से इनकार करता है. उसका कहना है कि वो मॉस्को के साथ नियमों के दायरे में ही बिजनेस कर रहा है. 

अमेरिका से दुश्मनी रखते इन देशों पर भी शक 

इसके अलावा उत्तर कोरिया के बारे में बात हो रही है कि वो भी किसी न किसी तरह की मदद रूस को इस लड़ाई में कर रहा होगा. वियतनाम और क्यूबा भी इस लिस्ट में शामिल हैं. ये सभी कम्युनिस्ट देश रहे. और एक बात इनमें कॉमन है कि सबकी अमेरिका से किसी न किसी तरह की दुश्मनी रही. ऐसे में रूस-यूक्रेन युद्ध को रूस-अमेरिका युद्ध की तरह देखते वे सारे देश संदेह के घेरे में हैं, जिनका अमेरिका से रिश्ता खराब रहा.

अब अमेरिका चीन से युद्ध रोकने में मदद की अपील कर रहा है, जबकि चीन और रूस सहयोगी हैं, ये किसी से छिपा नहीं. तो क्या नव-निर्वाचित राष्ट्रपति ट्रंप ये चाहते हैं कि जिनपिंग अपने मित्र राष्ट्र को समझाए-बुझाए, या फिर कोई और बात है? क्या रूस-यूक्रेन लड़ाई में चीन का सीधा दखल ग्लोबल रिश्तों में उठापटक कर सकता है? क्या ये संभव है कि चीन अमेरिका से जुड़ने के लिए रूस से रिश्तों में दूरी ले आए? कई सवाल हैं, जिनका जवाब समझने के लिए चीन की फॉरेन पॉलिसी पर नजर डालते चलें.

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चीन की नीति नॉन-इंटरफेरेंस की रही. वो दूसरे देशों की लड़ाई-भिड़ाई से दूर ही रहता है. हालांकि बीते कुछ सालों में इसमें काफी बदलाव दिखा. यूएन सिक्योरिटी काउंसिल के स्थाई मेंबर की तरह इसने काफी देशों के साथ रोकटोक की, या फिर किसी न किसी तरह से अपना कनेक्शन या नाखुशी जताई. जैसे मिडिल ईस्ट के ही मामले को लें तो उसने सऊदी अरब और ईरान के बीच बातचीत के लिए कई बार मध्यस्थता की. इससे दोनों के बीच डिप्लोमेटिक रिश्ते दोबारा बहाल हुए. कंबोडिया और वियतनाम में तनाव कम करने पर भी चीन ने काम किया. हालांकि बीच में सैन्य हस्तक्षेप भी हुआ लेकिन बाद में शांति बहाल करने की कोशिश की. 

किसकी तरफ जाएगा चीन

फिलहाल जैसी बात चल रही है, उसमें यही हो सकता है कि चीन लड़ाई रोकने के लिए रूस और यूक्रेन से बातचीत करे. इसकी संभावना नहीं है कि वो किसी भी तरह से मॉस्को पर दबाव बनाएगा. इस देश के साथ उसकी एनर्जी और सामरिक साझेदारी है. अगर वो वैश्विक स्तर पर अपनी पकड़ मजबूत रखना चाहे तो रूस इसमें बड़ा सहयोगी होगा. दोनों देश एक वक्त पर कम्युनिस्ट रह चुके, इसलिए विचारधारा भी उन्हें जोड़ती है. वहीं जिनपिंग अमेरिका को बड़े बाजार की तरह देखते हैं और फिलहाल ट्रंप के जैसे तेवर हैं, वो टैरिफ बढ़ाने को लेकर कहीं न कहीं परेशान होंगे. ऐसे में फिलहाल केवल इतना लगता है कि चीन एक दोस्त की तरह समझाइश देकर बाकी सब रूस पर छोड़ दे. इसी साल फरवरी में दोनों ही देशों ने घरेलू मामलों से अमेरिका को दूर रहने को कहा था. 

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रूस कितनी दे सकता है तवज्जो

जंग शुरू होने के बाद से अमेरिका समेत कई देशों ने मॉस्को पर ढेर सारे प्रतिबंध लगा दिए. कुछ ही देश हैं, जो रूस से खुलकर व्यापार कर पा रहे हैं. चीन इन्हीं में से एक है. बीते तीन सालों में दोनों के बीच व्यापार तूफानी तेजी से बढ़ा. साथ ही चीन वो ताकतवर देश है, जो भूराजनैतिक समीकरण बनाए रखने में रूस की मदद कर सकता है. ऐसे में पुतिन यूं ही जिनपिंग की रिक्वेस्ट को खारिज नहीं कर सकते. 

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