
इस साल की शुरुआत में तुर्की और सीरिया में भयावह भूकंप आया. अब मोरक्को में तबाही मची हुई है. इस बीच एक डेटा जारी हुआ जो कहता है कि अगस्त महीने में पहाड़ी राज्य हिमाचल में जून से लेकर अगस्त तक 15 बार धरती डोल चुकी. तीव्रता भले ही कम थी, लेकिन लोगों को डराकर घर से बाहर निकालने के लिए काफी रही. भूकंप में जानें मकानों के ढहने और मलबे में लोगों के फंसने से जाती हैं.
धरती का डोलना तो हम रोक नहीं सकते, लेकिन भूकंपरोधी मकान जरूर बना सकते हैं. इलाज सामने हैं, सस्ता भी है, लेकिन दवा की पुड़िया खाने को कोई राजी नहीं.
क्यों गिरते हैं भूकंप में मकान
- कमजोर नींव इसकी एक वजह है. जिन घरों की फाउंडेशन कच्ची है, वो धरती के थोड़ा भी डोलने पर गिर सकते हैं.
- नर्म या भुरभुरी मिट्टी धरती के भीतर हलचल से प्रेशर में आ जाती है, और रेत की तरह हो जाती है. तब वे इमारत का वजन नहीं उठा पातीं.
- इमारत का खराब स्ट्रक्चर भी तबाही ला सकता है. जब चौड़ाई कम हो, ऊंचाई बहुत ज्यादा हो और दीवारें पतली हों, तब थोड़ा भी झटका मकान में बड़ी दरारें ला सकता है.
कैसे बनाए जाएं भूकंपरोधी मकान
इसके कुछ मोटे-मोटे नियम हैं. सबसे पहले मिट्टी की जांच होती है. इसी आधार पर तय होगा कि किस जगह कितने मंजिल का घर बन सकेगा. दूसरा रूल ये कहता है कि मकान की चौड़ाई से तीन गुनी से ज्यादा ऊंचाई किसी हाल में नहीं होनी चाहिए. स्ट्रक्चर को लेकर कई छोटे-मोटे नियम हैं. लेकिन एक और बात सबसे जरूरी है, जो मकान को भूकंप और साइक्लोन में पक्कापन देती है. इसे रेट्रोफिटिंग कहते हैं.
आसान ढंग से समझें तो रेट्रोफिट यानी ओरिजिनल स्ट्रक्चर में कुछ ऐसा बदलाव लाना, जो पहले नहीं था. ये कमी को दूर करता है. ये बने-बनाए मकान को कम छेड़छाड़ के साथ मजबूती देता है. इंडियन स्टैंडर्ड कोड ऑफ 2022 में इसके पैरामीटर दिए हुए हैं.
क्या इस दौरान घर को खाली करना होता है
ये इस बात पर तय करता है कि पहली बार इमारत बनवाते हुए कितने रूल माने गए होंगे. अगर बिल्डिंग 4 मंजिल तक ही है और काम टुकड़ों-टुकड़ों में हुआ हो तो घर खाली करना जरूरी नहीं. इसमें कुछ हिस्से में काम चलेगा, और बाकी में लोग रह जाएंगे. अगर इमारत गलत ढंग से बनी हो तो उसमें सुधार नहीं हो सकता. गिराना ही अकेला विकल्प है.
एक और तरीका है, जिसे बेस आइसोलेशन सिस्टम कहते हैं. इसमें बिल्डिंग या मकान की नींव मजबूत की जाती है. इस प्रोसेस में मकान को गिराना नहीं पड़ता. साथ ही साथ ऊपर की मंजिल में रेट्रोफिट किया जाता है, मतलब थोड़े-बहुत बदलाव. ये सिस्टम वैसे ही काम करता है, जैसे एक बढ़िया कार को ऊंची-नीची सड़क पर भी कम धक्के लगते हैं.
कितना समय लगता है इस काम में
ये इसपर तय करता है कि मकान किस तरीके से और किन चीजों से बना है. अगर सबकुछ कमजोर है तो समय ज्यादा लग सकता है. वरना एर्थक्वेक साइंटिस्ट मानते हैं कि एक कमरे को रेट्रोफिट करने में 2 दिन से ज्यादा वक्त नहीं लगता.
कितना खर्च आ सकता है
जितना खर्च किसी इमारत को बनाने में होता है, उसमें 10 प्रतिशत और पैसे लगाकर भूकंपरोधी मकान बनाया जा सकता है. लेकिन ये तब है, जब नया घर बनवाया जा रहा हो. अगर पहले से बने-बनाए घर को रेट्रोफिट करना हो तो खर्च 15 से 20 प्रतिशत तक हो सकता है.
100 प्रतिशत गारंटी तब भी नहीं
इस सबके बाद भी ये बात तय है कि फिलहाल तक कोई भी ऐसी तकनीक या मटेरियल नहीं बना जो बडे़ से बड़े भूकंप में घर को सेफ रख सके. हां, इतना जरूर है कि रेट्रोफिटिंग के बाद औसत तीव्रता में घर के ताश के पत्तों की तरह ढहने का डर खत्म हो जाता है.
कुदरती चीजों से बन रहे घर
भूकंप या साइक्लोन चूंकि कुदरती आपदा हैं तो इससे लड़ने का तरीका भी कुदरती हो तो शायद ज्यादा टिकाऊ होगा. यही सोचते हुए कैलीफोर्निया के आर्किटेक्ट नादर खलीली ने एक खास तरह के घर का डिजाइन बनाया था. उनका दावा था कि ये घर वक्त के साथ और मजबूत होता जाएगा. गल्फ युद्ध के दौरान बड़ी संख्या में पर्शियन लोगों के ईरान आने पर रिफ्यूजी लोगों के लिए ऐसे घर तैयार खूब बनाए गए. सुपरएडोब कहलाते इस मॉडल को अब कई पश्चिमी देश भी अपना रहे हैं.
क्या अलग होता है इनमें
इसकी मेहराब, मौजूदा तर्ज के समतल मकानों से अलग गोलाकार होती है. अगर छत समतल होगी तो तूफान या भूकंप में उसके गिरने की आशंका बढ़ जाती है. ये मकान सैंडबैग तकनीक पर आधारित होते हैं. ये वही सैंडबैग हैं, जिनका इस्तेमाल बाढ़ के दौरान सेनाएं भी करती हैं. मेहराब के आकार और रेत के बोरों को खास तरीके से रखे जाने की वजह से तूफान या भूकंप में भी इस घर के टूटने-फूटने का डर काफी कम हो जाता है.
घरों में कम खर्च और टिकाऊपन को देखते हुए यूनाइटेड नेशन्स हाई कमिश्नर फॉर रिफ्यूजी ने भी इस डिजाइन को क्राइसिस सिचुएशन में अपनाना शुरू कर दिया.