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कोरोना काल बीतने के बाद अब कैसे हैं रोजगार-GDP पर इकोनॉमी के संकेत? ये दो बदलाव अहम

देश में बेरोजगारी दर घटने लगी है. लगातार चार तिमाही से बेरोजगारी दर घट रही है और सिंगल डिजिट में बनी हुई है. हाल ही में आए पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे (PLFS) के मुताबिक, अप्रैल से जून तिमाही में देश में बेरोजगारी दर 7.6% रही, जबकि पिछले साल इसी तिमाही में बेरोजगाबेरी दर 12.6% रही थी.

अप्रैल-जून तिमाही में सैलरीड क्लास की हिस्सेदारी बढ़ी है. (प्रतीकात्मक तस्वीर-getty images) अप्रैल-जून तिमाही में सैलरीड क्लास की हिस्सेदारी बढ़ी है. (प्रतीकात्मक तस्वीर-getty images)
Priyank Dwivedi
  • नई दिल्ली,
  • 03 सितंबर 2022,
  • अपडेटेड 7:52 AM IST

क्या देश अब कोरोना महामारी से उबरने लगा है? ये सवाल इसलिए क्योंकि दो आंकड़े हैं, जो इस बात की गवाही देते हैं कि भारत चुनौतियों से निकलकर आगे आ गया है. 

बुधवार को दो आंकड़े आए. पहला जीडीपी से जुड़ा था. अप्रैल से जून तिमाही में देश में जीडीपी ग्रोथ रेट 13.5% रही. ये अब तक दर्ज जीडीपी में दूसरी सबसे ऊंची ग्रोथ रेट है. इससे पहले पिछले साल अप्रैल से जून तिमाही में ही जीडीपी ग्रोथ रेट 20.1% रही थी. हालांकि, इसकी वजह कोविड की वजह से 2020-21 की पहली तिमाही में आई 23.8% की गिरावट थी. 

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दूसरा आंकड़ा बेरोजगारी दर को लेकर है. बुधवार को ही पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे (PLFS) ने बेरोजगारी पर तिमाही आंकड़े जारी किए. इसके मुताबिक, देश में शहरी इलाकों में अप्रैल से जून तिमाही में बेरोजगारी दर घटकर 7.6% पर आ गई. वहीं, पिछले साल इसी तिमाही में बेरोजगारी दर 12.6% थी. जबकि, अप्रैल से जून 2020 में ये दर 20.9% थी. ये लगातार चौथी तिमाही है, जब बेरोजगारी दर सिंगल डिजिट में रही है. 

देश में बेरोजगारी से हालात किस तरह से सुधर रहे हैं? इसे तीन आंकड़ों समझ सकते हैं. पहला- लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट यानी LFPR, दूसरा- वर्कर पॉपुलेशन रेशो यानी WPR और तीसरा- बेरोजगारी दर यानी UR. 

LFPR का मतलब होता है कि कुल आबादी में से ऐसे कितने लोग हैं, जो काम की तलाश में हैं या काम करने के लिए उपलब्ध हैं. WPR का मतलब होता है कि कुल आबादी में से कितनों के पास रोजगार है. वहीं, बेरोजगारी दर का मतलब होता है कि लेबर फोर्स में शामिल कितने लोग बेरोजगार हैं. 

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लेबर फोर्स और वर्कर पॉपुलेशन का बढ़ना और बेरोजगारी दर का घटना अच्छा माना जाता है. और पिछली पांच तिमाही से यही हो रहा है. लेबर फोर्स और वर्कर पॉपुलेशन बढ़ रही है, जबकि बेरोजगारी दर घट रही है. 

क्या है इसका कारण?

दो साल के आंकड़े देखें तो पता चलता है कि कोरोना महामारी की वजह से लगे लॉकडाउन ने रोजगार पर सबसे बुरी चोट दी. दूसरी लहर से उबरने में तो ज्यादा समय नहीं लगा, लेकिन पहली लहर से उबरने में काफी समय लग गया.

मार्च 2020 में कोरोना आने के बाद दो महीने तक तो सख्त लॉकडाउन लगा रहा. इसके बाद अनलॉक हुआ भी तो इतनी पाबंदियां थीं कि उसने रोजगार के मौके पैदा नहीं होने दिए. यही कारण रहा कि 2020 में अप्रैल से दिसंबर तक बेरोजगारी दर डबल डिजिट में ही रही. 

2021 में हालात सुधरने शुरू हुए थे कि फिर दूसरी लहर आ गई. इस कारण फिर से लॉकडाउन लगा दिया गया. नतीजा ये रहा कि जनवरी से मार्च के बीच जो बेरोजगारी दर सिंगल डिजिट में आई थी, वो फिर से डबल डिजिट (12.6%) पर आ गई. हालांकि, इसके बाद जब अर्थव्यवस्था खुली तो नौकरियां भी लौटीं. लगातार चार तिमाही से बेरोजगारी दर घट रही है. 

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इसके अलावा दूसरा कारण ये भी है कि दिहाड़ी मजदूर और पार्ट टाइम मजदूरों की संख्या घट रही है, जबकि सैलरीड क्लास की बढ़ रही है. शहरी इलाकों में रोजगार में कैजुअल लेबर की हिस्सेदारी 12.4% थी, जो अप्रैल-जून में घटकर 12.1% पर आ गई. इसके उलट जनवरी-मार्च में सैलरीड क्लास की हिस्सेदारी 48.3% थी, जो बढ़कर 48.6% हो गई. हालांकि, ये हिस्सेदारी पिछले साल की इसी तिमाही की तुलना में कम है. पिछले साल इसी तिमाही में सैलरीड क्लास की हिस्सेदारी 49 फीसदी थी.

अगस्त में बेरोजगारी दर रिकॉर्ड स्तर पर

बेरोजगारी के आंकड़ों पर नजर रखने वाली निजी संस्था सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) की रिपोर्ट के मुताबिक, अगस्त में एक बार फिर से बेरोजगारी दर रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है. अगस्त में बेरोजगारी दर 8.28% रही. पिछले साल भी अगस्त में बेरोजगारी दर 8% के पार चली गई थी. 

CMEI के मुताबिक, जुलाई में बेरोजगारी दर 6.8% थी. यानी, एक महीने में बेरोजगारी दर करीब डेढ़ फीसदी बढ़ गई. अगस्त में शहरी इलाकों में बेरोजगारी दर 9.57% तो गांवों में 7.68% रही. जुलाई की तुलना में अगस्त में शहरों में बेरोजगारी दर 1.36% और गांवों में 1.54% ज्यादा रही. 

इसके अलावा, CMEI के ही आंकड़े बताते हैं कि इस साल मार्च की तुलना में अप्रैल में रोजगार करने वालों की संख्या लगभग 1 करोड़ बढ़ी थी. मई में भी 10 लाख लोग बढ़े थे. लेकिन जून में 1.3 करोड़ से ज्यादा लोगों की नौकरियां चली गई थीं. जिनकी नौकरियां गई थीं, उनमें से 1 करोड़ ऐसे थे जिन्होंने काम की तलाश करना भी छोड़ दिया था.

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