
2024 के चुनाव में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी तो बनकर उभरी, लेकिन बहुमत से चूक गई. 2014 और 2019 में अपने दम पर बहुमत हासिल करने वाली बीजेपी इस बार 240 सीटों पर सिमट गई. नतीजतन, अब सरकार चलाने के लिए उसे एनडीए के बाकी सहयोगियों पर निर्भर रहना होगा.
सरकार बनाने के लिए 272 सीटों की जरूरत है. एनडीए के पास 293 सांसद हैं. इनमें बीजेपी के 240 सांसदों के बाद 16 सांसद चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी और 12 सांसद नीतीश कुमार के जेडीयू के हैं.
इसके साथ ही देश में एक बार फिर गठबंधन सरकार का दौर शुरू हो गया है. आमतौर पर 1977 की जनता पार्टी की सरकार को गठबंधन सरकार माना जाता है. लेकिन आजादी से पहले भी गठबंधन की एक ऐसी ही सरकार बनी थी, जिसके मुखिया जवाहर लाल नेहरू थे. इस सरकार में कांग्रेस और मोहम्मद अली जिन्ना की मुस्लिम लीग शामिल थी. आजादी तक इसी अंतरिम सरकार ने कामकाज संभाला था. इतना ही नहीं, तकरीबन 11 महीने तक चली इस अंतरिम सरकार की कैबिनेट में दो बार फेरबदल भी हुआ था.
अंग्रेजों का कैबिनेट मिशन
1945 में दूसरा विश्व युद्ध खत्म होने के बाद ब्रिटेन में हुए आम चुनावों में लेबर पार्टी की जीत हुई. क्लीमेंट एटली प्रधानमंत्री बने. दूसरे विश्व युद्ध के बाद ब्रिटेन ने भारत को आजाद करने का मूड बना लिया था. भारत छोड़ों आंदोलन के दौरान गिरफ्तार किए गए बंदियों को भी रिहा कर दिया गया था.
क्लीमेंट एटली ने मार्च 1946 में तीन सदस्यीय मिशन को भारत भेजा. इसमें सर स्टैफर्ड क्रिप्स, लॉर्ड पैथिक लॉरेंस और एवी अलेक्जेंडर शामिल थे. इसे कैबिनेट मिशन कहा जाता है. इसका मकसद भारत में अंतरिम सरकार का गठन करना, सत्ता हस्तांतरण करना और संविधान निर्माण की योजना तैयार करना था.
भारत आने के बाद कैबिनेट मिशन ने एक प्रस्ताव रखा कि जब तक संविधान नहीं बन जाता, तब तक भारत के प्रमुख राजनीतिक दल मिलकर अंतरिम सरकार बनाएं. कैबिनेट मिशन के इस प्रस्ताव को मुस्लिम लीग ने 6 जून 1946 और कांग्रेस ने 25 जून 1946 को मंजूर कर लिया.
ऐसे बनी अंतरिम सरकार
अंतरिम सरकार से पहले संविधान सभा का गठन होना था. इसके लिए जुलाई 1946 में चुनाव कराए गए. संविधान सभा के सदस्यों का चुनाव हर प्रांत से होना था. कांग्रेस को 69% सीटों पर जीत मिली. ब्रिटिश इंडिया के 11 प्रांतों में से 8 में कांग्रेस को बहुमत मिला.
मुस्लिम लीग को इससे झटका लगा और उसने कैबिनेट मिशन को दी अपनी मंजूरी वापस ले ली.
आखिरकार 12 अगस्त 1946 को वायसराय लॉर्ड वेवेल ने जवाहर लाल नेहरू को अंतरिम सरकार बनाने का न्योता दिया. इस सरकार में 14 मंत्री बनाए जाने थे, जिनमें से 5 मुसलमान को बनाना था.
इसके बाद 2 सितंबर 1946 को अंतरिम सरकार का गठन हुआ. इस सरकार में जवाहर लाल नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल, राजेंद्र प्रसाद, आसफ अली, सी. राजगोपालाचारी, शरत चंद्र बोस, जॉन मथाई, बलदेव सिंह, शफात अहमद खान, जगजीवन राम, अली जहीर और सीएच भाभा थे. दो मुस्लिम मंत्रियों के नाम बाद में घोषित होने थे.
2 सितंबर 1946 को वायसराय लॉर्ड वेवेल ने रेडियो पर अंतरिम सरकार के गठन की घोषणा की. साथ ही ये भी कहा कि मुस्लिम लीग के लिए अब भी सरकार में 14 में से 5 पद सुरक्षित हैं और सरकार में शामिल होने का रास्ता अब भी खुला है.
पर एक सच ये भी है कि अंतरिम सरकार बन तो गई थी, लेकिन अब भी इसका मुखिया वायसराय ही था. वो इसलिए क्योंकि वायसराय की अपनी एग्जीक्यूटिव काउंसिल हुआ करती थी. यही एग्जीक्यूटिव काउंसिल अंतरिम सरकार की एग्जीक्यूटिव ब्रांच बन गई. इस काउंसिल को मंत्रिपरिषद में बदल दिया गया और सारी शक्तियां काउंसिल के उपाध्यक्ष को सौंप दी गई.
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फिर मुस्लिम लीग हुई शामिल
अंतरिम सरकार को एग्जीक्यूटिव काउंसिल के सारे अधिकार दिए गए. नेहरू को एग्जीक्यूटिव काउंसिल का उपाध्यक्ष बनाया गया और उनके पास एक प्रधानमंत्री की तरह सारे अधिकार थे. वायसराय लॉर्ड वेवेस इसके अध्यक्ष थे और सर क्लॉड ऑचिनलेक कमांडर इन चीफ थे.
13 अक्टूबर 1946 को मोहम्मद अली जिन्ना ने पत्र लिखकर इस अंतरिम सरकार में मुस्लिम लीग के शामिल होने की जानकारी दी. मुस्लिम लीग की ओर से लियाकत अली खान, इब्राहिम इस्माइल चुन्द्रीगर, अब्दुर रब निश्तार, गजनफर अली और जोगेंद्र नाथ मंडल का नाम दिया गया.
कैबिनेट में ये मंत्री थे शामिल
लॉर्ड वेवेल ने साफ कर दिया था कि अंतरिम सरकार में एक अहम विभाग मुस्लिम लीग को दिया जाएगा. जिन्ना ने लियाकत अली को मुस्लिम लीग का प्रतिनिधि नियुक्त किया और उन्हें ही वित्त विभाग सौंप दिया.
इतना ही नहीं, वित्त मंत्री को कई अहम शक्तियां भी दी गईं. छोटे से छोटे काम के लिए वित्त मंत्री की मंजूरी को जरूरी कर दिया गया. गृहमंत्री के रूप में सरदार वल्लभ भाई पटेल जो भी प्रस्ताव रखते थे, वित्त मंत्री लियाकत अली उसे खारिज कर देते थे. इसके अलावा मुस्लिम लीग ने ये भी मांग रखी कि रक्षा मंत्री का पद किसी हिंदू को न सौंपा जाए. इसके बाद एक सिख सरदार बलदेव को रक्षा मंत्री बनाया गया.
मुस्लिम लीग के सरकार में शामिल होने के बाद नए सिरे से कैबिनेट बनी. इस सरकार में नेहरू उपाध्यक्ष, सरदार पटेल गृह मंत्री, राजेंद्र प्रसाद कृषि और खाद्य मंत्री, आईआई चुन्द्रीगर वाणिज्य मंत्री, बलदेव सिंह रक्षा मंत्री, लियाकत अली खान वित्त मंत्री, जॉन मथाई उद्योग मंत्री, सी. राजगोपालाचारी शिक्षा मंत्री, जगजीवन राम श्रम मंत्री, गजनफर अली स्वास्थ्य मंत्री, जोगेंद्र नाथ मंडल कानून मंत्री, अब्दुर रब निश्तार रेल मंत्री और सीएच भाभा खनन मंत्री बने.
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और फिर आजाद हुआ भारत
कांग्रेस और मुस्लिम लीग की मिली-जुली सरकार ने काम शुरू कर दिया था. कैबिनेट मिशन भारत का बंटवारा नहीं चाहता था. लेकिन मुस्लिम लीग जिद पर अड़ी थी.
मुस्लिम लीग ने रह-रहकर अंतरिम सरकार के हर कामकाज में अड़ंगा डालना शुरू कर दिया. इस बीच 9 दिसंबर 1946 को संविधान सभा की पहली बैठक हुई. मुस्लिम लीग ने इस बैठक का बहिष्कार कर दिया. राजेंद्र प्रसाद संविधान सभा के अध्यक्ष चुने गए. संविधान सभा ने संविधान का मसौदा तैयार करने का काम शुरू कर दिया था.
मुस्लिम लीग जिस तरह से संविधान सभा और सरकार के काम में बाधा डाल रही थी, उससे कैबिनेट मिशन समझ गया था कि अब भारत के बंटवारे को नहीं रोका जा सकता. 15 अगस्त 1947 तक आजादी के दिन तक इस अंतरिम सरकार ने काम किया.
आजादी के बाद जवाहर लाल नेहरू अंतरिम प्रधानमंत्री बने. 1951-52 में देश में पहले आम चुनाव हुए. इस चुनाव में कांग्रेस ने 489 में से 364 सीटों पर जीत हासिल की.