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नीतीश का एक दांव और बदल जाएगा बिहार में आरक्षण का सिस्टम... जानें क्या कुछ बदलेगा

जातिगत सर्वे के बाद अब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आरक्षण बढ़ाने का प्रस्ताव रखा है. उन्होंने मंगलवार को विधानसभा में आरक्षण का दायरा बढ़ाकर 75 फीसदी करने का प्रस्ताव दिया है. इसी में 10% आरक्षण आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग के लोगों को भी मिलेगा.

बिहार में सीएम नीतीश कुमार ने आरक्षण का दायरा बढ़ाने का प्रस्ताव रखा है. (प्रतीकात्मक तस्वीर) बिहार में सीएम नीतीश कुमार ने आरक्षण का दायरा बढ़ाने का प्रस्ताव रखा है. (प्रतीकात्मक तस्वीर)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 07 नवंबर 2023,
  • अपडेटेड 9:51 PM IST

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक और बड़ा दांव चल दिया है. उन्होंने विधानसभा में आरक्षण बढ़ाने का प्रस्ताव रखा है. प्रस्ताव अगर पास हो जाता है तो बिहार में आरक्षण का दायरा 65% हो जाएगा. इसके अलावा 10% आरक्षण आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग के लोगों का भी होगा. यानी, कुल मिलाकर 75%.

नीतीश कुमार ने विधानसभा में जो प्रस्ताव रखा है, उसके मुताबिक अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) और अति पिछड़ा वर्ग (EBC) को 43% आरक्षण मिलेगा. 

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साथ ही अनुसूचित जाति (SC) के लिए 20% और अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए 2% आरक्षण का प्रस्ताव है. 

इनके अलावा 10% आरक्षण आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग के लोगों के लिए होगा.

किसका कितना कोटा बढा़ने का प्रस्ताव?

बिहार में मौजूदा समय में OBC और EBC को 30% आरक्षण मिलता है. इसमें 18% OBC और 12% EBC का कोटा है. यानी, अब नीतीश सरकार ने इनका कोटा 13% और बढ़ाने का प्रस्ताव रखा है.

SC का कोटा 16% से बढ़ाकर 20% करने का प्रस्ताव दिया है. ST का कोटा 1% से बढ़ाकर 2% किए जाने का प्रस्ताव सरकार की ओर से दिया गया है.

इन सबके अलावा, बिहार में अभी 3% आरक्षण आरक्षित श्रेणी की महिलाओं को भी मिलता है. इनमें EWS कोटे की महिलाएं शामिल नहीं हैं.

ये आरक्षण सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में मिलता है.

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पर आरक्षण बढ़ाने का प्रस्ताव क्यों?

बिहार में जब नीतीश सरकार ने जातिगत सर्वे के आंकड़े जारी किए थे, तब से ही जितनी आबादी, उतनी हक की बातें कही जा रही थीं.

सर्वे के मुताबिक, बिहार में कुल आबादी 13 करोड़ से ज्यादा है. इनमें 27% अन्य पिछड़ा वर्ग और 36% अत्यंत पिछड़ा वर्ग है. यानी, ओबीसी की कुल आबादी 63% है. अनुसूचित जाति की आबादी 19% और जनजाति 1.68% है. जबकि, सामान्य वर्ग 15.52% है.

चूंकि, पिछड़ा वर्ग की आबादी सबसे ज्यादा है, इसलिए अब उनका कोटा सबसे ज्यादा बढ़ाने का प्रस्ताव है.

क्या टूट गई आरक्षण की सीमा?

संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 में सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया है. 

शुरुआत में आरक्षण की व्यवस्था सिर्फ 10 साल के लिए थी. उम्मीद थी कि 10 साल में पिछड़ा तबका इतना आगे बढ़ जाएगा कि उसे आरक्षण की जरूरत नहीं पड़ेगी. पर ऐसा हुआ नहीं.

फिर 1959 में संविधान में आठवां संशोधन कर आरक्षण 10 साल के लिए बढ़ा दिया. 1969 में 23वां संशोधन कर आरक्षण बढ़ा दिया. तब से हर 10 साल में संविधान संशोधन होता है और आरक्षण 10 साल के लिए बढ़ जाता है. 

साल 1992 में इंदिरा साहनी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण को लेकर बड़ा फैसला दिया था. तब सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण की सीमा 50 फीसदी तय कर दी थी. कोर्ट ने कहा था कि सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से ज्यादा नहीं हो सकती. 

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अभी किसे कितना आरक्षण?

फिलहाल, देश में 49.5% आरक्षण है. ओबीसी को 27%, एससी को 15% और एसटी को 7.5% आरक्षण मिलता है. इसके अलावा आर्थिक रूप से पिछड़े सामान्य वर्ग के लोगों को भी 10% आरक्षण मिलता है. 

इस हिसाब से आरक्षण की सीमा 50 फीसदी के पार जा चुकी है. हालांकि, पिछले साल नवंबर में सुप्रीम कोर्ट ने आर्थिक रूप से पिछड़े सामान्य वर्ग के लोगों को आरक्षण देने को सही ठहराया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ये कोटा संविधान के मूल ढांचे को नुकसान नहीं पहुंचाता.

बिहार में भी अब तक आरक्षण की सीमा 50% ही थी. EWS को 10% आरक्षण इससे अलग मिलता था. लेकिन अगर वहां नीतीश सरकार का प्रस्ताव पास हो जाता है, तो आरक्षण की 50% की सीमा टूट जाएगी.

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