
साउथ के सुपरस्टार एनटी रामा राव जूनियर हाल में अपने अंग्रेजी एक्सेंट के लिए खूब ट्रोल हुए. इसलिए नहीं कि लहजा खराब था, बल्कि इसलिए कि वो अमेरिकन अंग्रेजी की नकल थी. दरअसल गोल्डन ग्लोब अवॉर्ड के दौरान हो रहे इंटरव्यू में वे उन्हीं के लहजे में बात करते दिखे. इसपर ट्रोलर्स ने उनकी जमकर खिंचाई कर दी. इससे पहले प्रियंका चोपड़ा भी अपने फेक अमेरिकी एक्सेंट के लिए ट्रोल हो चुकी हैं. एक्सेंट की ये नकल कोड-स्विचिंग कहलाती है, जो सेलिब्रिटीज ही नहीं, बहुतेरे हिंदुस्तानी करते हैं.
क्या है कोड स्विचिंग
अगर आप एक से ज्यादा भाषाएं जानते हैं या आपके पेरेंट्स दो अलग भाषाएं बोलने वाले हैं तो कोड स्विचिंग आपके रुटीन का हिस्सा होगा. ये एक से दूसरी भाषा या लहजे में तपाक-तपाक जाने को कहते हैं. वैसे जब हम किसी दूसरे कल्चर के लोगों से मिलते हुए उनकी तरह अभिवादन कर रहे होते हैं, या उनकी तरह खाना खा रहे होते हैं तो इसे कोड स्विचिंग माना जाता है. जैसे कुछ जगहों पर मिलने पर गाल पर चुंबन देने का चलन है, जबकि कहीं इसे बिल्कुल खराब मानते हैं. अगर आप गालों पर किस करने वाले कल्चर से हैं, लेकिन अरब देशों में पहुंच जाएं तो अभिवादन के लिए कोई दूसरा तरीका अपनाएंगे, जो वहां चलन में हो.
कोड स्विचिंग लैंग्वेज के मामले में ज्यादा इस्तेमाल होता रहा. भारत में अंग्रेजी बोलने वाले जब विदेश जाते हैं तो अपना लहजा बदलकर उन्हीं की तरह अंग्रेजी बोलने लगते हैं. उन्हें लगता है कि इससे वे उस सोसायटी में जल्दी फिट हो सकते हैं, या फिर दूसरों से अलग नहीं लगते.
अमेरिकी टीवी शो में भी उड़ता रहा मजाक
भारतीयों के साथ कोड स्विचिंग ज्यादा दिखती है ताकि विदेशी, खासकर अमेरिकी लोग उनके लहजे का मजाक न बनाएं. जी हां, अमेरिका में इंडियन एक्सेंट का हमेशा ही मजाक उड़ता रहा. यहां हमारी अंग्रेजी को इंडियन इंग्लिश कहा जाता है, जिसके बारे में अमेरिकी कहते हैं कि अंग्रेजी होने के बाद भी जिसे समझना आसान नहीं. अमेरिकी टेलीविजन शो सिम्पसन्स में एक भारतीय चरित्र है, जिसके इंग्लिश लहजे का खूब मजाक बना.
ले रहे एक्सेंट ट्रेनिंग
अमेरिका में रहते हिंदुस्तानी खासे सफल हैं. वहां रहते लगभग 80% प्रवासी भारतीयों के पास कम से कम बैचलर डिग्री है. यहां तक कि सिलिकॉन वेली में 16% से ज्यादा स्टार्टअप के को-फाउंडर भारतीय मूल के या भारतीय हैं. इसके बाद भी हिंदुस्तानियों की अंग्रेजी को इंडियन इंग्लिश कहकर मजाक बनाया जाना आम है. इसे एक्सेंट डिसक्रिमिनेशन कहते हैं, जो सिर्फ हिंदुस्तानियों नहीं, बल्कि कई देशों के लोगों या तक कि कई नस्लों के साथ भी होता है.
यहीं बात आती है स्विचिंग की
अमेरिकियों के बीच घुलमिल जाने के लिए भारतीय कोड स्विच करने लगे. जो लोग आसानी से ऐसा नहीं कर पाते, वे एक्सेंट कोचिंग ले रहे हैं. यानी सिर्फ बढ़िया अंग्रेजी आना काफी नहीं, उसका लहजा भी अमेरिकी या ब्रिटिश होना चाहिए. साल 2018 की प्यू रिसर्च कहती है कि दूसरे देशों से आकर काम के लिए अमेरिका में रहने या बसने वाले अलग-अलग देशों के लोगों के बीच भी सबसे अच्छी अंग्रेजी भारतीय बोलते हैं, यहां तक कि वे कोड स्विच भी करने लगे हैं.
कुल मिलाकर अमेरिका या ब्रिटेन जाकर उनके लहजे की नकल करना अब जरूरी हो चुका. आम लोग ही नहीं, प्रियंका चोपड़ा और एनटी रामा राव जूनियर जैसी सेलिब्रिटीज भी ऐसा करती हैं. इसी से अंदाज लगाइए कि हमारे भीतर न अपनाए जाने का कितना डर है! इसी डर को लेकर मनोवैज्ञानिक लगातार चेतावनी देते रहे.
क्या कहता है मनोविज्ञान
साइकोलॉजी की भाषा में इसे इम्पोस्टर सिंड्रोम कहते हैं. इसमें हर हमेशा खुद पर शक करते रहते हैं कि हम कुछ खास वजहों से बाकियों को उतने काबिल नहीं लग पा रहे, जितने हम वाकई हैं. ये किसी हद तक सच भी होता है. जैसे अपने सब्जेक्ट में काबिल होने के बावजूद सिर्फ दूसरों के लहजे में अंग्रेजी न बोलना हमें पीछे रख सकता है. अमेरिका में ये भेदभाव और उभरकर आता है, जिसे भरने के लिए हम कोड स्विच करने लगते हैं.