
दिल्ली सरकार बनाम उपराज्यपाल मामले में सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को ऐतिहासिक फैसला दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि दिल्ली की नौकरशाही पर चुनी हुई सरकार का ही कंट्रोल है और अधिकारियों की ट्रांसफर-पोस्टिंग पर भी उसी का अधिकार है.
ये फैसला चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एमआर शाह, जस्टिस कृष्ण मुरारी, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की बेंच ने सुनाया है. बेंच ने कहा कि लोकतंत्र और संघीय ढांचा संविधान की मूल संरचना का हिस्सा हैं.
सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला दिल्ली में प्रशासनिक सेवाओं के नियंत्रण और अधिकार से जुड़ा है. इसे लेकर केजरीवाल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. इसी पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए साफ कर दिया कि दिल्ली की पुलिस, जमीन और पब्लिक ऑर्डर पर केंद्र का अधिकार है, लेकिन बाकी सभी मामलों पर चुनी हुई सरकार का ही अधिकार होगा.
इतना ही नहीं, सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से एक तरह से उपराज्यपाल का कद भी घट गया है. सुप्रीम कोर्ट ने ये भी साफ कर दिया है कि पुलिस, जमीन और पब्लिक ऑर्डर को छोड़कर बाकी सभी दूसरे मसलों पर उपराज्यपाल को दिल्ली सरकार की सलाह माननी होगी.
दिल्ली में सरकार बनाम एलजी का विवाद कैसे खड़ा हुआ? वो कौनसा कानून था जिसने उपराज्यपाल को दिल्ली का बॉस बना दिया था? पूरी कहानी सिलसिलेवार तरीके से समझते हैं...
दिल्ली क्या है?
- 12 दिसंबर 1931 को अंग्रेजों ने दिल्ली को ब्रिटिश इंडिया की राजधानी बनाया. आजादी के बाद राज्यों को तीन हिस्सों- पार्ट A, पार्ट B और पार्ट C में बांटा गया. दिल्ली को पार्ट C में रखा गया. आजादी के बाद दिल्ली को ही राजधानी बनाया गया.
- 1952 में दिल्ली में पहले विधानसभा चुनाव हुए. उस समय दिल्ली एक पूर्ण राज्य हुआ करती थी. चौधरी बलराम प्रकाश यादव पहले मुख्यमंत्री बने जो 1952 ले 1955 तक पद पर रहे. उनके बाद एक साल के लिए गुरमुख निहाल सिंह मुख्यमंत्री बने.
- 1956 में राज्य पुनर्गठन कानून आया. इससे राज्यों का बंटवारा हो गया. दिल्ली को केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया. विधानसभा भंग कर दी गई. राष्ट्रपति शासन लागू हो गया. ये सिलसिला 35 साल तक चला.
फिर मिला दिल्ली को 'खास' दर्जा
- साल 1991 में संविधान में कुछ संशोधन किए गए. इसने दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा तो नहीं दिया, लेकिन कुछ 'खास' दर्जा जरूर दे दिया.
- संविधान में 69वां संशोधन किया गया और दिल्ली को 'राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र' यानी 'नेशनल कैपिटल टेरेटरी' का दर्जा मिला. इसके लिए गवर्नमेंट ऑफ नेशनल कैपिटल टेरेटरी एक्ट (GNCTD) 1991 बना.
- संविधान में धारा 239AA जोड़ी गई. इस धारा के तहत कैबिनेट का प्रावधान किया गया और गवर्नर को 'लेफ्टिनेंट गवर्नर' का नाम दिया गया. कैबिनेट और एलजी के कामकाज का बंटवारा भी किया गया.
- धारा 239AA में ये भी एक प्रावधान किया गया कि अगर किसी बात पर दिल्ली सरकार और एलजी के बीच विवाद होता है तो राष्ट्रपति का फैसला मान्य होगा.
वो कानून, जिस पर खड़ा हो गया विवाद
- साल 1991 से लेकर 2013 तक दिल्ली में ठीकठाक ही चलता रहा. हालांकि, राजनीतिक पार्टियों ने दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग उठाती रहीं.
- 2013 में जब दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी की सरकार बनी तो उसके बाद उपराज्यपाल से टकराव बढ़ने लगा. टकराव दूर करने के लिए आम आदमी पार्टी सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई.
- साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संवैधानिक बेंच का फैसला आया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पुलिस, जमीन और पब्लिक ऑर्डर को छोड़कर बाकी सभी मामलों पर दिल्ली सरकार को कानून बनाने का अधिकार है.
- इसके बाद 14 फरवरी 2019 को सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस एके सिकरी और जस्टिस अशोक भूषण की बेंच ने फैसला दिया था. दोनों जजों के फैसले अलग-अलग थे.
- जस्टिस ए के सीकरी ने माना था कि दिल्ली सरकार को अपने यहां काम कर रहे अफसरों पर नियंत्रण मिलना चाहिए. हालांकि, उन्होंने कहा था कि जॉइंट सेक्रेट्री या उससे ऊपर के अधिकारियों पर केंद्र सरकार का नियंत्रण रहेगा. उनकी ट्रांसफर-पोस्टिंग उपराज्यपाल करेंगे. इससे नीचे के अधिकारियों को नियंत्रण करने का अधिकार दिल्ली सरकार के पास होगा.
- जस्टिस अशोक भूषण ने अपने फैसले में कहा था- दिल्ली केंद्रशासित राज्य है, ऐसे में केंद्र से भेजे गए अधिकारियों पर दिल्ली सरकार को नियंत्रण नहीं मिल सकता. इसके बाद मामला तीन जजों की बेंच को भेज दिया गया था.
- इसके बाद 2021 में केंद्र सरकार ने GNCTD बिल पेश किया. केंद्र सरकार ने कहा कि 1991 के कानून में कुछ खामियां थीं, जिन्हें संशोधन के जरिए दूर करने की कोशिश की जा रही है. और इस तरह से GNCTD एक्ट 2021 दोनों सदनों में पास हो गया और कानून बन गया.
2021 के GNCTD एक्ट में क्या है?
- केंद्र सरकार ने पुराने कानून में चार संशोधन किए थे. इसके तहत, इस कानून की धारा 21, 24, 33 और 44 में संशोधन किया गया था.
- धारा 21 में प्रावधान किया गया कि विधानसभा कोई भी कानून बनाएगी तो उसे सरकार की बजाय 'उपराज्यपाल' माना जाएगा.
- कानून में संशोधन के जरिए दिल्ली के उपराज्यपाल को और ज्यादा शक्तियां दी गईं. प्रावधान किया गया कि कैबिनेट को कोई भी फैसला लागू करने से पहले उपराज्यपाल की राय लेनी होगी. जबकि, पहले दिल्ली सरकार विधानसभा में कानून पास करने के बाद उसे उपराज्यपाल के पास भेजती थी.
- इसके साथ ही, ये भी प्रावधान किया गया कि दिल्ली की कैबिनेट प्रशासनिक मामलों से जुड़े फैसले नहीं ले सकती.
केंद्र और दिल्ली सरकार के क्या थे तर्क?
- केंद्र सरकार के तर्कः सुप्रीम कोर्ट में केंद्र ने कहा था कि अफसरों की ट्रांसफर-पोस्टिंग का नियंत्रण उसके पास होना चाहिए, क्योंकि दिल्ली देश की राजधानी है और दुनिया भारत को दिल्ली की नजर से देखती है. केंद्र ने ये भी कहा था कि दिल्ली में प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति आवास के अलावा संसद और दूतावास हैं, जिनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी केंद्र सरकार की है.
- दिल्ली सरकार के तर्कः दिल्ली सरकार का आरोप है कि उपराज्यपाल के जरिए केंद्र उसके कामकाज में बाधा डालने की कोशिश करती है. इसके अलावा दिल्ली सरकार की ये भी शिकायत थी कि अगर उन्हें अपने यहां काम कर रहे अफसरों की ट्रांसफर-पोस्टिंग का अधिकार नहीं होगा तो वो काम कैसे करेगी.
आखिर में बात- UT, NCT, NCR क्या है?
- दिल्ली को लेकर अक्सर कन्फ्यूजन रहती है कि ये केंद्र शासित प्रदेश है? एनसीटी है? या फिर एनसीआर है?
- असल में दिल्ली तीनों ही है. धारा 239AA के तहत दिल्ली को केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया है. इसलिए यहां केंद्र और दिल्ली सरकार को मिलकर काम करना होता है.
- चूंकि, दिल्ली देश की राजधानी है, इसलिए फरवरी 1992 में इसे 'नेशनल कैपिटल टेरेटरी' यानी 'एनसीटी' दिया गया.
- वहीं, एनसीआर एक तरह की योजना है जिसे 1985 में लागू किया गया था. इसका मकसद दिल्ली और उसके आसपास के इलाकों को प्लानिंग के साथ डेवलप करना था. एनसीआर में अभी हरियाणा के 14, उत्तर प्रदेश के 8, राजस्थान के दो और पूरी दिल्ली शामिल है.